खामोश लम्हे / भाग 4 / विक्रम शेखावत
आंखे झपकाना तक भूल गया और जिस चेहरे को देखे बिना उतावला सा रहता था वो इस वक़्त उसके सामने था। वो ही बड़ी बड़ी आंखेँ इस वक़्त मात्र एक कदम दूर से उसे देख रही थी जो आज से पहले करीब तीस से चालीस कदम दूर होती थी। दोनों इस वक्त एक दूसरे की आँखों मे डूब दिल के दरीचों तक पहुँचने का जुगाड़ लगा रहे थे। रंजना ठीक दरवाजे के सामने और दुर्गा उसके पीछे सीढ़ियों मे खड़ी थी। भानु सामने खड़ी रंजना की गरम साँसो को अपने चेहरे पे अनुभव कर रहा था। भानु खत के इंतजार मे डूबा भानु आज रंजना को सामने पाकर बुत बन गया था। दोनों तरफ गहन खामोश मगर दिलों के तार झंकृत हो उठे। परिस्थितियां अनुकूल थी मगर दिल बेकाबू हुआ जा रहा था, जिससे आत्मविश्वास की डोर लगातार हाथ से छूट रही थी। अक्सर ख़यालों मे डींगे हाँकने वाली जुबान तालु से जाकर चिपक गई थी। भानु की वो सारी योजनाएँ पलायन कर चुकी थी जो उसने ख़यालों के परिसर मे बैठकर बनाई थी, की जब कभी सामना होगा तो वो ये कहेगी और प्रत्युतर में ऐसा कहुगा...आदि इत्यादि। रंजना भानु की उन आंखो को देख रही थी जो उसे परेशान किए हुये थी। रंजना की नजरे कभी भानु के चेहरे तो कभी भानु के बाएँ बाजू पे बने उगते सूरज के उस बड़े से टैटू को देख रही थी जिसके बीचों बीच “भानु” लिखा था। दोनों सहेलियाँ आज सज धज कर कहीं जाने की तैयारी मे थी। रंजना के हाथो मे पूजा-सामग्री रखी हुई एक थाली और दुर्गा पानी का कलश लिए हुये थी।
काफी देर दुर्गा उन दोनों को देखती रही मगर जब देखा की कोई कुछ बोल नहीं रहा तो उसने रंजना के कंधे पे हाथ रखकर भानु की तरफ देखते हुए कहा।
“अब बात करलो दोनों”, दुर्गा ने जैसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुये कहा।
“...ब...बात...! क्या बात”, भानु ने शरमाते हुये कहा और अपने आपको संभालने लगा।
रंजना खामोश मगर बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रही थी, जिसने उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी। दोनों आज आमने सामने खड़े होकर भी वही आँखों की भाषा ही बोल रहे थे। दोनों अपने को उसी भाषा मे सहज महसूस कर रहे थे। उन्हे जुबां पे भरोसा नहीं था। दुर्गा एक दूसरे को देखे जा रही थी।
“आज कहीं जा रहे हो”, भानु ने रंजना के बजाय दुर्गा से पूछा।
रंजना अभी भी भानु के चेहरे और उसके नाम के अनुरूप उसके बाजू पे गुदे सूरज के बीच मे लिखे “भानु” को देखे रही थी।
“हाँ, आज रामनवमी है, इसलिए सभी मंदिर जा रही हैं” बाकी लोग नीचे हमारा इंतजार कर रहे हैं। आप लोगों को जो बातें करनी है जल्दी जल्दी करलों नहीं तो कोई आ जाएगा।“, दुर्गा ने जल्दी जल्दी फुसफुसाकर कहा।
मगर तभी किसी ने नीचे से दुर्गा को पुकारा तो वो घबराकर रंजना का हाथ पकड़ नीचे जाने लगी। बूत बनी रंजना अभी भी बार बार पीछे मुड़कर भानु को देख रही थी। उनके जाने के बाद भानु देर तक उन्हे देखता रहा। वो आज भी कुछ नहीं बोल पाया।
