गद्य कोश पहेली 30 अक्तूबर 2013
............यह संभवतः ९० की बात होगी, मैं कुमाऊं वि. वि. से 'वर्तमान हिन्दी कथा लेखन और दाम्पत्य जीवन' विषय पर पी.एच.डी. के लिए शोध कर रही थी। शोध के सिलसिले में मुझे कुछ लेखिकाओं के पतों की जरूरत थी जिसके लिए मैंने 'हंस' के तत्कालीन सहायक संपादक हरिनारायण से संपर्क किया और उन्होंने मेरी सहायता भी की। मैं 'हंस' नियमित मंगाने लगी। इस साहित्यकार की भी चर्चा मिलने-जुलने वालों से प्रायः होती रहती थी लेकिन तब तक उन्हें देखने और उनसे व्यक्तिगत परिचय का सुयोग नहीं बना था। कथाक्रम २००० के आयोजन में जब मैं लखनऊ गई तो पहली बार उन्हें देखने-मिलने और बातचीत का ही अवसर मुझे नहीं मिला बल्कि एक छोटा सा इंटरव्यू भी मैंने इस साहित्यकार का लिया। तब तक इस साहित्यकार के बारे में जो कुछ सुना था, उनको देखकर, उनसे मिलकर और बातचीत करने के बाद मेरे मन में उनकी पूर्वनिर्मित छवि खंडित नहीं हुई बल्कि और मजबूत हुई। पिफर तो दिल्ली आने के बाद हम लगभग पड़ोसी हो गए पहले हिंदुस्तान टाइम्स अपार्टमेंट्स में और अब उना के ठीक बगल आकाश दर्शन में। इस साहित्यकार के ७५वें जन्मदिन के अवसर पर उन पर केन्द्रित पुस्तक संपादित करने की योजना भारत भारद्वाज के साथ मिलकर जब हमने बनाई थी, तब हमारे सामने योजना की रूपरेखा स्पष्ट नहीं थी। पहली बात यह थी कि इस साहित्यकार यादव के लेखन की तरह उनके जीवन के भी अनेक दृश्य और अदृश्य रूप और आयाम हैं, जिनको एक खास परिधि के भीतर समेटना हमारे लिए ही नहीं बल्कि किसी के लिए भी मुश्किल होता। जब कुछ मित्राों और खुद इस साहित्यकार के साथ विचार-विमर्श के बाद कुछ बातें सापफ हुईं तो एक दूसरी दिक्कत दरपेश आई। कुछ बुजुर्ग साहित्यकारों को यह योजना पसंद नहीं आई। सहयोग की बात तो दूर उन्होंने अपने भरसक चुनौती देते हुए हमें हतोत्साहित करने का भरपूर प्रयास किया। चूंकि इस योजना के प्रति हम दृढ़ संकल्प थे, इस कारण न हम निराश हुए और न उदास बल्कि पूरे प्राणप्रण से हम इसमें जुट गए। यह सच है कि हमें अपने प्रयास में लेखकों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला लेकिन जो मिला वह कम नहीं था। सच्चाई यह भी है कि 'हमारे युग का खलनायक इस साहित्यकार ' शीर्षक पुस्तक उनके ७५वें जन्मदिन पर नहीं बल्कि एक वर्ष विलंब से यानी उनके ७६ वें जन्मदिन पर (२००५) भेंट की गई। ........ |
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- ........यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
- यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
- यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
- यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
- इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
- यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
- 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
- मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था ........