घर बसाने की तमन्ना - भाग २ / गुरदीप सिंह सोहल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:GKCatNatak

खन्ना - अगर तुमने कभी भी सही सही सोचा होता तो मामला अभी समझ में आ जाता। आजकल शादी करना, बोली लगाना, ठेकेदारी करना सब कुछ एक जैसा ही तो है। हर बात में टैण्डर बुलाये जाते हैं। बोली के आधार पर ही हर काम होता है।

सीमा - क्या इरादा है अब आपका? क्या सोचा है इस टैण्डर नोटिस के बारे में?

खन्ना - इरादा नेक है। पहले उपहारो के बारे में कुछ करते हैं फिर हारों के बारे में सोचा जायेगा।

सीमा ये उपहार भी तो दान दहेज का ही दूसरा नाम है।

खन्ना - तुम सही कहती हो। उपहार तो कभी भी लिये और दिये जा सकते हैं। दहेज का एक खास वक्त होता है। सरकार ने दहेज पर पाबन्दी लगाई है उपहारों पर नहीं। ये हमेशा ही टैक्स फ्री रहेंगे। तुम्हारे तन की तरह इनकी कोई सीमा नहीं है।

सीमा - खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबुजे पर। कटना तो सिर्फ खरबूजे को ही है। अब तुम खरबूजा बनने के लिये तैयार हो जाओ।

खन्ना - भगवान ने हमें अगर खरबूजा बना ही दिया है तो कटना ही होगा। छुरी बनाता तो शायद हम भी न जाने कितने ही स्वाद चखते। काटते जाते और चखते जाते। कई बार तो खरबूजा स्वाद न होने का बहाना भी कर देते। काशः भगवान हमें भी एक पुत्र देता और हम भी किसी खरबूजे का स्वाद चखते।

सीमा - तुम और तुम्हारी मां। दोनो हमेशा काटने वालों में ही थे न। यही तो मैं सुनना चाहती थी। अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे।

खन्ना - चलो एक ऊंट तो आ गया तुम्हारे नीचे। अब दूसरे का इंतजाम करने चलते है।

सीमा - ये दूसरा ऊंट कौन सा है?

खन्ना - अरे भई एक तुम्हारा और दूसरा वो जिसमें हमारा दामाद बनने की काबलियत होगी और जिस पर बबली सवारी करेगी।

सीमा - क्यों न हम ऊंट और सौदागर दोनो को ही चाय पर बुला लें।

खन्ना - लगता है अब तुम्हारा मन ब्रोडगेज में बदलने लगा है और सवारीगाड़ी की स्पीड बढ़ने लगी है। अब तुमने की है काम की बात।

सीमा मेरी तो हर बात काम की होती है अगर तुम्हे नहीं लगती तो मैं क्या करूं।

खन्ना - उनसे मुलाकात का बहाना तलाश करते है।

सीमा अब बहाना मत तलाशो। अभी फोटो लो, गिफ्ट चैक बनवाओ और चाय पक्की कर आओ।

खन्ना - तुम घर का काम देखो और मैं ऊंट पकड़ने का फन्दा बनाता हूं।


दृश्य - तीन

खन्ना का कमरा। कालबैल की आवाज - टिंग टोंग, टिंग टोंग। द्वार खुलने के साथ ही खन्ना का स्वर

खन्ना - आओ आओ सगाईराम जी। आप दोनो का स्वागत है इस गरीबखाने में।

सगाईराम - खन्ना साब ये है आनन्दी बाबू। जिनके लिये आपने हमें सेवा का मौका दिया।

खन्ना - पहले तशरीफ तो रखिये सगाईराम जी। फिर देखते हैं आगे का हाल। आप बैठो मैं अभी आता हूं।

सगाईराम - (आनन्दी के कान में फुसफुसाता है) यहां पर चांस फिट हो सकता है आनन्दी बाबू

