गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 3 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा)

उद्घोषणा : सुषमा और नवीन एक-दूसरे से प्‍यार करते हैं। सुषमा गांधी से इतना प्रभावित है कि अगर गांधी के नाम पर कोई उसकी जान भी माँगे तो वह दे सकती है। नवीन गांधी का प्रशंसक है लेकिन अंधभक्‍त नहीं है। लेकिन सुषमा के प्‍यार ने उसे गांधी के और करीब ला दिया है। सुषमा गांधी के साथ देश सेवा कारना चाहती है। महात्‍मा ने उसे यह अवसर दे दिया है लेकिन नवीन के बारे में गांधी का यह कहना है कि वह दिल्‍ली कॉलेज में पढ़ा रहा है और यही देश सेवा है। उन्‍होंने नवीन को अपने साथ आने की अनुमति नहीं दी है। अब यह ऐसा मौका है कि प्रेमी और प्रेमिका एक-दूसरे से बिछड़नेवाले तो नहीं है लेकिन कुछ दूर होने के डर से घबराए हुए हैं।

(धीरे-धीरे मंच पर रोशनी आती है। एक कोने में नवीन और सुषमा खड़े हैं।)

नवीन : लेकिन गांधी जी मुझे अपने साथ क्‍यों नहीं रखना चाहते?

सुषमा : उन्‍होंने कहा तो.. आप देश सेवा कर रहे हैं..दिल्‍ली कॉलेज में पढ़ा रहे हैं न?

नवीन : (गुस्‍से में).. अरे यार, ऐसी-तैसी में गया दिल्‍ली कॉलेज.. मैं तुम्‍हारे पास होना चाहता हूँ।

सुषमा : हम मिलते रह सकते हैं... अभी तो बापू दिल्‍ली में ही हैं... जब कहीं जाएँगे तो देखा जाएगा..।

नवीन : कहीं उन्‍हें शक तो नहीं हो गया?

सुषमा : कैसा शक?

नवीन : मतलब हमारी 'रिलेशनशिप' का पता तो नहीं चल गया है?

सुषमा : मुझे नहीं लगता।

(प्रकाश नवीन और सुषमा के ऊपर से हट जाता है। पूरे मंच पर प्रकाश आता है। गांधीजी चरखा चला रहे हैं। प्‍यारेलाल उनके पास बैठे कुछ लिख रहे हैं।)

प्‍यारेलाल : बापू, ये नहीं हो सकता।

गांधी : क्‍या?

प्‍यारेलाल : दस हजार चिट्ठि‍यों के जवाब नहीं दिए जा सकते।

गांधी : रास्‍ता निकालो..तुम जल्‍दी ही घबरा जाते हो..ऐसा करो.. एक शहर से आई चिट्ठि‍यों का एक जवाब लिखो..उसमें यह लिख दो कि यह चिट्ठी उसी शहर के इन-इन लोगों को दिख दी जाए। समझे?

प्‍यारेलाल : समझ गया.. लेकिन फिर भी..।

गांधी : करो.. ये बताओ.. कि मीटिंग में जो मैं कहने जा रहा हूँ उसके नोट्स तुमने देख लिए हैं?

प्‍यारेलाल : हाँ, देख लिए हैं। बापू आपकी बातें.. कभी-कभी समझ में नहीं आतीं।

गांधी : कौन सी बातें?

प्‍यारेलाल : यही जो आज की मीटिंग का मुद्दा है.. मेरी तो समझ में आया नहीं।

गांधी : उसके बारे में..मैं दो बार बात नहीं करूँगा.. नेहरू, सरदार और मौलाना को आ जाने दो.. जो बातें होंगी तुम्‍हारे सामने ही होंगी..

(नेहरू, सरदार और मौलाना आजाद मंच पर आते हैं।)

पटेल : आप कैसे हैं बापू?

