क्रेमोना की वायलिनें / बावरा बटोही / सुशोभित
सुशोभित
इटली के कुल 20 प्रांतों में से एक है 'लोम्बार्डी', जो उसके उत्तर में बसा है। इसकी राजधानी है 'मिलान', रोम के बाद इटली का दूसरा सबसे बड़ा शहर। इसी प्रांत में 'ब्रेशिया' शहर है, जहाँ वर्ष 1909 में काफ़्का ने मॅक्स ब्रॉड के साथ एक एयर शो देखा था और उसके आधार पर 'द एरोप्लेन्स एट ब्रेशिया' कहानी लिखी थी। और 'लोम्बार्डी' प्रांत में ही बसा है 'क्रेमोना' शहर, मिलान से कोई सौ किलोमीटर के फ़ासले पर।
हम-आप में से बहुतों ने कभी इस शहर का नाम नहीं सुना होगा, लेकिन अगर किसी वेस्टर्न क्लैसिकल म्यूज़िशियन से पूछें कि उसके तीन तीर्थस्थल कौन से हैं, तो वो फ़ौरन कहेगा 'वियना', 'साल्त्सबर्ग' और 'क्रेमोना'। वियना, जो कि दुनिया की 'संगीत राजधानी' है, जहाँ हायडन, मोत्सार्ट, बीथोवन और शूबर्ट ने अपना सबसे अच्छा संगीत रचा, वियना की ट्विन सिटी 'साल्त्सबर्ग', जो कि दुनिया के सबसे बड़े क्लासिकी संगीत के जलसे का मेज़बान है, और 'क्रेमोना'। लेकिन 'क्रेमोना' किसलिए?
अगर आप 'गूगल' पर 'क्रेमोना' की 'स्काईलाइन' देखें तो पाएंगे कि इस ख़ूबसूरत इतालवी शहर के बीच में एक 'कैथेड्रल' है और एक बड़ी-सी मीनार उस 'कैथेड्रल' के बाज़ू में खड़ी है। 'द क्रेमोना टॉवर', यह इस शहर की पहचान है। लेकिन मैं इस 'क्रेमोना टॉवर' को एक नाम से पुकारना चाहूंगा, और वो नाम है : 'अंतोनियो स्त्रादिवारी।'
वह शख़्स, जिसका क़द क्रेमोना में सबसे बुलंद है। जो इस शहर में 1644 से 1737 तक रहा और इस दरमियान उसने दुनिया की सबसे मशहूर 960 वायलिनें बनाईं। जिसके नाम का पहला अक्षर 'एस' वायलिनों पर आज भी उसकी स्मृति में सम्मान के साथ अंकित किया जाता है। जिसने ताउम्र क्रेमोना में रहकर काम किया और इस छोटे-से शहर को दुनिया की आलातरीन 'म्यूज़िकल इंस्ट्रुमेंट्स वर्कशॉप' में बदल दिया। अगर आप दुनिया की सबसे उम्दा वायलिनें ख़रीदना चाहते हैं तो आपको क्रेमोना जाना होगा। और अगर आप एक 'स्त्राद वायलिन' ख़रीदना चाहते हैं, तो ख़ैर अब वह आपके लिए संभव नहीं रह गया है। क्योंकि स्त्रोदिवारी की तमाम वायलिनें पहले ही नीलामियों में ऊंची बोली देकर ख़रीदी जा चुकी हैं और वे दुनिया की 'फ़ाइनेस्ट अकूस्टिक साउंड्स' वाली वायलिनें हैं, जिनके समक्ष बेहद 'सोफ़िस्टिकेटेड साउंड डिवाइसेस भी भौंचक रह जाती हैं। दुनिया में 'स्त्राद वायलिनों' का कोई पर्याय नहीं है।
सन् 1700 से 1720 तक का समय 'स्त्राद वायलिनों' के प्रोडक्शन का 'गोल्डन पीरियड' माना जाता है, अलबत्ता उससे पहले ही स्त्रादिवारी 'टस्कन वायलिन', 'अमातीस' और 'लॉन्ग स्त्राद' बना चुका था। बहरहाल, जिस एक वायलिन ने स्त्रादिवारी का नाम मिथक-कथाओं में हमेशा के लिए शुमार कर दिया है, वह उसने वर्ष 1721 में बनाई थी : अपना निर्विवाद मास्टरपीस! 'द रेड मेंदेल्सॉन स्त्रादिवॉरिअस' : दुनिया की सबसे मशहूर वायलिन, जिसके आधार पर फ्रांसुआ जिरार्ड ने 'द रेड वायलिन' नामक फ़िल्म बनाई है।