खन्ना - आपने कुछ कहा क्या सगाईराम जी।

सगाईराम - (ड़बड़ाकर) नहीं नहीं खन्ना साब। मैं तो बल्कि यह कह रहा था कि आप हमें अकेले छोड़कर किधर जा रहे है। यहीं पर बुला लीजिये न सबको। साथ मिल बैठेंगे।

खन्ना - अच्छा ठीक है मैं सबको बुला लेता हूं आप लोग आराम से बैठ रहिये। आवाज देता है अरे भई सीमा यहीं पर आ जाओ।

आनन्दी - (सगाईराम से) देखते हैं सगाईराम जी आप अपना नाम कैसे सार्थक करते है?

सीमा - (आते हुए) नमस्कार सगाईराम जी। आपका विज्ञापन देखा तो सोचा मौका अच्छा है।

सगाईराम - मौका मिलते ही हाथ धो लेने चाहिये गंगा में। बाकी सब तो बाद में सोचना चाहिये।

खन्ना - मैं कह रहा था सगाईराम जी कि आपकी क्या पोजीशन है इस गंगा में?

सगाईराम - पोजीशन हमेशा जल के प्रवाह पर निर्भर करती है। हमारा काम केवल जोड़ने का काम करता है। हाथ करीब करीब धुल ही जाते है। नफा-नुकसान आधा आधा होता है।

खन्ना - जल का प्रवाह, नफा-नुकसान, बड़ा अजीब काम है तुम्हारा।

सगाईराम - हम वैवाहिक विज्ञापन देते हैं, पार्टियों से सम्पर्क करते हैं, भागदौड़ करते हैं। काम करते हैं मेहनताना लेते हैं। अगर कोई पार्टी चूं चपट करती है तो फिर हम गंगा मैली करते हुए देर नहीं लगाते। अगली पार्टी को सब कुछ साफ साफ बता देते है।

खन्ना - क्या कभी एैसा भी हुआ है कि आपके हाथ धुलते धुलते रह गये हो या और कभी मैले हो गये हो।

सगाईराम - देखिये खन्ना साब। अगर कहीं से जरा सी भी लापरवाही हो जाये तो एैसा मुमकिन है। वैसे हमारे साथ कभी भी एैसा नहीं हुआ।

खन्ना - ओह। तो अब समझा आपके बिजनिस को।

सगाईराम - ये सब तो मौके की बाते हैं। हम तो हमेशा नफा ही चाहते हैं। इसीलिये भागदौड़ करते हैं। वैसे कौन चाहेगा कि उसे बिजनिस में नुक्सान हो। क्यों आनन्दी बाबू।

आनन्दी - बिल्कुल सगाईराम जी। आपका नफा हमारा नफा आपका नुक्सान हमारा नुक्सान। वैसे हर काम मौके पर ही अच्छा लगता है।

खन्ना - ये मौका भी कभी कभी सुनहरा हो जाता है जैसे कि आज का मौका।

सीमा - बेमौके सब बेकार चला जाता है जैसे कि उम्र बीत जाने पर शादी करना या कौवे का हंस की चाल चलना। (सब हंसते हैं)

चाय के साथ बबली का प्रवेश

खन्ना - लो बबली चाय लेकर आ रही है। इस के हाथ ही चाय पीने का मौका मिल रहा है।

सीमा - सब मिल कर मौका संभालते है।

सगाईराम - आप सब के साथ चाय पीने का हमारा पहला मौका। आप भी तो कुछ कहिये न आनन्दी बाबू।

आनन्दी - हां हां। सगाईराम जी।

खन्ना - चाय का मौका देकर आपने हम पर भारी एहसान किया है वरना हमें चाय कभी इतनी अच्छी न लगती थी।

सगाईराम - एहसान किस बात का खन्ना साब। ये तो हमारी दिनचर्या में शामिल है घर घर जाकर चाय पीने और स्वाद की तुलना करने का। क्यों आनन्दी बाबू?