गांधी : तुम देख रहे हो... इस उम्र में जितना शारीरिक बल होना चाहिए उतना आ गया है... आध्‍यात्मिक शक्ति को बढ़ाने का प्रयास कर रहा हूँ।

नेहरू : आपने दवाएँ खाना क्‍यों छोड़ दिया है?

गांधी : अपनी खुराक को ही मैंने दवा बना लिया है... इसीलिए दवाओं की जरूरत नहीं है (कुछ कागज उठाते हुए).. आज मैंने तुम लोगों को बड़ी... विशेष... बात करने के लिए बुलाया है... सवाल बहुत कठिन है, लेकिन परमात्‍मा हमें साहस देगा, ऐसा मेरा विश्‍वास है... कठिन मौकों पर वही मदद करता है... बहुत विस्‍तार में जाने की जरूरत नहीं है.. लेकिन फिर भी... मैं थोड़ा पीछे से बात शुरू करना चाहता हूँ... आजादी की लड़ाई में हमारे साथ और हमसे अलग भी, बहुत से लोग शामिल थे... हमारे साथ ऐसे भी लोग थे जिनके ख्यालात एक-दूसरे से मिलते नहीं थे­­... लेकिन आजादी पाने की चाह में कांग्रेस के साथ आ गए थे... क्‍योंकि कांग्रेस एक खुला मंच था, जहाँ सबका सवागत किया जाता था... अब आजादी मिल चुकी है... मंच को पार्टी नहीं बनाना चाहिए।

नेहरू : मैं समझा नहीं बापू।

गांधी : पार्टी में आमतौर पर एक राजनैतिक विचार रखनेवाले होते हैं। आज कांग्रेस से अलग-अलग राजनैतिक विचार रखनेवाले लोग हैं... यह ठीक है कि निर्णय बहुमत से होते हैं लेकिन पार्टी में मिलते-जुलते विचारों का होना लाजि‍म है। नीतियाँ बनाना ही सब कुछ नहीं होता, अगर पार्टी के लोगों के विचार अलग-अलग हों तो उन्‍हें लागू करना कठिन हो जाएगा।

मौलाना : मैं आप से मुत्तफ्फि‍‍क हूँ महात्‍मा जी... लेकिन अगर गौर किया जाय तो ये सूरतेहाल हर पार्टी और हर सियासी तहरीक में होती है... पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।

गांधी : मौलाना, पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं.. लेकिन खाना खाते वक्त बराबर हो जाती है। देश निर्माण का काम कठिन है.. अब हमें उधर ध्‍यान देना चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाए।

नेहरू : (हैरत से) क्‍या कह रहे हैं बापू?

गांधी : हाँ जवाहर.. मैं जानता हूँ कि मैं बहुत कड़वी बात कह रहा हूँ.. ऐसी बात तो जहर लग सकती है.. पर है वह अमृत..।

पटेल : कांग्रेस को भंग कर देने का औचित्‍य क्‍या है बापू.. अब तो कांग्रेस में एकता और अनुशासन की भावना आई है..।

गांधी : यह ऊपरी दिखावा है बल्लभ.. अंदर से ऐसा नहीं है।

पटेल : बापू, आप जानते है कि आज देश की क्‍या हालत है? कश्‍मीर में युद्ध बढ़ता जा रहा है.. कहने को तो कबाइली हैं.. लेकिन पकिस्‍तानी सेना ने ही हमला किया है.. शरणार्थियों का भार उठाना बस से बाहर हो रहा है हर मिनिस्‍ट्री.. रात-दिन काम कर रही है.. बुनियादी जरूरतें, खाना और सिर पर छत.. यही नहीं पूरी हो पा रही है.. हैदराबाद में जो हो रहा है, उसकी जानकारी आपको होगी ही.. रजाकारों ने निजाम को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। हैदराबार एयरपोर्ट पर विदेशी जहाज उतर रहा है... कई स्‍तरों पर हैदराबाद को स्‍वतंत्र देश बनाए जाने का काम हो रहा है। बाकी जूनागढ़।

