घर बसाने की तमन्ना - भाग १ / गुरदीप सिंह सोहल
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पात्र - परिचय
आनन्दी - अविवाहित युवक
बबली - अविवाहित युवती
खन्ना - बबली का पिता
सीमा - बबली की माता
सगाईराम - बिचौलिया
दृश्य - एक
मंच पर कमरे का दृश्य। कमरे में चारों तरफ महिला फिल्म स्टारों के बड़े बड़े पोस्टर लगे हुए है। कुछ नये कुछ पुराने। कुंवारा आनन्दी अपने आप से बाते कर रहा है।
आनन्दी - पूर्व की इस दीवार पर मीना कुमारी ठीक है, पश्चिम की उस दीवार पर स्मिता पाटिल जंचेगी, वहां उत्तर में नूतन ठीक रहेगी, उधर दक्षिण में नर्गिस। हर दिशा में हर जगह किसी न किसी फिल्म स्टार को होना ही चाहिये।
(काल बैल की आवाज) – (टिंग टोंग, टिंग टोंग के बाद के बाद सगाईराम की आवाज)
सगाईराम - घर पर ही हो न आनन्दी भैया जी?
आनन्दी - हां। हां। सगाईराम। आओ भाई सगाईराम। अन्दर आ जाओ। आपका स्वागत है। बैठो। कहो इधर कैसे आना हुआ। तशरीफ रखिए।
सगाईराम - ये क्या भैया जी? आपके कमरे में फिल्म स्टारों के पोस्टर और वो भी इतने बड़े बड़े। इधर पूर्व में मीना कुमारी, उधर पश्चिम में स्मिता पाटिल, ऊपर उत्तर में नूतन, दक्षिण में नीचे नर्गिस, यहां मधुबाला, वहां सुरैया। कहने का मतलब है आपने तो इस कमरे को सिनेमाहाल ही बना रखा है। खैर तो है न भैया जी।
आनन्दी - वैसे तो सब ठीक है भाई सगाईराम लेकिन यहां, इस दिल में दर्द है। घर के इस कमरे को सिनेमाहाल बनाने का कारण तुम तो जानते हो यार सगाईराम। लगे हुए है जाने कब से हम शादी की कतार में। बिगड़ जाती है बात अक्सर कुड़ियों की मझधार में।
सगाईराम - इसी कुड़ियों के दर्द के कारण ही तो अब तक आप मझधार में अटके हुए हैं। आप किस सोच में डूब रहे हो टाईटैनिक की तरह? मैं तो अपने नाम को सार्थक करने आया था। मैं सोच रहा था कि मेरा नाम आपके कारण सार्थक हो जाए।
आनन्दी - फोटो देखे। एलबम देखे। देखा चेहरा भी कभी। लगने लगा है अब नामुमकिन बंधना सेहरा भी कभी। टाईटैनिक को डूबे हुए तो एक अर्सा हो चुका है लेकिन आनन्दी नाम का एक और टाईटैनिक डूबने की कगार पर आ पहुंचा है।
सगाईराम - वो क्यों और किस समन्दर में भैया जी।
आनन्दी - आओ बैठो। शादीलाल सगाईराम बिचौलिया एण्ड कम्पनी के पार्टनर। हसीन चेहरों के चक्कर में बीत रही है पल पल जवानी। खत्म होने का नाम न ले कुड़ियों की ये कहानी। कुंवारेपन के गम का समन्दर कितना गहरा है दोस्त। यहां बड़े बड़े और नामी जहाज कब डूब जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता। मुझे दिन रात केवल एक ही गम खाये जा रहा है।
सगाईराम - तो फिर हुक्म करो न। मैं किस गम की दवा हूं। बताओं तो सही वो कौन से हसीन चेहरे का गम है जो तुम्हे खाये जा रहा है दीमक की तरह।
