गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 2 / असगर वज़ाहत

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(मंच पर अँधेरा है। उदघोषणा होती है)

उद्घोषणा : 'गांधीजी अपनी जिद पर डटे रहे। बड़े-बड़े नेताओं के अपील करने, अखबारों के एडीटरों की राय और जनता के निवेदन के बावजूद वे नाथूराम गोडसे से मिलने गए। राज हठ और बाल हठ के साथ लोगों ने गांधी हठ को भी जोड़ दिया। गांधी अपने प्रोग्राम के मुताबिक ठीक आठ बजे तिहाड़ जेल के गेट पर पहुँच गए।'

(धीरे-धीरे प्रकाश आता है। जेल में नाथूराम अपनी कोठरी में सीखचों के पीछे खड़ा है। सामने से गांधी आते हैं। उनके साथ जेलर है।)

गांधी : (नाथूराम को देख कर)... यह क्‍या है? बीच में लोहे की सलाखें क्‍यों हैं?

जेलर : महात्‍मा जी... यही हुक्‍म मिला है कि...

गांधी : नहीं.. ये नहीं हो सकता... इस तरह से कोई बात नहीं हो सकती... नाथूराम को बाहर निकालो।

जेलर : महात्‍मा जी...मैं...मुझे... माफ करें

गांधी : वल्‍लभ से पूछो..।

जेलर : कहा गया है..जैसा आप कहें...

गांधी : तो ठीक है... गोडसे को बाहर निकालो।

(हवलदार लोहे के फाटक का ताला खोलता है। नाथूराम बाहर निकाला जाता है। उसमें हथकड़ि‍याँ और बेड़ि‍याँ पड़ी हैं।)

गांधी : (जेलर से) .. नाथूराम की हथकड़ि‍याँ और बेड़ि‍याँ खोल दो..।

(हवलदार नाथूराम की हथकड़ि‍याँ और बेड़ि‍याँ खोल देता है।)

गांधी : (जेलर से) .. अब तुम जाओ।

जेलर : (हैरत से) .. क्‍या महात्‍मा जी?

गांधी : हाँ अब तुम जाओ..।

जेलर : लेकिन आपकी सिक्‍युरिटी के लिए...

गांधी : (बात काट कर) .. मुझे विश्‍वास है, नाथूराम मुझ पर हमला नहीं करेगा।

(जेलर और हवलदार चले जाते हैं।)

(धीरे-धीरे गांधी जी नाथूराम के सामने खड़े हो जाते हैं। नाथूराम उनकी तरफ नफरत से देखता है और मुँह फेर लेता है। गांधी भी उधर मुड़ जाते हैं, जिधर गोडसे ने मुँह मोड़ा है। अंतत: दोनों आमने-सामने आते हैं। गांधी हाथ जोड़ कर गोडसे को नमस्‍कार करते हैं। गोडसे कोई जवाब नहीं देता।)

गांधी : नाथूराम..परमात्‍मा ने तुम्‍हें साहस दिया.. और तुमने अपना अपराध कुबूल कर लिया.. सच्‍चाई और हिम्‍मत के लिए तुम्‍हें बधाई देता हूँ।

नाथूराम : मैंने तुम्‍हारी बधाई पाने के लिए कुछ न‍हीं किया था।

गांधी : फिर तुमने अपना जुर्म कुबूल क्‍यों किया है?

नाथूराम : (उत्तेजित हो कर) जुर्म.. मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने यही बयान दिया है कि मैंने तुम पर गोली चलाई थी। मेरा उद्देश्‍य तुम्‍हारा बध करना था...

गांधी : तो तुम मेरी हत्‍या को अपराध नहीं मानोगे?

नाथूराम : नहीं...

गांधी : क्‍यों?

नाथूराम : क्‍योंकि मेरा उद्देश्‍य महान था..

गांधी : क्‍या?

नाथूराम : तुम हिंदुओं के शत्रु हो..सबसे बड़े शत्रु..इस देश को और हिंदुओं को तुमसे बड़ी हानि हुई है...हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान अर्थात हिंदुत्व को बचाने के लिए एक क्‍या मैं सैकड़ों की हत्‍या कर सकता हूँ।

गांधी : ये तुम्‍हारे विचार हैं.. मैं विचारों को गोली से नहीं, विचारों से समाप्‍त करने पर विश्‍वास करता हूँ...

नाथूराम : मैं अहिंसा को अस्‍वीकार करता हूँ।

गांधी : तुम्‍हारी मर्जी... मैं तो यहाँ केवल यह कहने आया हूँ कि मैंने तुम्‍हें माफ कर दिया।

नाथूराम : (घबरा कर) ... नहीं-नहीं.. ये कैसे हो सकता है?

गांधी : मैं अदालत में बयान देने भी नहीं जाऊँगा।

नाथूराम: (अधिक घबरा कर) नहीं.. नहीं.. तुम ये नहीं कर सकते।

गांधी : (शांत स्‍वर में) गोडसे..तुमने अपनी अंतरात्‍मा की आवाज सुनी.. मुझे मेरी अंतरात्‍मा की आवाज सुनने दो..।

नाथूराम : तुम्‍हारी हत्‍या के आरोप में मैं फाँसी पाना चाहता था।

गांधी : परमात्‍मा से माँगो, तुम्‍हारे मन को शांत रखे... दूसरे के लिए हिंसा अपने लिए भी हिंसा..ये क्‍या है नाथूराम...तुम ब्राह्मण हो, ब्राह्मण के कर्म में ज्ञान, दया, क्षमा और आस्तिकता होनी चाहिए।

नाथूराम : मुझे मेरा कर्म मत समझाओ गांधी... मैं जानता हूँ।

गांधी : ईश्‍वर तुम्‍हें शांति दे...।

(गांधी मुड़ जाते हैं। गोडसे उन्‍हें देखता रहता है।)