मौलान : ये समझ लीजिए एक पैर रकाब में है और दूसरा हवा में उठा हुआ है। इस सूरत में घोड़े पर बैठना ही जरूरी है।

नेहरू : बापू, देश के लोगों ने हमसे उम्‍मीदें लगा रखी हैं, उन्‍हें कौन पूरा करेगा.. हम किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रह जाएँगे।

पटेल : भारत को एक देश बनाने का यही वक्त है.. और अगर अब कांग्रेस को डिजॉल्‍व कर दिया गया तो.. शासन कौन करेगा।

गाधी : बल्‍लभ असली बात यही है... जो तुमने अब कही है.. सवाल ये है कि शासन कौन करेगा.. तुम लोग अब शासन करना चाहते हो।

नेहरू : बापू, देश की जनता ने हमे चुना है।

गांधी : हाँ, केवल आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए... सरकार चलाने के लिए न‍हीं चुना, मैं नहीं चाहता, जनता को धोखा दिया जाए।

नेहरू : धोखा? कैसा धोखा?

गांधी : मंच को राजनैतिक दल बना देना जनता को धोखा देना ही होगा.. जवाहर ... तुम जानते हो न्‍याय और अन्‍याय का भेद न रहा तो बुनियाद ही कच्‍ची रह जाएगी..।

मौलाना: महात्‍मा जी... कांग्रेस के डिजॉल्‍व हो जाने के बाद हम लोग क्‍या करेंगे?

गॉंधी: देश सेवा... जो हमने व्रत लिया हुआ है हम सब भारत के गाँवों में चले जाएँगे और वहाँ के लोगों की सेवा करेंगे। गीता में आता है, 'हम अपने अंत:करण की शुद्धि के लिए यज्ञ-कर्म करेंगे'।

नेहरू : सरकार में रहते हुए क्‍या हम जनता की खि‍दमत नहीं कर सकते।

गांधी : सरकार हुकूमत करती है जवाहर.. सेवा नहीं करती.. सरकारें सत्ता की प्रतीक होती है और सत्ता सिर्फ अपनी सेवा करती है.. इस लिए सत्ता से जितनी दूरी बनेगी उतना ही अच्‍छा होगा।

नेहरू : बापू, देश को बचाने के लिए अब हमें 'पॉलिसीज' बनानी पड़ेंगी... उन्‍हें लागू करना पड़ेगा। 'प्‍लानिंग कमीशन' बनेगा। फाइव इयर प्‍लान बनेंगे.. तब देश में गरीबी और जहालत दूर होगी... यह दो हमारी बड़ी प्रॉब्‍लम्‍स हैं। मैं तो यही सोचता हूँ और ये करने के लिए एक 'कमीटेड' सरकार बनाना जरूरी है।

गांधी : जवाहर तुम पत्तों से जड़ की तरफ जाते हो और मैं जड़ से पत्तों की तरफ आने की बात करता हूँ। तुम समझते हो कि सरकारी नीतियाँ बना कर, उन्‍हें सरकारी तौर पर लागू करने से देश की भलाई होगी.. मैं ऐसा नहीं मानता... मैं कहता हूँ लोगों को ताकत दो, ताकि वे अपने लिए वह सब करें जो जरूरी समझते हैं... चिराग के नीचे अँधेरा होता है, लेकिन सूरज के नीचे अँधेरा नहीं होता।

पटेल : बापू, आपका प्रस्‍ताव कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रख दिया जाएगा।

गांधी : तुम लोग क्‍या सोचते हो?

नेहरू : बापू, ये तो बातचीत के बाद ही पता चलेगा।

गांधी : ठीक है चर्चा करो... और सुनो, कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने अगर यह प्रस्‍ताव पास न किया तो कांग्रेस से मेरा कोई वास्‍ता न रहेगा।

सब : (एक साथ) ये आप क्‍या कह रहे हैं बापू?

(गांधी सिर झुका लेते हैं)