आनन्दी - लो कर लो बात। दाई होकर पूछता है पेट में दर्द कहां है? बड़ा बदमाश है तू भी यार। ये कुंवारेपन और अकेलेपन का दर्द है भाई। विवाह का इंजैक्शन लगाकर ही ठीक हो सकता है।
सगाईराम - दाई तो मैं बहुत पुरानी और तजुरबेकार हूं आनन्दी बाबू लेकिन तुमने आज तक पेट दिखाया ही कहां है? चैक करने के बाद ही तो पता चलेगा न कि दर्द कितना और कहां पर है? वैसे तो पेट के आकार से भी कुछ न कुछ ज्ञान तो हो ही जाता हैं। है न मेरी बात सही।
आनन्दी - पेट के आकार पर ही दर्द निर्भर करता है। मैने कितना गम खाया है तुझे अंदाज है जरा सा भी? । सोचता हूं मैं जिस किसी लड़की से भी शादी करने का मन बनाउंगा चलने में वो स्मिता पाटिल जैसी हो, शक्ल सूरत से नर्गिस हो, बात करने में मीना कुमारी, हंसने में नूतन यानि कहने का मतलब है उसकी हर बात में कोई न कोई खूबी और अदा हो। इन सब पोस्टरों की झलक और असर कहीं न कहीं अवश्य ही होना चाहिये।
सगाईराम (हंसता है) आपको तो आनन्दी बाबू 365 लडकियों से शादी कर लेनी चाहिये क्योंकि एक कवि का कहना है कि हर औरत रोज कोई न कोई नया चरित्र दिखाती है। जैसा कि तुम चाहते हो वो सब खूबियां किसी एक कुड़ी में तो हो नहीं सकती। सुन्दरता, धन-दौलत, कॉमन सैंस, पढाई लिखाई और ढेर सारा दहेज वो भी बिना मांगे। इसका साफ साफ मतलब यह है कि तुम्हे मल्टीपर्पज बीवी चाहिये।
आनन्दी - यहां रोना तो सिर्फ एक कुडी का ही है और एक तू है कि मुझे जहांपनाह बनाने पर तुला हुआ है। क्यों जले पर नमक छिड़कता है यार? क्यों मेरे जख्म फाड़ रहा है यार। सिलाई कर दे जरा सी।
सगाईराम - जख्म देख कर ही तो सिलाई के बारे में सोचेंगे।
आनन्दी - जा तू पहले जख्मों को नापने का काम कर।
सगाईराम - लेकिन इस हिसाब से न तो नौ मन तेल होगा और न ही राधा नाच पायेगी। (गब्बर सिंह की नकल में) ये मल्टी पर्पज कुड़ी तुझे बहुत मंहगी पड़ेगी ठाकुर।
आनन्दी - मल्टी पर्पज सोचने में हर्ज ही क्या है। हर आदमी की इच्छा होती है कि क्यों न उसकी बीवी भी मल्टी प्रपज हो। मंहगी क्यों पड़ेगी भैया? और फिर तू है किस मर्ज की दवा ? तेल और राधा का इंतजाम तू नहीं करेगा तो और कौन करेगा? क्या तू इतना भी नहीं करेगा मेरे लिये? मुझे नहीं पता बस। इस समस्या का हल निकालना तुम्हारी सिरदर्दी है मेरी नहीं।
सगाईराम - वही सिरदर्दी तुम्हारी हो जायेगी अगर तुमने मेरी न मानी और सिरदर्द की दवा न ली तो। मुझे कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। जब पंगा भी मल्टी पर्पज हो जायेगा न तब एक एक करके इन पोस्टरों को उतारते जाना, फाड़ते जाना ये कहते हुए कि यह पंगा बिन्दु ने किया, वो पंगा अरूणा ईरानी ने किया।