आनन्दी - हां हां श्रीमान्जी। ये बिल्कुल सही फरमा रहे है। मैं इनका सर्मथन करता हूं।

सीमा - अब तक तुमने कहां कहां पर और कितनी बार चाय पी है बेटा।

आनन्दी - देखिये माताश्री। अगर 5-10 बार चाय पी होती तो याद भी रखते और बता भी देते। पिछले 10 सालों का हिसाब कौन याद रख कर बता सकता है कि कब कब और कहां कहां चाय पी?

सीमा फाईनल क्यों नहीं हो अभी तक बेटा?

आनन्दी - फाईनल क्यों नहीं हो पाई इस बात का तो कोई जबाव फिलहाल नहीं है।

सगाईराम - ये सब तो स्वाद पर निर्भर करता है न बहनजी।

आनन्दी - आज की कॉफी जैसी स्पैशल चाय का स्वाद हमने पहले कभी महसूस नहीं किया था न ही कभी चखा था।

सीमा वो क्यों भला आनन्दी जी?

आनन्दी - वो इसलिये माताश्री कि कभी चाय में पत्ती नहीं होती थी, कभी शक्कर तो कभी दूध तो कभी ढंग से उबाली नहीं होती थी। हमेशा ही कोई न कोई कमी रह जाती थी जिसके कारण फाईनल नहीं हो पाई।

सीमा - हो सकता है यही वो वजह हो जिसके कारण फाईनल न हो पाई हो। चाय का स्वाद हमेशा बनाने के ढंग पर निर्भर करता है और स्वाद अक्सर बदलता रहता है।

आनन्दी - रोज रोज हमें बेकार सी चाय पीने और बाद में बताने की आदत सी हो गई थी।

खन्ना - काश। अब एैसा न हो। ये सिलसिला यहीं पर खत्म हो जाये।

सीमा - इस और आज की स्पैशल चाय से बढ़िया कुछ न हो और आपको किसी दूसरे घर में घटिया चाय न पीने को मिले। भगवान करे एैसा आज हो जाना चाहिये।

खन्ना - आनन्दी बाबू। चाय के साथ साथ नमकीन भी तो लीजिये न।

आनन्दी - आप भी लीजिये।

सीमा - (कुछ देर बाद) हम सबने स्पैशल चाय का स्वाद चख लिया है। लाओ मैं खाली बर्तन बाहर छोड़ दू।

खन्ना - आप लोग बात-चीत कीजिये। मैं लंच का इंतजाम करके आता हू। अच्छा भई मैं तो चला फिर मिलते है।

सीमा - मैं भी चली किचिन मे।

सगाईराम - (आनन्दी के कान में फुसफुसाता है) मैं भी टीवी देखता हूं लेकिन मेरा कान इधर ही होगा। गुरू ठीक से बात कर लेना फिर मत बोलना कि ये नहीं पूछा वो नहीं पूछा।

आनन्दी - ये मेरा पर्सनल मामला है।

सगाईराम - जब तक हल नहीं हो जाता तब तक कौमी मसला है।

आनन्दी - (बबली से) हां तो मिस -----

बबली - मैं बबली हूं।

आनन्दी - बबली तुम जरा आराम से बैठो। फिर कुछ बातचीत करते है। कहां से शुरू करें,

बबली - यहीं से।

आनन्दी - क्या मतलब?

बबली - मेरा मतलब है पहली कक्षा से।

आनन्दी - ओह। मैं तो कुछ और ही समझा था।

बबली - आपकी समझ काबू में रखिये। मुझे तो आपके चुप होने का इंतजार है।

आनन्दी - ओह। हम तो भूल ही गये थे कि आप भी हमारे पास में हैं और बातचीत में शामिल हैं।

बबली - आप अभी से इतने भुलक्कड़ हैं तो बाद में क्या याद रहेगा?

आनन्दी - बाद में किसके बारे में?

बबली - घर और परिवार के बारे में। और क्या?

