कोलियों का कर्मक्षेत्र ससून डॉक / संतोष श्रीवास्तव
अतीत पीछे छूट गया और मैं आ पहुँची कोलियों के कर्मक्षेत्र ससून डॉक में जो कोलाबा में स्थित है। ब्रह्ममुहूर्त में सूरज के उदय होने का संकेत देता सुरमई उजाला... इसी उजाले के साथ जाग उठता है ससून डॉक। कोली मछुआरों की चहल-पहल... सिर पर मछली का टोकरा लादे भागती मछुआरिनें, केयरटेकर्स, मछलियों को छाँटते और बड़ी-बड़ी टोकरियों व प्लास्टिक की थैलियों में भरते दिहाड़ी मज़दूर, बर्फ़ व डीज़ल की हाथ गाड़ियों और रपटीली-सँकरी सड़कों पर फैले मछली मारने के जालों के जंजाल से भरी सुबह रौनक से लबरेज हो उठती है। मछुआरों के लिए जून और जुलाई के महीने समुद्र में मछली पकड़ने जाने के लिए प्रतिबंधित हैं। इन महीनों में वे पंढरपुर और शिरडी की सालाना तीर्थयात्रा में निकल पड़ते हैं। नावों की साफ़ सफाई, रंगाई व मरम्मत करते हैं। जाल बनाना, ऑइलिंग करना, इंजन की ओवर हॉलिंग करना आदि काम निपटाकर वापिस समँदर की राह पर जहाँ ये कुशल एथलीट की तरह दो छोरों पर गैप बनाकर लंगर डाली सफेद पताकाएँ फहराती छोटी और बड़ी नौकाओं से चालीस-चालीस किलो वज़न की झरियाँ फेंकते हैं, कैच करते हैं। अद्भुत नज़ारा...
बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट का यह 'सागर उपवन' ससूनडॉक से दो हाथ की दूरी पर है। यहीं है कोलाबा का वह पॉश इलाका जहाँ रहने वाले लोग मछली की तीखी गंध से परेशान हैं क्योंकि गेट के बाहर ही रीटेल मच्छी बाज़ार है। सुबह के सात बजते ही कोलाहल शुरू हो जाता है। मच्छी बाज़ार में मोल भाव भी होता है तो लगता है झगड़ा हो रहा है। मछलियों के थोक व्यापारी टेंपो, ट्रक, ऑटो और टैक्सियों में मछलियों के टोकरे लादकर थोक और फुटकर बाज़ारों तक पहुँचाते हैं।
तीन हेक्टेयर क्षेत्र में फैला 645 फुट लम्बा और 292 फुट चौड़ा यह विशाल डॉक सवा सौ वर्ष पहले की टेक्नोलॉजी के हिसाब से इंजीनियरिंग का चमत्कार है। मुम्बई ही नहीं, पूरे पश्चिमी भारत में हफ़्ते के सातों दिन और चौबीस घंटे काम करने वाला यह अकेला वेट डॉक 8 जून 1875 को समुद्र पाटकर बनाया गया। बगदाद (इराक) से आए डेविड ससून ने ससून डॉक के निर्माण की शुरुआत तो की, पर उसे पूरा नहीं करा सके. यह काम किया उनके पुत्र अल्बर्ट अब्दुल्ला ससून ने। ससून परिवार ने इसे डॉक कपास के कारोबार के लिहाज से बनवाया था। मुम्बई में आज यह अकेला डॉक है जहाँ आम जनता को आने जाने की आज़ादी है।
ससून डॉक वेट हार्बर डॉक है मुम्बई का सबसे बड़ा फिश मार्केट जहाँ रोज़ाना दो करोड़ रुपए मूल्य की तीन सौ टन मछलियों का कारोबार होता है। एक करोड़ मछलियों का अन्य देशों में निर्यात होता है। करीब डेढ़ लाख लोग अपनी रोज़ी रोटी के लिए इस पर निर्भर हैं जिनमें बहुतायत मुम्बई के मूल बाशिंदे कोली समुदाय के हैं। ससून डॉक की 140 साल पुरानी घड़ी अपने आप में करिश्मा है। अपनी बनावट और कारीगरी में बेमिसाल ये घड़ी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।