आनन्दी - ये समस्या तो बाद की और मेरी है। फिलहाल तुम्हारी समस्या है राधा और तेल। मैं पोस्टर लगाने की सोच रहा हूं और तू है कि इन्हे लगाने से पहले ही उतारने और फाड़ने की बात किये जा रहा है।
सगाईराम - (सिलसिला मेंअमिताभ बच्चन की तरह) मैं और मेरा भाई अक्सर बाते करते हैं। तेरी बीवी एैसी होती तो एैसा होता, वैसी होती तो वैसा होता। माधुरी दीक्षित जैसी होती तो कैसा होता, श्रीदेवी जैसी होती तो वैसा होता। टुनटुन या इन सब पोस्टरों जैसी होती तो कैसा होता? ये तो भगवान ही जानता है। दूर के ढोल सुहावने होते हैं यार मेरे। जब नजदीक आकर बजते हैं तो नानी को नानी भी याद करवा देते है।
आनन्दी - गले में मुझे ढोल नहीं बांधना है यार। सिर्फ एक प्यारा सा, एक छोटा सा तबला चाहिये, जिसकी ताल बहुत मधुर होती है। कभी तीन ताल तो कभी कहरवा, कभी रूपक तो कभी दादरा। मुझे तो वो करना है जो भारत नाट्यम या कर्नाटक संगीत में होता है। ढोल बजाकर मुझे भंगड़ा करके कान नहीं फाड़ने है।
सगाईराम - मैं सिर्फ इसीलिये तो कह रहा हूं यार कि मेरी कम्पनी को फेल करने की मत सोच। कमरे के पोस्टरों को बढ़ाने के स्थान पर दिल में सिर्फ एक ही तस्वीर लगाने की सोच ताकि बाहर की तस्वीरों से छुटकारा मिल सके और ताल से ताल मिला ताकि तेरी जिंदगी में एक सुरताल आ सके।
आनन्दी - तो फिर तू ही बता न यार। मैं किससे और कैसे ताल मिलाऊ?
सगाईराम - अब अगर तुमने किसी भी कुड़ी को रिजैक्ट किया न तो ठीक नही होगा कहे देता हूं हां। तुम्हारे जैसे लोगों के कारण ही तो हमारा मैरिज ब्यूरो बदनाम हो रहा है और दिन-ब-दिन फेल होता जा रहा है।
आनन्दी - यही तो मेरी समझ में भी नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? किधर जाऊं? किसके पास जाकर अपना दुखड़ा बखान करूं? कमरे में पोस्टर बढ़ा दूं या --------?
सगाईराम - तुम जैसों का दुखड़ा सुनने के लिये ही तो हम बाजार में आये है मैरिज ब्यूरो बनकर। दिलों में तस्वीरे लगाने का काम हम ही करते हैं वो भी सुनहरी फ्रेम में जड़कर।
आनन्दी - तो मेरी खातिर काम अब तुम करोगे?
सगाईराम - निःसंदेह।
आनन्दी - तो फिर मैं क्या करूं?
सगाईराम - तो भैया अब तुम सिर्फ वो ही करोगे जैसे मैं कहता हूं। बाहर की तस्वीरें देखना बन्द करके दिल की खिड़की खोल ताकि किसी हसीना की खुश्बू आ सके और कोई पोस्टर लगने की जगह बन सके।
आनन्दी - तो गारण्टी लेता है न तू? दिल में पोस्टर लगाने की।
सगाईराम - बिलकुल। हमारी कम्पनी का यही तो बस एक काम है बशर्ते कि वर तुम्हारे जैसा न हो।
आनन्दी - मेरे जैसा क्यों न हो?
