चिड़ी की दुक्की / इस्मत चुग़ताई / पृष्ठ-1

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कहानियों में विलक्षण कहानी कला की झलक
आलोचना

इस्मत चुग़ताई के साथ उर्दू कहानी में दृष्टि और कला के स्तर पर कुछ नये आयाम जुड़ते हैं। जिस दौर में इस्मत रचना-कर्म से जुड़ी, वह प्रगतिशील साहित्यांदोलन के पहले उभार का दौर था। उन्होंने सामाजिक न्याय के संघर्ष में स्त्री की मुक्तिआकाक्षां और अधिकार चेतना को शामिल करते हुए प्रगतिशील रचनाशीलता से अनुशासित निरीक्षण क्षमता के बूते पर वे यथार्थ के परिचित-रुपों से बाहर आकर जीवन के सर्वथा नये इलाकों में कहानी को ले गयीं, जहाँ अब तक किसी उर्दू कथाकार का गुज़र नहीं था। मसलन मध्यवर्गीय मुस्लिम समाज में स्त्री के जीवन से जुड़े हुए सवाल प्रगतिशीलों के बीच ज़ेरे-बहस तो थे लेकिन इन सवालों को कहानी की संवेदना में जगह सबसे पहले इस्मत चुग़ताई ने ही दी। उनकी कहानियों में स्त्री की दुरवस्था से उत्पन्न करुणा हमें सिर्फ द्रवित नहीं करती बल्कि एक व्यापक विमर्श में शामिल करती है। इस्मत के पास एक स्पष्ट वैचारिक परिप्रेक्ष्य है।

स्त्री बनाम पुरुष की बेमानी को वे अहमियत नहीं देतीं। वर्ग समाज के अलग-अलग स्तरों में स्त्री को लेकर पुरुष को स्वेच्छाचारिता की उन्होंने ख़ूब मज़म्मत की है, वहीं स्त्री के प्रति स्त्री की क्रूरता और संगदिली की भी उन्होंने पर्दापोशी नहीं की है। यह फ़ेमिनिज़्म की प्रचलित धारणा से बाहर की सच्चाई है। इस्मत की बेशतर कहानियाँ समाजशास्त्रीय अध्ययन की दरकार करती हैं। ख़ुद उनके चंगेज़ी खानदान की पृष्ठभूमि से लेकर आज़ादी से पहले और बाद के अर्द्ध-सामंती समाज के ऐसे सूक्ष्म ब्योरे उनके यहाँ मिलते हैं जो हमारी चेतना को झकझोर देते हैं। बावजूद इसके उनके पास एक दुर्लभ कलात्मक संयम है कि उन्होंने अपनी कहानियों को समाजशास्त्रीय दस्तावेज़ नहीं बनने दिया है। यहाँ तक की उनकी कुछ कहानियों में खानदान के कुछ लोग पात्रों के रूप में चित्रित किये गये हैं लेकिन यह सुखद आश्चर्य है कि उन्हें पात्र की तरह बाक़ायदा रचा और गढ़ा गया है।

‘चिड़ी की दुक्की’ में इस्मत चुग़ताई की पाँच कहानियाँ संगृहीत हैं। हिंदी पाठक इस्मत की विलक्षण कहानी कला की झलक इन कहानियों में है। इस संग्रह की एक विशेषता यह है कि पाठक कहानियों के आरंभ में इस्मत चुग़ताई पर उनके समकालीन कहानीकार सआदत हसन मंटो का यादगार संस्मरण भी पहली बार हिंदी में गढ़ा गया है।