गद्य कोश पहेली 31 अक्तूबर 2013
............ प्रश्न- आप पर नास्तिक होने का आरोप लगता है। उत्तर - एक सूक्त आपसे मैं कहना चाहता हूं। धर्म एव हतो हन्ति. धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। मनु स्मृति का सूक्त है यह। क्या मतलब है इसका...? ये कि मरा हुआ धर्म तुमको मार डालेगा। और जीवित धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा। तो कौन सा मरा धर्म है और जीवित धर्म क्या है... ? धर्म की अनुभूति थी। उसकी अनुभूति बड़े बड़े संतों को हुई... ज्ञानियों को हुई... प्रज्ञापुरुषों को हुई... महात्माओं को हुई... गांधीजी को हुई... टैगोर को हुई... राम को हुई ... कृष्ण को हुई... बुद्ध को हुई... मुहम्मद साहब को हुई। लेकिन बाद के लोगों ने तोते के समान उसको रटना शुरू कर दिया। तो आज जिस धर्म को लेकर तुम लोग चल रहे हो वो धर्म नही धर्म की लाश है..। उस लाश को जब तक घर से नहीं निकाला जाएगा तब तक संसार का कल्याण होने वाला नहीं है। आज का धर्म नहीं धर्म की लाश है..। लाश को कितने दिन रखा जाता है घर में ? धर्म के नाम पर क्या हो रहा है..। धर्म तो दिखता ही नहीं है संसार में... धर्म होता तो ये सब हो रहा होता क्या...? कितने धर्म के नाम पर विचार बने संसार में उन्होंने क्या किया...? आदमी का खून बहाया और कुछ नहीं किया। जब तक इस धर्म की लाश को घर से बाहर नहीं निकालोगे तब तक संसार का कल्याण होने वाला नहीं है। प्रश्न- तो आप किसी भी धर्म को नहीं मानते? उत्तर- मैं अपने आप को न हिंदू मानता हूं, न मुसलमान, न कोई और धर्म में आस्था रखने वाला। सिर्फ मनुष्य...। कवि का धर्म सिर्फ मनुष्य बनकर अपनी कविता के माध्यम से मनुष्य तक पहुंचना है... इसके अलावा और कुछ नहीं जानता मैं धर्म के बारे में। मैं किसी धर्म में विश्वास नहीं करता। धार्मिकता में विश्वास करता हूं मैं... धर्म मे नहीं। धार्मिकता बड़ी चीज़ है... धर्म के नाम पर तो लोग तिलक भी लगाते हैं, पूजा पाठ भी करते हैं, अजान भी करते हैं... पर धार्मिकता बड़ी चीज़ है..। जाति-पाति से बड़ा धर्म है। प्रश्न- दुनिया घूमा। आदमी दिखाई दिये तरह तरह के। कितनी शक्लें दिखाई दीं। कोई हिंदू दिखाई दिया, कोई हिंदू, कोई मुसलमान। एक इंसान नहीं दिखाई पड़ा। बस। उत्तर- एक गज़ल के दो-तीन शेर हैं। अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए। कवि होना पूर्णता का प्रतीक है..। पूर्व जन्म का कोई बड़ा पुण्य होता है तब आदमी कवि बनता है..। क्यों..? आत्मा के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य। मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य..। अभी इतना ही। फिर कभी...। ........ |
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- ........यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
- यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
- यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
- यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
- इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
- यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
- 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
- मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था ........