'द रेड मेंदेल्सॉन स्त्रादिवॉरिअस' का मिथक यह है कि यह स्त्रादिवारी की सर्वश्रेष्ठ कृति है, लेकिन ना जाने किन कारणों से यह वायलिन खो गई थी। पूरे 200 वर्षों तक यह वायलिन कहाँ रही, किसके पास रही और उसने इसका क्या किया, इस बारे में कोई सूचना नहीं मिलती है। आख़िरकार, 1930 के दशक के दौरान बर्लिन में यह पुन: पाई जाती है, जिसे महान जर्मन संगीतकार फ़ेलिक्स मेंदेल्सॉन के वंशजों द्वारा ख़रीद लिया जाता है। 'रिच रेड' कलर में वार्निश की गई इस वायलिन के शीर्ष पर एक 'रेड स्ट्रिप' है, जिसके बारे में दंतकथाएं प्रचलित हैं कि उस पट्टी को स्त्रादिवारी ने अपनी मृत पत्नी के रक्त से वार्निश किया था। और यह भी कि स्त्रादिवारी ने यह वायलिन विशेषतौर पर अपने बेटे के लिए बनाई थी और उसे पूरा विश्वास था कि यह वायलिन उसके बेटे को दुनिया का महानतम संगीतकार बना देगी, 'पैग्निनी' से भी बड़ा 'वायलिन वर्चुओसो', लेकिन स्त्रादिवारी की पत्नी बेटे को जन्म देते समय चल बसी और पुत्र भी मृत ही जन्मा, जिसके बाद स्त्रादिवारी का दिल टूट गया था।
वर्तमान में यह 'लेजेंडरी वायलिन' अमेरिकन क्लासिकल सोलोइस्ट एलिज़ाबेथ पिटकैर्न के पास सुरक्षित है, जिन्हें उनके ग्रैंडफ़ादर ने उनके 16वें जन्मदिन पर यह बेशक़ीमती उपहार दिया था। ग्रैंडफ़ादर ने यह वायलिन एक ऑक्शन से लगभग 2 मिलियन डॉलर मूल्य देकर ख़रीदी थी। कुछ समय पूर्व जब 'फ़िलाडेल्फ़िया यूथ ऑर्केस्ट्रा' द्वारा एक कॉन्सर्ट की प्रस्तुति दी गई थी, तो उसमें एलिज़ाबेथ ने स्त्रादिवारी की वह 'रेड वायलिन' बजाई थी। उस क्षण पूरी दुनिया की नज़रें डाह से एलिज़ाबेथ को देख रही होंगी। उनके पास दुनिया के सबसे बड़े 'वायलिन माएस्ट्रो' का 'मास्टरपीस' था, जो कि उसने अपने बेटे के लिए रचा था, एक यशस्वी नियति की तरह। संगीत के सबसे स्पष्ट स्वरों को स्पर्श करने वाली वायलिन। हर लिहाज़ से एक 'प्राइड पज़ेशन'। 'पोस्टेरिटी' के लिए एक अमानत। तब एलिज़ाबेथ ने कहा था कि 'यह एक जादुई वायलिन है। बहुत जल्द यह अपने आपको मुझसे स्वतंत्र कर लेती है और अपनी ही एक कहानी सुनाने लग जाती है। दुनिया को लगता है कि मैं इस वायलिन को बजा रही हूं, लेकिन ऐसा नहीं है। उसका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है।'
कोई भी नहीं जानता कि पूरे 200 वर्षों के लिए यह वायलिन कहाँ गुम हो गई थी। फ्रांसुआ जिरार्ड ने अपनी फ़िल्म 'द रेड वायलिन' में पांच कहानियों के ज़रिये इसका अनुमान लगाने की कोशिश की है। जिरार्ड की कहानी क्रेमोना से शुरू होती है और फिर वियना, ऑक्सफ़र्ड, शंघाई होते हुए मॉन्ट्रियल पहुंच जाती है। पिछले कुछ सालों में 'द रेड वायलिन' से बेहतर फ़िल्में कम ही बनी हैं। संगीत, संपूर्णता, दंतकथाओं और पवित्र रहस्यों से प्रेम करने वाले हर व्यक्ति को वह फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए।