ख़ुशक़िस्मत लड़का / रामोन मारीआ देल वैले इनक्लान / भद्रसेन पुरी
वह अपने गाँव की सबसे बूढ़ी औरत है। वह अपने पोते का हाथ थामे हर-भरे पेड़ों से घिरे छायादार रास्ते पर जा रही है। रास्ते में कोई हलचल नहीं है। भोर का समय है।सुबह के झुटपुटे में बड़ी उदासी और बेसुधी-सी छाई हुई थी। बूढ़ी दादी के कन्धे आगे की ओर झुके हुए थे और वह कमर भी सीधी नहीं कर पा रही थी। राह चलते दादी अम्मा अपने पोते से बातें कर रही थी और बार-बार आहें भर रही थी। पोता रो रहा था, लेकिन उसके रोने की आवाज़ नहीं आ रही थी। उसकी दादी उसे लगातार कोई न कोई नसीहत दे रही थी।
‘‘अब जब तुम कमाई करने लगोगे। इसलिए तुम्हें दूसरों के साथ शालीनता और नर्मदिली बरतनी होगी, क्योंकि भगवान भी यही चाहता है।’’
‘‘ठीक है, दादी माँ।’’
‘‘तुम अपने दादा की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना किया करो।’’
‘‘ठीक है, दादी माँ।’’
‘‘तुम सान गुनडियन के मेले में जाने के लिए एक रेनकोट भी ख़रीद लेना। उस इलाके में लगातार बारिश होती है।
अपनी कमाई में से कुछ पैसे बचाकर रेनकोट ज़रूर ख़रीद लेना।’’
‘‘ठीक है।’’
‘‘जब तुम पक्के रास्ते पर चलते हो, तो तुम्हें अपनी चप्पलें उतारकर हाथ में ले लेनी चाहिए।’’
‘‘ठीक है, दादी माँ।’’
दादी और पोता चलते जा रहे हैं। सड़क पूरी तरह से निर्जन दिखाई दे रही है। इस बच्चे को छोटी उम्र में ही विनम्रता और समर्पण का जो पाठ उसकी दादी पढ़ा रही है, उससे उसके बचपन का संगीत और ज़्यादा उदास होता दिखाई दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि जीवन के आरम्भ में ही बच्चे को निर्धन बने रहने सीख दी जा रही है। बूढ़ी औरत घिसट-घिसटकर क़दम बढ़ा रही है। सड़क चट्टानी पत्थरों के खड़ंजे की है। इस पर चलते हुए दोनों की चप्पलों से फट-फट की तेज़ आवाज़ निकल रही है। बुढिया ने अपने सिर पर दुशाला ओढ़ रखा है। बीच-बीच में वह दुशाले में मुँह छिपाकर गहरी आहें भर रही है। पोता सरदी से सिसकियाँ भरता और काँपता है, उसके कपड़े फटे हुए हैं। वह चित्तीदार गालों के साथ सूरजमुखी लड़का है; किसी दूसरे काल के गुलाम की तरह उसके स्वच्छ और सीधे बाल माथे पर बारीक काटे गए थे, मानो मकई के रेशे हों।
प्रभात के नीले आकाश में अभी कुछ डूबते तारे चमक रहे हैं। एक लोमड़ी गाँव से भागकर रास्ते के आर-पार जाती है। दूर कुत्तों के भौंकने और मुरगों की बाँग सुनी जा सकती है, सूर्य धीरे-धीरे पहाडि़यों की चोटियों को सुनहरा बनाना शुरू करता है; ओस घास के तिनकों पर और वृक्षों के इर्दगिर्द चमकती है। अपने घोंसलों को पहली बार छोड़ते हुए छोटे पक्षी अपनी कायर उड़ानों के साथ चक्कर लगाते हैं; नदियाँ हँसती हैं और पेड़ों की टहनियाँ मरमर की ध्वनि उत्पन्न करती हैं और हरे किनारोंवाला उदासीन और उजाड़ रास्ता, बुआई और अंगूर की फसल काटनेवाले पुराने रास्ते की तरह जाग उठता है। भेड़ों के झुंड पहाड़ी ढलानों पर चढ़ते हैं; औरतें फव्वारे से गाती हुई आती हैं; एक सफेद बालोंवाला देहाती अपने बैलों को हाँकता है, ज्यों ही वे बाड़ को खाने के लिए रुकते हैं; वह आदरणीय वृद्ध पुरुष है; उसकी आवाज दूर से आती है।
‘‘क्या तुम बार बनजॉन के मेले में जा रहे हो?’’
‘‘हम लड़के के लिए मालिक ढूँढ़ने सान एमेडियो जा रहे हैं।’’
‘‘इसकी आयु कितनी है?’’