वक़्त बीतता गया। क्वार्टर के आवंटन की अवधि खत्म होने पर भानु को दूसरा मकान खोजना पड़ा। जिस रास्ते से भानु कॉलेज जाता था उसी रास्ते मे एक मकान मिल गया। सयोंग से रंजना भी उसी रास्ते से कॉलेज जाती थी। रंजना और भानु दोनों के कॉलेज एक ही रास्ते पर थे, मगर समय अलग अलग था। भानु जब कॉलेज जा रहा होता तो उसी दरमियाँ रंजना भी उसी रास्ते से अपनी कुछ सहेलियों के साथ कॉलेज से वापिस आ रही होती। दोनों चोर नजरों से एक दूसरे की आंखो में देखते और पास से गुजर जाते। रंजना चाहती थी की भानु कुछ कहे और उधर भानु भी कुछ ऐसी ही उम्मीद पाले बैठा था। सहेलिया साथ होने के कारण रंजना भाऊ की तरफ देख नहीं सकती थी मगर प्यार करने वाले राहें निकाल लेते हैं। पास से गुजरते वक़्त रंजना सहेलियों से नजरें बचाकर, बिना पीछे मुड़े अपने हाथ को पीछे करके भानु को बाय बाय कह देती। भानु उसके इस इशारे को पाकर प्रफुल्लित हो जाता। प्रेम की कोई भाषा नहीं होती बस अहसास होता है। ये दोनों भी उसी अहसास से सरोबर थे।
वक़्त अपनी रफ्तार से गुजर रहा था और उधर दो प्रेमी चुपचाप वक़्त के सिने पे अपनी प्रेम कहानी लिखे जा रहे थे। दोनों के परीक्षाएँ आरंभ हो चुकी थी। समय-सारिणी अलग अलग होने से मुलाकातें भी बाधित हो गई। भानु सो रहा होता उस वक़्त रंजना कॉलेज के लिए जा रही होती। भानु के मकान का दरवाजा बंद देख रंजना मायूसी से सहेलियों के साथ आगे बढ़ जाती। दोनों को पता ही नहीं था की कौन किस वक़्त आता जाता है।
एक दिन भानु ने जल्दी उठकर दरवाजा खुला छोड़ दिया और खुद अंदर की तरफ दरवाजे के सामने चारपाई पे लेट गया। आज वो देखना चाहता था की रंजना किस वक्त कॉलेज जाती है। प्रियतमा के इन्तजार में बिछी पलकों को न जाने कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया। मगर जब दिल में चाहत का समुन्दर ठांठे मर रहा हो तो इन्तजार करती आँखों को रोक पाना मुश्किल होता है।
अचानक नींद से चौंककर उठे भानु की नजर खुले दरवाजे पे पड़ी और तभी रंजना सामने से मुस्कराती हुई निकल गई। भानु के कानों में घंटियाँ सी बचने लगी, एक नई स्फूर्ति के साथ वो बिस्तर से उठा और झट से दरवाजे के पास पहुंचा। रंजना आगे नकल गई थी। आज वो अकेली थी। कुछ दूर जाकर रंजना ने पीछे मुड़कर देखा तो भानु को दरवाजे के बिच में खड़ा देख मुस्कराकर हाथ हिलाया और आगे बढ़ गई।
मुद्दद से बंजर पड़ी जमीन पे बरसात की बूंदों सा अहसास लिए भानु ने मुस्कराकर रंजना की मुस्कराहट का जवाब दिया।
आज भानु का आखिरी पेपर था इसलिए वो आज रंजना से आमने सामने बात करके ही रहेगा. उसने निर्णय कर लिया था की जैसे ही दोपहर ढले रंजना कॉलेज से वापिस आएगी वो कुछ कहने की शुरुआत करेगा. आखिर कब तक ऐसे ही चलता रहेगा. आज का दिन भानु को कुछ ज्यादा ही लंबा महसूस हो रह आता. उसका दिल भी इस निर्णय के बाद कुछ ज्याद ही धडकने लगा था. उसने नोर्मल होने की बहुत कोशिश की मगर दिल कुलांचे मारने से बाज नहीं आया. ज्यों ज्यों मिलन की बेला पास आ रही थी उसकी रफ़्तार जोर पकड़ रही थी. आज सालभर का मूक प्यार जुबान पाने वाला था.
