गद्य कोश पहेली 27 अक्तूबर 2013
............पश्चिम हिन्दुस्तान के एक बड़े नगर में जाड़े की ऋतु लगभग आ पहुंची थी। रामकृष्ण परमहंस के एक नये शिष्य को किसी एक शुभ कार्य की भाषण-सभा में उपेन्द्र को सभापति बनाया जाये, और उस पद की मर्यादा के अनुकूल जो कुछ कर्तव्य हैं, उनका भी अनुष्ठान पूरा करा लिया जाये, इसी प्रस्ताव को लेकर एक दिन सवेरे कॉलिज के विद्यार्थियों का दल उपेन्द्र के पास पहुंच गया। उपेन्द्र ने पूछा, ‘‘शुभ कार्य क्या है, जरा मैं भी तो सुनूं।’’ उन लोगों ने बताया कि अभी तक इस बात को वे भी नहीं जान पाये। स्वामीजी ने कहा है, इसी बात को वे सभा में ठीक तरह से समझाकर बतायेंगे और सभा बुलाने की तैयारी और आवश्यकता बहुत अंशों में इसी के लिए है। उपेन्द्र इस बात पर सहमत हो गये। ऐसी ही थी उनकी आदत। विश्व-विद्यालय की परीक्षाओं को उन्होंने इतनी अच्छी तरह उत्तीर्ण कर लिया था कि छात्रों की मण्डली में उनकी प्रतिष्ठा की कोई सीमा नहीं थी। इसलिए, काम-काज, आपद-विपद, में वे लोग जब कभी आ जाते थे, तब वे उनके निवेदन और अनुरोधों की उपेक्षा, उनके प्रति ममता के कारण नहीं कर सकते थे। विश्वविद्यालय की सरस्वती को पार करके अदालत की लक्ष्मी की सेवा में नियुक्त हो जाने के पश्चात् भी, लड़कों के जिमनास्टिक के अखाड़े से लेकर फुटबॉल, क्रिकेट और डिबेटिंग क्लब तक के ऊंचे-स्थान पर उनको ही बैठना होता था। लेकिन इन स्थानों पर सिर्फ चुपचाप बैठे रहना ही नहीं था, कुछ बोलना आवश्यक था। एक लड़के की ओर देखकर उन्होंने कहा, ‘‘कुछ बोलना तो अवश्य पड़ेगा। सभापति बनकर सभा के उद्देश्य के सम्बन्ध में एकदम ही अनभिज्ञ रहना तो मुझे अच्छा नहीं लगता, क्या कहते हैं आप लोग ?........ |
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- ........यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
- यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
- यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
- यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
- इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
- यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
- 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
- मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था ........