सगाईराम - क्योंकि हम एक पंथ दो काज करते हैं और तू है कि एक पंथ तीन काज करना चाहता है।
आनन्दी - मेरे बस की बात हो तो मैं एक पंथ चार काज करता।
सगाईराम - बस यही वो बात है जिसके कारण तू अभी तक दर्दे दिल का शिकार है। हमारे यहां पर सभी प्रकार के दिलों को तसल्लीबख्श जोड़ा जाता है। उनकी तस्वीरों का तबादला किया जाता है। रोते हुओं को हंसाना ही हमारा काम है।
आनन्दी- अब मैं कान पकड़ कर दण्ड बैठक लगाता हूं। मैं अब चुप रहूंगा और तेरी बात से बाहर नहीं निकलूंगा। हर बार तेरी हां में हां ही मिलाऊंगा।
सगाईराम - अब अगर इनकार किया न तो दुबारा मौका हाथ नहीं लगेगा। चालिस की उम्र पार करने के बाद ऑवरेज हो जायेगा। न नौकरी मिलेगी और न ही वो, जिसकी तुझे बरसों से तलाश है। बाद में सिर्फ पोस्टर और सफेद हो रहे बालों को देखते रहना।
आनन्दी - तो फिर अब किया क्या जाये?
सगाईराम - तू देखता चल मैं क्या करता हूं? सबसे पहले वैवाहिक विज्ञापन देते हैं जो फ्री होगा।
आनन्दी - ये फ्री क्या बला है भाई?
सगाईराम - मतलब बिना दान-दहेज के।
आनन्दी - बिना दान-दहेज के! हैं। एक पंथ चार काज का क्या होगा?
सगाईराम - तू सिर्फ देखता रह बिना सवाल पूछे। आंखे खुली रख और दिमाग की खिड़की बन्द।
आनन्दी - कोई घपला करके मरवा मत देना यार?
सगाईराम - तुझे आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं?
आनन्दी - आम खाने के साथ साथ अगर पेड़ भी गिन लिये जाये तो हर्ज ही क्या है? पेड़ो से ही तो माली हालत का पता चलता है न।
सगाईराम - तू बेफिक्र हो जा। मैं विज्ञापन तैयार करता हूं और तू सपने देख। अभी से दिल में पोस्टर लगाने की जगह तलाश करने का काम शुरू कर दे।
आनन्दी - तलाश तो बरसों से जारी है। कोई पोस्टर मिले बस।
सगाईराम - चल दोनो मिलकर, सोचकर विज्ञापन बनाते हैं। पुराने अखबार की नकल करते हैं तेरा कान इधर कर। जरूरत है दामाद की, बहू की। शादी तुरन्त, कोई जाति बन्धन नहीं, दहेज से नफरत।
दृश्य - दो
(मंच पर खन्ना के मकान का एक कमरा - हांफते हुए कमरे में प्रविष्ट होता है)
खन्ना - अरी ओ मेरी सीमा सुरक्षा बल? कहां हो तुम?
सीमा मैं सीमा बहल हूं, खन्ना साब, बल नहीं। इतना ज्यादा हांफने और चिल्लाने का कारण क्या है? मुझे भी बतायेंगे जरा सा।
खन्ना - हां हां क्यों नहीं।
सीमा तो बताईये न खन्ना साब।
खन्ना - अरी बेगम। काशः तुम बल की बजाय सीमा ही होती, तन से बदहाल और दल-बल न होती। अपने दिमाग की फौज को तूने इस कदर चौकस कर रखा है कि मैं बबली के सिवा कुछ और सोच ही नहीं सकता।
सीमा इसके बारे में तुम नहीं तो क्या इसका दादा या मामा सोचेगा?
खन्ना - वो तो सब ठीक है डार्लिग?
सीमा और बताओ तो सही ये क्या है तुम्हारे हाथ में? मैं भी तो जानू।
खन्ना - मेरी सांसों को जरा सा वापस तो आने दो न।
सीमा तुम्हारे सांस कहां गये थे मटरगश्ती करने?