अचानक भानु को अपने सपने टूटते हुए से महसूस हुए. रंजना के साथ आज फिर उसकी दो सहेलियाँ थी, और वो जानता था वो और रंजना, इन सबके होते हुए कुछ नहीं बोल पाएंगे. दिल में उठा ज्वार दम तोड़ने लगा था. मगर प्यार भी उफनते हुए जल प्रपात की भांति रास्ता निकाल ही लेता है. भानु जानता था की रंजना की दोनों सहेलियाँ अगले मोड़ से दूसरी तरफ चली जायेगी और उसके आगे रंजना अकेली रहेगी. भानु से अपनी साईकिल निकाली और जल्दी से पीछे वाली सड़क से लंबा चक्कर लगाकर उस सड़क पर पहुँच गया जिस पर रंजना जा रही थी . उसने सामने से आती रंजना को देखा ! दिल अपनी रफ़्तार बद्द्स्तुर बढ़ाये जा रहा था. भानु का दिल और दिमाग दोनों आज बगावत पर उतर आये थे. भानु आज उन पर काबू नहीं कर पा रहा था. फासला निरंतर कम होता जा रहा था. रंजना ने देख लिया था की भानु सामने से आ रहा है. वो साईकिल पर था. निरंतर कम होते फासले ने दोनों दिलों की धडकनों में भूचाल सा दिया था. अचानक भानु की नजर दुर्गा के भाई पर पड़ी जो सामने से आ रहा था. भानु का मस्तिष्क झनझनाकर गया था. भानु नहीं चाहता था की दुर्गा के भाई को उनके प्यार का पता चले और फिर इस तरह बात पूरी कॉलोनी में फ़ैल जाये. लेकिन आज उसने फैसला कर लिया था की रंजना से मुखातिब होकर रहेगा. फासला और कम हो गया था. अब वो रंजना को साफ साफ देख सकता था. वो मात्र २० कदम की दुरी पर थी. बहुत कम मौके मिले उन दोनों को ये फासले कम करने के मगर कभी बात नहीं हो पाई. आज वो दोनों अपना संकोच तोड़ देना चाहते थे। दोनों अपना हाल-ए-दिल कह देना चाहते थे।
रंजना ने अपनी किताबों को कसकर सिने से लगा लिया था जहां उसका दिल तूफान मचाए हुआ था। उसके खुद के कदम आज उसके बस मे नहीं थे। ज्यों ज्यों फासला कम हो रहा था दोनों अपने दिलोदिमाग से कंट्रोल खोते जा रहे थे। सलभर से सिने मे दबे अरमान आज मचलकर जुबान पे आना चाहते थे। भानु रंजना के पास पहुँचकर साइकिल से उतरना चाहता था मगर उधर दुर्गा का भाई पास आ चुका था।
“रंजना!”, भानु ने रंजना के पास से गुजरते हुये धीरे से कंपकपाती आवाज मे कहा ताकि दुर्गा का भाई न सुन सके।
“ऊँ”, ‘रंजना ने मुस्कराते हुये भानु की तरफ देखकर कहा।
आज वो भी भानु से बहुत कुछ कहने के लिए उदिग्न लग रही थी। दोनों एक दूसरे के मन की बात अपनी जुबां से कहने और कानो से सुनने को लालायित थे। दिल की बात जब जुबां पे आ जाए तो वो प्यार की पूर्ण सहमति बन जाती है। दिल के सभी संशय खत्म हो जाते हैं और प्यार मे प्रगाढता आती है।
आज इतने पास से उन दो जोड़ी आंखो ने एक दूसरे मे झाँककर देखा था। मगर पलभर का वो मिलन तुरंत जुदाई मे बदल गया था। भानु अपनी उसी गति से रंजना के पास से गुजर गया और उधर रंजना पीछे मुड़कर उसे देखती रही। तभी रंजना ने भी देखा की दुर्गा का भाई आ रहा है तो वो भी पलटकर तेज़ तेज़ कदमों से अपने घर की तरफ चल पड़ी।