कृपया दायें चलिए / अमृतलाल नागर / पृष्ठ 3

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‘‘कहते तो आप ठीक ही हैं पंडित जी, मगर मध्यवधि चुनाव के अभी चार-पांच महीने पड़े हैं, आप तत्काल की बात सोचिए। कार्पोरेशन में किसी बड़े अफसर को फोन-वोन करके ये गंदगी ठीक करवाइए जल्दी से, अंदर से मैनहोल उभर रहा है। बड़ी बदबू फैल रही हैं बाहर।’’

खैर, किस्सा कोताह यह कि मेयर, डिप्टी मेयर, हेल्थ अफसर आदि और उस सफलता के तुफैल में हमने भावी चुनाव में खड़े होने का इशारा भी फेंक दिया। चार दिन में धूम मच गई कि हम खड़े हो रहे हैं। पत्नी फिर सामने आई,

‘‘इलेक्शन लड़ोगे?’’‘‘हां, अब मिनिस्टर बनने का इरादा है।’’

‘‘पैसा कौन देगा ?’’

हमने कहा, ‘‘बुद्धिजीवी जब अपना ईमान बेचता है, तो पैसों की कमी नहीं रहती।’’

तभी लड़के आए, उन्होंने पूछा, ‘‘आप किस पार्टी से इलेक्शन लड़ेंगे ?’’

हम बोले, ‘‘इस समय तो हमारी गुडविल ऐसी जबरदस्त है कि सभी पार्टियां हमें टिकट देना चाहती हैं।’’

बड़ा बोला, ‘‘मगर इस समय तो इन सब पार्टियों की साख गिरी हुई है। इनमें से एक भी पूरी तरह सफलता नहीं पाएगी।’’

‘‘हमने कहा, ‘‘सही कहते हो। हम बुद्धिमत्ता से काम लेकर अपनी पार्टी बनाएंगे।’’

‘‘आपका मेनिफेस्टो क्या होगा ?’’

हम गौर करने लगे। अपना स्वार्थ साधने के लिए ऐसा मेनिफेस्टो बनाना चाहिए, जो औरों से अलग लगे और साथ ही पैसा मिलने के साधन भी जुट जाएं।

हमने कहा,

‘‘देखो, इनमें से कोई भी पार्टी इस बार बहुमत नहीं पाएगी। क्योंकि जनता सबमें अपना विश्वास खो बैठी है। और यहां के सेठ हमें पैसा ही नहीं देंगे, क्योंकि इनमें से कुछ कांग्रेस के साथ हैं और कुछ जनसंघ के। इसलिए हमारा पहला नारा यह होगा कि भारत के जिन-जिन प्रदेशों में इस समय मध्यावधि चुनाव हो रहा है, उनमें स्थायी शांति और सुशासन लाने के लिए दस बरसों तक पाकिस्तान, अमरीका और ब्रिटेन का सम्मिलित राज होना चाहिए। इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्थायी शांति बढ़ेगी तथा इन तीनों की तरफ से मुख्यमंत्रित्व का भार हम संभालेंगे। इस त्रिदेशीय फार्मूले से हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के सारे मसले हल हो जाएंगे। इस तरह देश की पूर्वी और पश्चिम सीमाओं पर नि:शस्त्रीकरण की नीति को अमल में लाने के लिए एक रास्ता खुल जाएगा।’’ ‘‘ठीक। और क्या होगा आपके मेनिफेस्टो में?’’

विचारों की रोशनी से हमारी आंखें सहसा चौंधिया उठीं। हमने फौरन अपना धूप का चश्मा चढ़ा लिया और गंभीर पैगंबरी स्वर में कहा,

‘‘हम अपरिवर्तनवाद का सिद्धान्त चलाएंगे- हिन्दू हिन्दू रहे और मुसलमान मुसलमान। इन्हें एक भारतीय समाज हरगिज़ न बनने देना चाहिए, हम एक और अखंड भारत के खिलाफ हैं।’’

‘‘और भाषा ?’’

