गूँज भाग 1 / महावीर प्रसाद

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शहनाज और सुनीता एक-दूसरे पर जान लुटाती हैं। दोनों ने इसी वर्ष हिंदी से एम. ए. किया है और दोनों डॉ. अनुग्रह प्रसाद के निर्देशन में पी. एच. डी. कर रही हैं। सुनीता अपने परिवार के साथ वाराणसी स्थित लंका महल्ला में रहती है और शहनाज अपने माता-पिता के साथ जंगमबाड़ी में। आज जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी से दोनों लौटीं तो सुनीता ने आग्रह के साथ शहनाज को अपने घर पर रोक लिया। नाश्ता-चाय के पश्चात् दोनों गपशप में मशगूल हो गईं। सुनीता ने कहा,

‘‘शहनाज मैं तेरी जुदाई बरदाश्त नहीं कर सकूँगी।’’

‘‘हम दोनों जुदा ही क्यों होंगे ?’’ शहनाज ने पूछा।

‘‘वह तो होंगे ही शादी के बाद मैं कहीं और चली जाऊँगी, तुम कहीं और।’’

‘‘मैं तो यहीं रहूँगी वाराणसी में, तुम अपनी सोचो।’’

‘‘तुम्हारी शादी यहाँ हो सकती है, मेरी तो असंभव है।’’

‘‘क्यों ?’’

‘‘मेरे पिताजी जहाँ भी बात चलाते हैं, चार-पाँच लाख से कम की बात नहीं होती है। पता नहीं, समाज कब बदलेगा !’’ शहनाज ने कहा, ‘‘इसे बदलने में तो सदियाँ बीत जाएँगी।’’

‘‘काश, मैं मर्द होती !’’

‘‘अगर मर्द होती तो क्या करतीं तुम ?’’

सुनीता ने कहा, ‘‘तुम्हें ब्याह कर अपने घर लाती।’’

‘‘मुझमें ऐसी क्या खूबी है ?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं, शहनाज, कि तुम कितनी खूबसूरत हो ! तुम तो सौंदर्य की साक्षात् देवी हो। जी तो करता है कि तुम्हें चूम लूँ, हृदय से लगा लूँ।’’


‘‘फिर तो तुलसीदास की बात गलत साबित हो गई।’’

शहनाज की बात को न समझते हुए सुनीता ने पूछा, ‘‘वह कैसे ?’’

‘‘तुलसीदास ने रामायण में लिखा है- मोह न नारि नारि कै रूपा।’’

‘‘लेकिन तुम सीता की तरह अपवाद हो।’’

‘‘वह कैसे ?’’

‘‘तुलसीदास ने ही सीता के लिए रामायण में लिखा है-रंगभूमि जब सिय पगु धारी, देखि रूप मोहे नर नारी।’’

‘‘तुमने तो मुझे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया। कहाँ सीता, कहाँ मैं !’’

‘‘तुम हो ही ऐसी, शहनाज। तुम्हारे रूप सौंदर्य को देखकर तो एक-से-एक फिल्मी हस्तियाँ अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाएँगी।’’

‘‘ईश्वर ने बना दिया तो मैं क्या करूँ ?’’

‘‘उस मर्द के भाग्य खुल जाएँगे, जिसे तुम मिलोगी। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिस मर्द के साथ तुम्हारी शादी हो उसी के साथ में भी निकाह पढ़ा लूँ ?’’

‘‘मेरी दोस्ती की खातिर तुम अपना मजहब छोड़ दोगी ?’’

‘‘क्यों नहीं ? तुमसे मुझे इतना प्यार जो है। लेकिन मैं ऐसे किसी मर्द को पसंद नहीं करूँगी, जिसका मन एक औरत से न भरता हो।’’

‘‘तुम्हारे मजहब में तो मर्दों को चार-चार औरतें रखने की छूट है।’’

‘‘मैं इसे गलत मानती हूँ।’’

‘‘अगर तुम्हें ऐसा ही मर्द मिल गया तो ?’’

‘‘मैं उसे छोड़ दूँगी।’’

‘‘बशर्ते काजी इजाजत देगा। तुम्हारे मजहब में मर्द तीन बार ‘तलाक’ शब्द का उच्चारण करके छुट्टी पा सकता है, लेकिन औरत ऐसा नहीं कर सकती। उसे खुला1 के लिए काजी का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। फैसला ज्यादातर मर्द के पक्ष में होता है। तुम्हारा मजहब मर्दपरस्त है, औरतें तो उनकी खेतियाँ2 हैं।’’

तभी तो मैंने फैसला कर लिया है कि मैं अपनी शादी अपनी मर्जी से करूँगी।’’ शहनाज ने कहा।

लेकन करोगी किससे ?’’

‘‘जो मेरे मन के अनुरूप होगा।’’

‘‘तेरा मजहब औरतों की आजादी का पक्षधर नहीं है।’’

‘‘लेकिन मेरा परिवार सभी प्रकार की आजादी का पक्षधर है।’’

‘‘यह तो मैं देख रही हूँ। एक तुम ही हो, जो बिना बुर्का के यहाँ आती हो, वरना सभी मुसलिम लड़कियाँ बुर्के में रहती हैं। कॉलेज के बाहर होते ही अपने को काले लबादे में कैद कर लेती हैं। पता नहीं, इस इक्कीसवीं सदी में भी पढ़ी-लिखी औरतें क्यों इस रूढ़िवादी परंपरा को ढो रही हैं।’’


1. औरतों द्वारा मर्द को तलाक दिए जाने को ‘खुला’ कहते हैं।

2. कुरान शरीफ में औरतों को मर्दों की ‘खेतियाँ’ कहा गया है। कुरान शरीफ, शूरे बकर, पारा 2, रूकू 28, आयत 223, पृष्ठ 77, शेरवानी संस्करण, किताबघर, लखनऊ।