गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 1 / असगर वज़ाहत

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पात्र

मोहनदास करमचंद गांधी, नाथूराम गोडसे, बावनदास (फणीश्वगर नाथ रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' का पात्र), सुषमा शर्मा (दिल्ली की एक मिडिल क्लास फैमिली की लड़की जिसने बी.ए. पास किया है जो महात्मा गांधी की अंधभक्त हैं।),नवीन जोशी (दिल्ली कॉलेल में अंग्रेजी के युवा प्राध्यायपक), निर्मला शर्मा (सुषमा शर्मा की माँ, हरियाणा की निवासी है),प्यारे, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, नाना आप्टे, विष्णुँ करकरे तथा अन्य।

(मंच पर अँधेरा है। उद्घोषणा समाचार के रूप में शुरू होती है।)

'ये ऑल इंडिया रेडियो है। अब आप देवकी नंदन पांडेय से खबरें सुनिए। समाचार मिला है कि ऑपरेशन के बाद महात्मा गांधी की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। उन पर गोली चलानेवाले नाथूराम गोडसे को अदालत ने 15 दिन की पुलिस हिरासत में दे दिया है। देश के कोने-कोने से हजारों लोग महात्मान गांधी के दर्शन करने दिल्ली पहुँच रहे हैं।'

(आवाज फेड आउट हो जाती है और मंच पर रोशनी हो जाती है। गांधी के सीने में पट्टि‍याँ बँधी हैं। वे अस्पताल के कमरे में बिस्तर पर लेटे हैं। उनके हाथ में अखबार है। मंच पर प्याँरेलाल आते हैं।)

प्यारेलाल : बापू, डॉक्टंरों का कहना है कि अभी कम (गांधी अखबार नीचे रख देते हैं) से कम 15 दिन तक दवाएँ लेनी पड़ेंगी।

गांधी : प्यारेलाल, अब मैं ही अपना डॉक्टर हूँ.... जब मैं बेहोश था तो दूसरी बात थी।

प्यारेलाल : बापू, आपको पता नहीं हैं..... कितना खून बहा है आपका...

गांधी : मुझे, ये मालूम है कि मुझे कितने खून की जरूरत है और मेरे शरीर में

कितना है।

प्यारेलाल : आप कम-से-कम डॉक्टनरों की बात तो....

गांधी : (बात काट कर) मुझे मरीजों की देखभाल करने का अच्छा अनुभव है प्या रेलाल... तुम फिक्र मत करो (कागज बढ़ाते हुए)... ये दो किताबें मुझे चाहिए हैं, किसी को भेज कर मँगा दो।

(प्या‍रेलाल कागज लेकर बाहर निकल जाते हैं। दूसरी तरफ से सुषमा अंदर आती है। गांधी जी के पैर छूती है तो वे अखबार हटाकर उसे देखते हैं।)

गांधी : कौन हो तुम? क्या बात है?

सुषमा : मेरा नाम सुषमा है।

गांधी : क्या करती हो?

सुषमा : बी.ए. का इम्तिहान दिया है।

गांधी : तो अब?

(नवीन अंदर आता है। गांधी उसे देखते हैं।)

सुषमा : ये नवीन है बापू।

गांधी : तुम क्यों आए हो?

नवीन : आपके दर्शन करने...

गांधी : दर्शन? क्या मैं तुम्हें मंदिर में लगी मूर्ति लगता हूँ?

नवीन : ज्जे...जी...

गांधी : तुम लोग अपना भी समय बर्बाद करते हो और मुझे भी परेशान करते हो..।

सुषमा : बापू, हमलोग आपके साथ देश सेवा....

गांधी : (बात काट कर) नवीन तुम क्या करते हो?

नवीन : बापू, मैं दिल्ली कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाता हूँ...।

गांधी : देश सेवा तो तुम कर रहे हो.... और लड़की तुम?

सुषमा : बापू, मैं आपके आश्रम.. में...।

(प्यारेलाल का प्रवेश। वे घूर कर सुषमा और नवीन को देखते हैं)

प्यारेलाल : आप लोग कौन हैं? और अंदर कैसे आ गए? आपको

मालूम है....डॉक्टरों ने बापू को 'कंपलीट रेस्ट' बताया

है... मेहरबानी करके बाहर जाइए।

गांधी : प्यारेलाल यहाँ तुमलोगों को ठहरने नहीं देगा... कल प्रार्थना सभा में आना।

(सुषमा और नवीन नमस्कार करके बाहर निकल जाते हैं। नेहरू, पटेल और मौलाना आते हैं)

नेहरू : आप कैसे हैं बापू?

गांधी : ठीक हूँ..।

पटेल : ड्रेसिंग हो रही है?

गांधी : मैं, खुद ही कर रहा हूँ...।

मौलाना : आप?

गांधी : हाँ... हाँ... क्यों.... अब जख्म सूख रहा है।

मौलाना : आपकी खैरियत मालूम करने को पूरा मुल्क बेचैन है।

नेहरू : ब्रिटेन के किंग जार्ज और प्राइम मिनिस्टचर रिचर्ड हेडली के केबिल भी आए हैं।

मौलाना : पोस्टे टेलीग्राफ वालों को इतने खत और तार कभी मिले ही नहीं... डाकखानों में जगह ही नही है।

पटेल : बापू.. नाथूराम गोडसे ने सब कुबूल कर लिया है।

गांधी : कौन है ये? क्याे करता था?

पटेल : पूना का है.. वहाँ से एक मराठी अखबार निकालता था...सावरकर उसके गुरू हैं हिंदू महासभा से भी उसका संबंध है...ये वही हैं जिन्हों ने प्रार्थना सभा में बम विस्फोरट किया था...बहुत खतरनाक लोग हैं...।

गांधी : (कुछ सोच कर) मैं गोडसे.. से मिलना चाहता हूँ...।

सब : (हैरत से) ...जी?

गांधी : हाँ.... मैं गोडसे से मिलना चाहता हूँ... परसो ही मिलूँगा, डिस्चार्ज होते ही।

नेहरू : बापू, परसों तो हमने रामलीला मैदान में एक बहुत बड़ी मीटिंग रखी है, जहाँ कम-से-कम एक लाख...।

गांधी : मैं पहले गोडसे से मिलूँगा....।

पटेल : क्यों बापू.. वह आपकी हत्या करना चाहता था...।

गांधी : मिलने की यही वजह हैं।

नेहरू : बापू यह सुन कर पूरा देश परेशान हो जाएगा कि आप गोडसे से मिलने जा रहे हैं।

गांधी : आदमी परमात्मार की सबसे बड़ी रचना है... उसे समझने में समय लगता है।... मैं जाऊँगा।

पटेल : तो हम सब आपके साथ जाएँगे।

गांधी : (बात काट कर) ...नहीं, मैं गोडसे से अकेले मिलना चाहता हूँ...।

नेहरू : अकेले?

(पर्दा गिरता है मंच पर अँधेरा।)