गद्य कोश पहेली 29 अक्तूबर 2013
............चार या पाँच वर्ष पहले निकट के साथियों के आग्रह से मैने आत्मकथा लिखना स्वीकार किया और उस आरम्भ भी कर दिया था। किन्तु फुल-स्केप का एक पृष्ट भी पूरा नहीं कर पाया था कि इतने में बम्बई की ज्वाला प्रकट हुई और मेरा काम अधूरा रह गया। उसके बाद तो मैं एक के बाद एक ऐसे व्यवसायो में फँसा कि अन्त में मुझे यरवाड़ा का अपना स्थान मिला। भाई जयरामदास भी वहाँ थे। उन्होने मेरे सामने अपनी यह माँग रखी कि दूसरे सब काम छोड़कर मुझे पहले अपनी आत्मकथा ही लिख डालनी चाहिये। मैने उन्हें जवाब दिया कि मेरा अभ्यास-क्रम बन चुका हैं औऱ उसके समाप्त होने तक मैं आत्मकथा का आरम्भ नही कर सकूँगा। अगर मुझे अपना पूरा समय यरवाड़ा मे बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो मैं जरुर आत्मकथा वहीं लिख सकता था। परन्तु अभी अभ्यास क्रम की समाप्ति में भी एक वर्ष बाकी था कि मैं रिहा कर दिया गया। उससे पहले मैं किसी तरह आत्मकथा का आरम्भ भी नहीं कर सकता था। इसलिए वह लिखी नही जा सकी। अब स्वामी आनन्द मे फिर वही माँग की हैं। मैं दक्षिण अफ्रीका के सत्यग्राह का इतिहास लिख चुका हूँ, इसलिए आत्मकथा लिखने को ललचाया हूँ। स्वामी की माँग तो यह थी कि मैं पूरी कथा लिख डालूँ और फिर वह पुस्तक के रुप में छपे। मेरे पास इकट्ठा इतना समय नहीं हैं। अगर लिखूँ तो 'नवजीवन' के लिए ही मैं लिख सकता हूँ। मुझे 'नवजीवन' के लिए कुछ तो लिखना ही होता हैं। तो आत्मकथा ही क्यों न लिखूँ ? स्वामी ने मेरा यह निर्णय स्वीकार लिखा और अब आत्मकथा लिखने का अवसर मुझे मिला। किन्तु यह निर्णय करने पर एक निर्मल साथी ने, सोमवार के दिन जब मैं मौन में था, धीमे से मुझे यों कहा, 'आप आत्मकथा क्यो लिखना चाहते हैं ? यह तो पश्चिम की प्रथा हैं। पूर्व में तो किसी मे लिखी जानी नहीं। और लिखेंगे क्या ? आज जिस वस्तु को आप सिद्धान्त के रुप में मानते हैं, उसे कल मानना छोड़ दे तो ? अथवा सिद्धान्त का अनुसरण करके जो भी कार्य आज आप करते हैं, उन कार्यों में बाद में हेरफेर करें तो ? बहुत से लोग आपके लेखो को प्रमाणभूत समझकर उनके अनुसार अपना आचरण गढ़ते हैं। वे गलत रास्ते पर चले जायें तो ? इसलिए सावधान रहकर फिलहाल आत्मकथा जैसी कोई चीज न लिखे तो क्या ठीक न होगा ?' इस दलील का मेरे मन पर थोड़ा बहुत असर हुआ। लेकिन मुझे आत्मकथा कहाँ लिखनी हैं ? ........ |
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- ........यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
- यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
- यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
- यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
- इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
- यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
- 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
- मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था ........