कैली कामिनी और अनीता / अमृता प्रीतम / पृष्ठ 4

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तीन

कैली की सुहाग-सेज के नीचे आठ ईंटें रखी हुई थीं- चारों पायों के नीचे दो-दो ईंटें। क्योंकि एक लोहे का संदूक, जिसमें सब बहीखाते की किताबें पड़ी थीं, लोगों के गिरवी रखे हुए जेवर पड़े थे, और बाप-दादाओं के समय के आभूषण थे, चारपाई के नीचे पूरा नहीं आता था, इसलिए लखेशाह ने चारपाई के पायों के नीचे दो-दो ईंटे रखकर चारपाई को ऊंचा कर लिया हुआ था।


शायद चारपाई कुछ ढीली हो गई थी, कैली के चारपाई पर बैठते ही लोहे के संदूक की एक नोक उसे लगी और मितरो की कही हुई एक बात कैली के मन में चुभने लग गई-

‘अच्छा कैली, तेरा और बख्शे का जोड़ कैसा रहे ! अगर मैं बख्शा तुम्हें सौप दूं, तुम दोनों मिलकर हवा में एक महल बना लेना, रात को सिर के नीचे चांद का तकिया रख लेना..., और कैली मन-ही-मन में मितरो को याद कर कहने लगी,

‘बख्शा तो मेरे भाई की तरह है मितरो ! उसकी ओर तो मैं कभी आंख भरकर भी नहीं देख सकती, पर कोई खुदा मुझे मेरा हम उमर देता, तो सचमुच मैं सिर के नीचे चांद का तकिया रखकर सोती... यह देख बावरी, अब सिर के नीचे कैसा तकिया है...,


सारी रात कैली को लखेशाह की कुर्ती में से एक अजीब-सी गन्ध आती रही। फिर घबरा-घबराकर पता नहीं किस समय उसकी आंख लग गई। सूरज निकल आया था, जिस समय कैली को उसकी सौतेली बेटी ने कंधे से हिलाकर जगाया,

‘‘बापू ने आज कचहरी जाना है, जल्दी, और वह लस्सी मांग रहा है।’’

कैली ने जब तकिए से सिर उठाकर अपने सिर का कपड़ा ठीक किया, उसे अपने दुपट्टे में से एक अजीब गंध आई। उसने चौंककर अपना दुपट्टा उतार दिया, पर दूसरे ही क्षण उसने मन पर काबू पा लिया और तकिये पर पड़े दुपट्टे को उठाने के लिए झुकी।


कैली को तकिये के गिलाफ में से एक अजीब गन्ध आई। वह दो पैर पीछे हट गई और उसने अपने मन को ठहराने के लिए लड़की के कंधे पर हाथ रखा।


लड़की की कमीज़ में से भी कैली को एक अजीब-सी गंध आई... चौके में गई, जल्दी से लस्सी विलोनी शुरू कर दी। लस्सी को छानने के लिए उसने जब पास दरवाजे पर रखा कपड़ा पकड़ा, उस कपड़े से भी कैली को एक अजीब गन्ध आई...

कैली को समझ नहीं आ रही थी कि आखिर लखेशाह की गन्ध उसके सिर के दुपट्टे में से गुजरती, तकिये के गिलाफ में से निकलती और लड़की की कमीज़ में से होती हुई, इस लस्सी छाननेवाले कपड़े तक कैसे आ गई थी...


दोपहर को चौके-बर्तन से खाली होकर कैली ने लस्सी को छानने वाला कपड़ा, बच्चों के कपड़े, तकिये का गिलाफ सब कुछ इकठ्ठा कर लिया, सिर का दुपट्टा उतारते हुए उसने लखेशाह को कहा कि वह अपने गले की कुर्ती भी उतार दे, वह महरी को साबुन की एक टिक्की देकर सारे धुला लेगी...


‘‘महरी ससुरी ने तो कपड़ों का कुछ भी बाकी नहीं छोड़ना। डंडा मार-मार बटन तोड़ देगी और साबुन अलग बहाएगी। ये ससुरी इतना साबुन बहाती है...’’ लखेशाह ने जल्दी से कहा।


कैली चुप रह गई। फिर लखेशाह ने कहा,

‘‘अन्दर साबुन का चूरा पड़ा हुआ है। कड़ाही में पानी गर्म करके लड़की को साबुन उबाल दे, वह दो हाथ मार लेगी।’’


कैली ने समझा कि लखेशाह ने कपड़े धोने का काम जो लड़की को सौंपा है, यह वास्तव में कैली को इशारा है कि वह आप कपड़े धो ले, नहीं तो भला चार वर्ष की बच्ची से कहीं कपड़े धोए जा सकते थे, और उसे यह भी अच्छा-भला पता था कि लड़की का हाथ दुखता है। कैली ने कड़ाई में साबुन का चूरा उबाल लिया। महरी से दो मटके पानी मंगवा लिया और कच्चे खुरे पर पत्थर की सिल रखकर कपड़े धोने लगी....


लखेशाह बैठक में बैठकर असामियों से बात कर रहा था, जब उसके कानों में कपड़े धोने की आवाज़ आई। लखेशाह भागता हुआ आया,

‘‘मैंने कहा तुम यह क्यों कर रही हो ! लड़की से कहो, ससुरे छोटे-छोटे चार तो कपड़े हैं...’’

उस बच्ची से भला कपड़े धोए जाते ! मुझे क्या है ! मैं धोए जा रही हूं और वह चारपाई पर सूखने के लिए डालती जाती है।’’ कैली ने अहिस्ता से कहा और उसके भीतर एक हल्की-सी खुशी हुई कि यह पहला अवसर था जब लखेशाह ने उसके साथ जरा हमदर्दी की बात की थी....


लखेशाह फिर खड़ा रहा। कैली जब साबुन के पानी में कपड़ा भिगोती और उसके ऊपर थपनी मारती, लखेशाह के दिल पर जाने कोई चोट लगती। दो मिनट उसने अपना मुंह बंद रखा, परन्तु फिर उससे रहा न गया,

‘‘मैंने कहा, तू आप सियानी है, तेरे हाथों में सोने के गोखरू पडे़ हुए हैं- उतनी तो कपड़ों की मैल नहीं खुरनी, जितना सारा सोना खुर जाएगा।’’


कैली ने चौंककर लखेशाह की ओर देखा, फिर कपड़ों में से बहती मैल की धार की ओर, और फिर हाथों में पड़े हुए सोने के गोखरूओं की ओर। और कैली ने आहिस्ता से दोनों गोखरू उतारकर लखेशाह के हाथ में दे दिए... लखेशाह जब गोखरूओं की जोड़ी सँभालकर ले गया, कैली को याद आया कि उसके गाँव में नवविवाहिता लड़की को उसकी सखियां एक गीत के बोल में छेड़ा करती थीं, जिसका भाव था-

‘यह बाजूबन्द बहुत बुरा जे़वर है, आलिंगन करते छनक पड़ता है।’

और कैली की आंखें भर आईं, इन गीतों की रचना करते समय बाजूबन्द को बुरा कहा होगा, उसे यह नहीं पता था कि जब कोई मैल भरे कपड़े धोने लगता है, जे़वर उस समय भी बुरे हो जाते हैं।’’