‘‘भाषा का भूमि और संस्कृति से कोई संबंध नहीं। पाकिस्तान, अमरीका और ब्रिटेन में से जो हमारे इलेक्शन का खर्च उठाने को राजी हो जाएगा, उसकी भाषा का समर्थन करेंगे। वैसे अपनी जनता की सुविधा के लिए हम अंग्रेजी को भारत की राष्ट्रभाषा...........’’

‘‘क्या कहा ? अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाओगे ! अपने स्वार्थ के लिए हर झूठ को सच बनाओगे ?’’

पत्नी के तेहे पर हमने अपनी बौद्धिक मार्का हंसी का गुल खिलाया और कहा,

‘‘अरी पगली, नेता और वकीलों की सफलता ही इस बात पर निर्भर करती है।’’

‘‘झाड़ू पड़े तुम्हारी नेतागिरि पर। मैं आज से ही तुम्हारा खुला विरोध करूँगी।’’

‘‘अरे, पूरी बात तो सुन लो ! देश में इस वक्त अन्न की कमी है......’’

हम बोले, तो पत्नी ने बात बीच में काट दी, तुम्हें कौन खाने पीने की तकलीफ है...जो......’’

हमसे आगे सुना नहीं गया। हमने अपना तेहा दिखाया,

‘‘ज्यादा बकबक मत करो.........ज्यादा बात करने से भूख भी ज्यादा लगती है......जब तक भारत में औरतों के मुंह पर पट्टी नहीं बांध दी जाएगी, तब तक अन्न-समस्या हल होने वाली नहीं है।

अन्न मंगवाने के लिए हमने तय किया है कि एक टन गेहूं के बदले में हम एक नेता उस देश को सप्लाई करेंगे, जो हमें अन्न देगें।’’

पत्नी मुंह बाये सुन रही थीं। मौका देखकर हमने और खुलासा किया, ‘‘हमारी पार्टी भ्रष्टाचार को शिष्टाचार के रूप में मंजूर करती है, बगैर तकल्लुफ के कहीं राज चलते हैं ? घूसखोरी का तकल्लुफ हमारे राज में बराबर जाएगा ! रोजी-रोटी मांगने वालों की खाल खिंचवाकर बाटा वालों को सप्लाई की जाएगी, ताकि रूस से आने वाली जूतों की मांग पूरी की जा सके।

‘‘गीता का यह श्लोक हमारा सिद्धान्त वाक्य होगा और नारा भी.....’’

‘‘स्वधर्मे निधनं श्रेय: परमधर्मो भयावह:’’

‘‘दकियानूसियों ने इस श्लोक की रेढ़ मारके रख दी है। हम इसका सीधा, सरल और सही अर्थ अपनी धर्मप्राण जनता को समझाएंगे।’’

‘‘क्या?’’ पत्नी ने बिफर के पूछा।

‘‘अरे भई, सीधी-सी बात है। हर आदमी का अपना-अपना धर्म है। चोर का धर्म चोरी करना, डकैत का डाका डालना, बेईमान का बेईमानी करना, इसी तरह गरीब का धर्म है गरीबी और अमीर का अमीरी। गरीब को अमीर का धर्म अपनाने की छूट नहीं दी जाएंगी और न अमीर को गरीब का धर्म अपनाने की। हम इस धर्म-परिवर्तन के सख्त खिलाफ हैं।

इस धर्मवादिता से जनसंघ के समर्थक भी हमारी पार्टी में आ सकते हैं.....’’

पत्नी हमारे विरुद्ध प्रचार करने लगी हैं। हमारा चुनाव का सपना डांवाडोल हो रहा है और जनता के क्रोध से बचने के लिए हम इस समय बंबई भाग आए हैं। क्रोध के बराबर यहीं बात मन में फूटती है कि सत्यानाश हो इस जनता का, जो हमें नेता नहीं मानती।