खन्ना - क्यों जले पर नमक छिड़कती हो जानेमन। मेरी सांसो की किस्मत में कहां मटरगश्ती करना। वो तो उम्रभर तुम्हारी गश्त करते करते निकल जायेंगे। तुम्हारी सब दिक्कते मिट गई समझो। समस्यायें सुलझ गई समझो।
सीमा वो कैसे भला? मुझे भी तो बताओ न।
खन्ना - अरी भागवान। तन की बजाय अगर तुम्हारा मन ब्रोडगेज होता तो अच्छा था। मेरे विचारों की सूपरफास्ट गाड़ी यू जाती हवा की तरह तुम्हारे दिमाग के प्लेटफार्म पर। मालगाड़ी की तरह आउटर सिगनल पर बेकार में, बिना मतलब खड़ी नहीं रहती। मैं दुखी नहीं रहता।
सीमा - तुम्हारा मन या मेरा तन। कुछ तो ब्रोडगेज होना ही चाहिये न डार्लिग। मालगाड़ी है तभी तो हमारा कोई एक्सीडैण्ट नहीं होता वरना तुम हमेशा लुढ़कते रहते। अब बताओ हमारी समस्याये कैसे सुलझ रही हैं?
खन्ना - मैं न कहता था कि दुनिया में अब भी शरीफ और खानदानी लोगों की कमी नहीं है।
सीमा - ये हमारे बीच में अचानक शरीफ और खानदानी लोग कैसे और कहां से आ टपके खन्ना साब?
खन्ना - ये वही लोग हैं मैडम नैरोगेज। जिन्होने आज अखबार में विज्ञापन दिया है शादी का और वो भी बिना किसी दान-दहेज के।
सीमा - ये सब दिखावा और पाखण्ड है। गड़रिये और भेड़िये की कहानी है। लोग सरे आम तौबा करते है, कानून बनाते हैं और गुपचुप कानून तोड़ने से बाज नहीं आते।
खन्ना - तुम अपनी जगह बिल्कुल सही हो डार्लिग। यहां सारे के सारे गड़रिये हैं जो रोज ही झूठ बोल बोल कर भेड़िये को बदनाम करते हैं। और हां एक बात और। कानून बनाने वाले ही सबसे पहले तोड़ते हैं।
सीमा - कानून तो बनते ही तोड़ने के लिये है और कानून जनता के लिये होते हैं। बनाने वालों पर लागू कहां हुए हैं आज तक।
खन्ना - चलो छोड़ो बेकार की बातों को।
सीमा वो क्या चीज थी जो थोड़ी देर पहले तुम मुझे दिखा रहे थे।
खन्ना - ये एक वैवाहिक विज्ञापन है। लो तुम भी देखो और जोर से पढ़ो ताकि मैं भी ध्यान से सुनूं।
सीमा - (जोर से पढ़ती है) प्रेमनगर के मौहल्ला प्रेम परबत के निवासी प्रेम प्रकाश की और से किसी भी वर्ग से अपने ग्रेजुएट, कम्पनी अधिकारी, आकर्षक आय वाले सुन्दर पुत्र के लिये पाणिग्रहण संस्कार हेतु रंगीन लिफाफों में ऑफर आमन्त्रित किये जाते है।
खन्ना - वैवाहिक विज्ञापन एैसा होता है क्या?
सीमा अभी खत्म कहां हुआ है? आगे भी तो सुनो न?
खन्ना - तो सुनाओ न फटाफट।
सीमा ये जो ऑफर हैं न सगाईराम शादीलाल एण्ड कम्पनी के ऑफिस में जमा करवाने है।
खन्ना - बाप रे बाप। ये तो बिल्कुल ही सरकारी टैण्डर सा लगता है।
सीमा अभी तो बहुत कुछ सुनना बाकी है।
खन्ना - अब और क्या बाकी है भई?
सीमा लिहाजा मामा और नाना बनने के इच्छुक सज्जन कन्या के फोटाग्राफ्स और दस हजार रूपये के गिफ्ट चैक के साथ सम्पर्क करें। शादी विशेष रूप से बिना दहेज और तुरन्त होगी। (सांस लेकर) हाय मेरे रब्बा।
खन्ना - अब क्या हुआ भई?
सीमा - ये वैवाहिक विज्ञापन है या टैण्डर नोटिस का डिब्बा जिसमें पता नहीं कितने ऑफरों के चैक डाले जायेंगे।
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