‘‘कमाने योग्य, गत जुलाई में नौ वर्ष का हो गया था।’’
दादी और पोता चलते जा रहे हैं, चलते जा रहे हैं...आनंददायक सूर्य के तले, जो अब पहाडि़यों के ऊपर चमक रहा है, गाँव के लोग सड़क पर गुजरते हैं। धूप से झुलसा हुआ घोड़ों का एक प्रसन्न व्यापारी एडि़यों और खुरों की झनझनाहट के बीच दुलकी चाल से चल रहा है। सेला और लेस्ट्रोव की बूढ़ी औरतें मुरगियाँ, सन से बना माल और राई लेकर मेले में जा रही हैं। वहाँ दर्रे में एक गँवार हाथ हिलाकर ऊँची आवाज में बकरियों को भयभीत कर रहा है, जो चट्टानों में शान से कूद-फाँद रही हैं। लेस्ट्रोव के पादरी को रास्ता देने के लिए दादी-पोता एक तरफ हो जाते हैं—पादरी, जो गाँव के त्योहार में प्रचार के लिए जा रहा है।
‘‘शुभ प्रभात, परमात्मा तुम पर दया करे।’’
शांत और प्रतापी चाल से चल रहे पादरी ने घोड़ा रोक लिया था।
‘‘क्या तुम मेले में जा रहे हो?’’
‘‘हम निर्धनों के पास मेले में जाने के लिए क्या रखा है? हम लड़के के लिए मालिक ढूँढ़ने सान एमेडियो जा रहे हैं।’’
‘‘क्या यह प्रश्नोत्तर प्रणाली जानता है?’’
‘‘हाँ श्रीमान्, जानता है। निर्धनता किसी को ईसाई बनने से रोकती नहीं है।’’
और दादी-पोता चलते रहते हैं, चलते रहते हैं। दूर नीली धुंध में उन्होंने गिरजा के चहुँओर सान एमेडियो के काले और उदास वृक्षों को ताका, जिनकी चोटियाँ सुबह की सुनहरी रोशनी से पोती हुई लगती हैं। गाँव में प्रत्येक दरवाजा पहले से ही खुला हुआ है और चिमनियों से सफेद धुआँ निकलकर शांति के सत्कार की तरह आकाश में गुम हो रहा है। दादी और उसका पोता ड्योढ़ी पर पहुँचते हैं। दरवाजे के रास्ते में एक अंधा व्यक्ति बैठा भिक्षा की याचना कर रहा है और अपनी पथरीली आँखें आकाश की ओर उठाता है।
‘‘सेंट लूसी तुम्हारी नजर और स्वास्थ्य बनाए रखे, ताकि इस संसार में अपनी रोटी कमा सको। परमात्मा तुम्हारा भंडार भरे और तुम्हें देने योग्य बनाए—स्वास्थ्य और भाग्य, ताकि संसार में रोटी कमा सको। परमात्मा के इतने अच्छे लोग कुछ-न-कुछ दिए बिना नहीं जाते।’’
और अंधा व्यक्ति दरवाजे के रास्ते में अपनी पीली हथेली फैलाता है। बूढ़ी औरत अपने पोते का हाथ थामे उसके पास जाकर उदासीनता से बड़बड़ाती है—
‘‘हम निर्धन लोग हैं, भाई!...हमें पता चला है कि तुम्हें नौकर की जरूरत है।’’
‘‘यह सच है। जो मेरे पास पहले था, वह संता बाया डी सेला की यात्रा में अपना सिर फड़वा बैठा है। वह अब बिल्कुल मतिहीन हो गया है।’’
‘‘मैं अपना पोता लाई हूँ।’’
‘‘तुमने अच्छा किया।’’
अंधा आदमी हवा में टटोलते हुए हाथ फैलाता है।
‘‘निकट आओ, लड़के!’’
दादी लड़के को धकेलती है, जो डरपोक मेमने की तरह सिपाही का लबादा पहने भयानक बूढ़े आदमी के सामने काँपता है। अंधे का दृढ़ाग्रही पीला हाथ लड़के के कंधों पर पड़ता है, पीठ को टटोलता है और उसकी टाँगों तक जाता है।
‘‘क्या तुम बोरों को पहाड़ी पर ले जाते थक जाओगे?’’
‘‘नहीं श्रीमान्, मैं इसका आदी हूँ।’’
‘‘उनको भरने से पहले हमें कई घरों पर दस्तक देनी होगी। क्या तुम गाँव की सड़कों से अच्छी तरह परिचित हो?’’
‘‘जहाँ मुझे पता नहीं चलेगा, मैं पूछ लूँगा।’’
‘‘यात्राओं में जब मैं भजन गाऊँगा, तो क्या मेरा साथ दे सकोगे?’’
‘‘अभ्यास कर लूँगा, श्रीमान्।’’
‘‘बहुत लोग अंधे आदमी का नौकर होना पसंद करेंगे क्या?’’
‘‘हाँ श्रीमान्, हाँ।’’
‘‘अब तुम आ ही गए हो तो आओ, हम पाजो डी सेला चलें। वहाँ के लोग उदार और दयालु हैं। यहाँ तो एक सिक्का भी नहीं मिलता!’’
अंधा आदमी कठिनाई से उठता है और अपना हाथ लड़के के कंधे पर रखता है, जो सामने लंबी सड़क और गीले मैदान को शोकाकुल देखता है—मैदान, जहाँ दूर एक श्रमिक कमर झुकाए घास काट रहा है, जबकि गले में बँधी रस्सी को खींचते हुए एक गाय चर रही है। अंधा आदमी और लड़का धीरे-धीरे चलते जाते हैं और दादी अपनी आँखों को सुखाती हुई बड़बड़ाती है—
‘‘भाग्यवान् लड़का! नौ वर्ष का और रोटी कमा रहा है—रोटी, जो वह खाता है, परमात्मा को धन्यवाद!’’
(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)