आनन्दी - घर परिवार तो बाद की बात है पहले बातचीत का श्रीगणेश करते हैं आपसे। आपका नाम बबली ही है या कुछ और। यानि घर और बाहर एक ही नाम।

बबली - घर में बबली। बाहर चन्द्रमुखी।

आनन्दी - क्या खूब नाम है चांद जैसा मुखड़ा।

बबली - तारीफ के लिये शक्रिया।

आनन्दी - धन्यवाद। कौन सी क्लास कर रखी है तुमने?

बबली - कुछ खास नहीं। सिर्फ एम.ए. अर्थशास्त्र में।

आनन्दी - कमाल की बात है भई। इतनी सारी काबलियत और आप कहती है कि कुछ खास नहीं।

बबली - जब यही काबलियत कुछ काम न आये तो किस काम की? इसलिये जरा सी है।

सगाईराम - तुम्हारा बजट कभी नहीं बिगड़ेगा उस्ताद।

आनन्दी - नो कमैण्ट प्लीज।

बबली - दरख्वास्त लिखने का पता नहीं होता और यहां पर हर कोई एम.ए. है।

आनन्दी - बिल्कुल सही फरमाया आपने। सबके पास कागजी डिग्रियां हैं। तजुरबा किसी के पास भी नहीं है।

बबली - लगता है आपके पास भी डिग्री नहीं है।

आनन्दी - बिल्कुल सही कहा आपने।

बबली - फिर क्या है आपके पास?

सगाईराम - इसके पास तजुरबा है।

आनन्दी - शादी के बारे में आपका क्या ख्याल है?

सगाईराम - लव मैरिज या अरेंज्ड? दिखावटी या सीधी सादी।

आनन्दी - अभी या बाद में?

बबली - ये सब तो बाद की बाते हैं। पहले चाय का फाईनल मैच तो हो जाने दो न।

आनन्दी - स्वाद के हिसाब से तो फाईनल हुआ ही समझिये।

सगाईराम - पहले ये तो बताइये कि आपके घर में और कौन कौन है?

बबली - सिर्फ हम तीन।

आनन्दी - हैं। सिर्फ तीन। कौन कौन हैं वो महापुरूष?

बबली - पिताश्री, माताश्री और मै। आपकी मांगें क्या क्या हैं?

आनन्दी - फिर तो मांगें बताना बेवकूफी ही होगी।

सगाईराम - वो क्यों भला आनन्दी बाबू?

आनन्दी - क्योंकि बिन मांगे मोती मिलें, मांगे मिले न भीख। बिन मांगे जो भी मिले वो समय की सीख।

बबली - मोती मिलें या न मिलें। सीख तो कभी भी और कहीं भी मिल सकती है।

आनन्दी - मोती मिलें या सीख। लगता है यहां सब कुछ ही मिलेगा। मोती भी और सीख भी।

बबली - तो फिर देरी काहे की है? हो जाओ तैयार लेने के लिये।

आनन्दी - वो सब तो बाद में। तुम मुझे पसन्द हो और रोज रोज की बेस्वाद चाय का समापन हम यहीं पर करते हैं। मैं तुम्हे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करता हूं।

सगाईराम - ये तो चमत्कार हो गया गुरू। हमारा विज्ञापन कामयाब हो गया। हमारी कम्पनी को और भी ज्यादा काम मिलेगा। हमारी साख और शाख दोनों बढ़ेगी।

आनन्दी - तुम अपना नाम सार्थक करते रहो।

बबली - मुझे पसन्द करने से पहले तुमने कितनी कुड़ियों को देखा और नापसन्द किया?

आनन्दी - याद ही नहीं रहता भई। कोई एकाघ हो तो बताऊं भी। कोई पसन्द ही नहीं आती थी।

बबली - मुझ में भला एैसी क्या खासियत है जो तुम्हे पहले कभी किसी कुड़ी में नहीं मिली?