क्रेज़ी फ़ैंटेसी की दुनिया / अभिज्ञात / पृष्ठ 4
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प्रोफेसर निगम पोर्ट टारटाइज लौटे तो उनकी नज़रबंदी समाप्त हो गयी थी। अपने मित्र कछुए से सलाह मशविरे के बाद उन्होंने क्रेज़ी फ़ैंटेसी सीरिज की आख़िरी पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में क्रेज़ी फ़ैंटेसी की वास्तविकता बताते हुए उसे कपोल कल्पित बताया गया था और कहा गया था कि यह आपकी कल्पना भर है। उसकी कोई वास्तविकता नहीं है। सरकार से उन्होंने अपील की कि इस पर फिल्म बने और इस उपन्यास को प्रकाशन की अनुमति दी जाये जिससे कि लोगों के मन से क्रेज़ी फ़ेंटेसी का भय जाता रहे। बीमार लोगों के मन से दहशत जाती रहे और लोग समझ लें कि क्रेज़ी फ़ेंटेसी का कोई अस्तित्व नहीं है।
लेकिन सरकार ने प्रतिबंध नहीं हटाया। क्रेज़ी वायरस से तो विदेश से आये डॉक्टर लड़ते रहे और देश में वायरस का आतंक कुछ दिनों तक फैलाया जाता रहा। मछलियां मारने की झूठी खानापूरी की गयी। मछुआरों को कुछ दिन तक मछली पकड़ने से रोका गया और उन्हें बिठाकर रुपये दिये गये। मुआवजे के नाम पर करोड़ों की बंदरबांट होती रही। अलबत्ता कुछेक स्थानों पर मछली मारने का नाटक मीडिया के समक्ष ज़रूर किया गया। प्रोफेसर निगम चैट पर अपने मित्र कछुए से जान गये थे कि तालाब की मछलियों से कोई वायरस नहीं फैला था और उनमें होने की कोई गुंजाइश भी नहीं थी। सरकारी तंत्र के कारण आखिरकार दो हजार करोड़ क्रेज़ी वायरस की भेंट चढ़ गया।
इधर, कुछेक और देशों में लगभग इसी समय क्रेज़ी वायरस की खबरें मीडिया में आयीं और संभवतः वहां भी सरकार तंत्र ने उससे ऐसे ही निजात पायी होगी। वहां भी उस विकसित देश, जिसने वायरस भेजा था, डॉक्टरों की टीम भेजी और दवाएं, जिससे वह विश्व का दरियादिल और दयावान देश माना गया। जो देश अविकसित थे उनके लिए विकसित देश देवता बन गया था और उनसे अपने स्वार्थ साधकर और मज़ूबत बनता गया।
प्रोफेसर निगम सब कुछ जानते बूझते हुए चुप्पी साधे हुए थे और अपने भीतर चल रहे अन्तर्द्वंद्व पर काबू पाने का प्रयास भी कर रहे थे। उनके सामने एक वास्तविक दुनिया थी जिसमें हो रहे क्षरण से वे टकरायें या फिर उस दुनिया की खोज करें जो अभी अनुद्घाटित है। समुद्र की वह दुनिया जहां कितनी ही सभ्यताएं जलमग्न पड़ी हैं अपना रहस्य छिपाये। कितनी ही वनस्पतियां हैं जिनमें मनुष्य को विभिन्न बीमारियों के निजात दिलाने की शक्ति है। न जाने कितने खनिज और रत्न हैं। कितने ही जीवन जिनके बारे में लोग नहीं जानते। वे यह जानते थे कि दो में से एक ही पथ का उन्हें चुनाव करना है दोनों काम उनके बूते का नहीं तंत्र में सुधार के औजार उनके पास नहीं थे और उसके तरीक़ों से भी वे अनभिज्ञ थे दूसरी दुनिया उन्हें अधिक परिचित लगती थी शोध की। उन्होंने मन ही मन तय किया वे शोध के रास्ते पर ही आगे बढ़ेंगे।
इधर, चुनाव हुए गठबंधन सरकार पराजित हुई और दूसरी सरकार आयी लेकिन वह भी गठबंधन वाली। इस सरकार ने पुरानी सरकार के तमाम कार्यों को खारिज किया किन्तु दो बातों पर वह पुरानी सरकार से सहमत रही एक उस विकसित देश से कूटनीति सम्बंध और दूसरे क्रेज़ी वायरस से निपटने में सरकार की भूमिका। हालांकि जल्द ही फिर से क्रेज़ी वायरस की खबरें आने लगीं। दूसरी सरकार ने भी उन्हें सलाहकार बनाये रखा और इसबार फिर तीन हजार करोड़ रुपये आबंटित किये गये वायरस के सफाये के लिए। कहा गया कि पिछली बार कुछ लोगों ने तालाबों से छोटी मछलियों को निकाल कर कहीं और छिपा दिया था जब वहां टास्क फोर्स मछलियों को मारने पहुंचा था जिसके कारण क्रेज़ी वायरस जिन्दा रह गया। दूसरे तालाबों में नीचे की मिट्टी में कुछ खास प्रकार की मछलियां छिपी रह गयीं जिनसे यह वायरस बचा रहा। सरकार ने मछलियों के सफाये के लिए यह उपाय निकाला कि पुराने तालाबों को भरा जाने लगा जिससे न तो पुराना पानी रहेगा न मछलियां और क्रेज़ी वायरस विदा हो जायेगा। इसका फायदा बिल्डरों ने उठाया और तालाब भरकर उस फ्लैट बनाकर बेचा। फिर पर्यावरणविदों के विरोध को देखते हुए नये स्थानों पर तालाब खोदे गये। तीन हजार करोड़ इस प्रकार क्रेज़ी के नाम पर साफ हो गये। प्रोफेसर जान गये थे तंत्र वही रहेगा, सरकारें आती जाती रहेंगी।
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