चित्त कोबरा / मृदुला गर्ग / सामान्य परिचय
कथा सार :अशोक कुमार शुक्ला
मृदुला गर्ग का उपन्यास ’चित्त कोबरा’ बहुत विवादास्पद है और लोकप्रिय भी। महेश और मनु पति पत्नी है अपने दाम्पत्य संबंधो से असंतुष्ठ हैैं। महेश की पत्नी के रूप में मनु उसे वह सब कुछ देती है जो एक आदर्श पत्नी अपने पति को दे सकती है सुन्दर सुचारू घर गृहस्थी सुन्दर सुशील बच्चे दोनो गोरखपुर में आदर्श दम्पत्ति के रूप में मशहूर हो भी जाते हैं महेश की समस्त सुख सुविधाओ का ध्यान रखते हुये भी मनु यह अनुभव करती है कि महेश उसे प्यार नही करता उसके प्रति उदासीन है । स्वच्छंदतावादी महेश विवाह के बंधन मे विश्वास नही करता परन्तु यह मानता है कि सुव्यवस्थित समाज के लिये विवाह जैसी संस्था होना अनिवार्य है वह अपनी पत्नी के जीवन में किसी दूसरे पुरूष का प्रवेश भी पसन्द नहीं करता । उसका मानना है कि पत्नी की आवश्यकताओं को एक पति कर्तव्य की खातिर पूर्ण करता है प्यार की खातिर नहीं ।महेश की इस प्यार विहीन कर्तव्य भावना से मनु संतुष्ट नहीं है और वह स्काटलैन्उ के पादरी रिचर्ड की ओर आकर्षित हो जाती है। जमशेदपुर में एक फ्रांसिसी नाटक में काम करने के दौरान दोनो की मुलाकात होती है और मनु और रिचर्ड दोनो के साथ शारीरिक संबंध बनाते है। उनके साथ में बिताए गए पांच अंतरंग दिन उसके साथ हमेशा बने रहते हैं - तब भी जब वो अपने पति के साथ बिस्तर पर होती है। रिचर्ड की पत्नी जैनी है ओर उन दोनो के तीन बच्चे भी हैं। पूरे उपन्यास मे महेश की असंतुष्टि कही नहीं दीखती है। न मनु अपने पति को छोडना चाहती है और न रिचर्ड अपनी पत्नी जेनी को। दोनो एक अलग रास्ता चुनते है कि अब हम तीस साल बादमिलेंगे जब साठ साल के होंगे। वो अलग तो हो जाते हैं परन्तु इसी दौरान उधेडबुन में नायिका कहती है
पता नहीं .......मैं खुद नहीं जानती, मैं क्या बनना चाहती हूं .... इतना खाली खोखला वख्त है मेरे पास .....कभी सोचती हूं अभिनेत्री बन जाउूं - कभी सोचती हूं पीएच डी कर डालूं -किसी कालेज में पढाऊं फैक्टरी का काम देखूं .... विधान सभा के लिये खडी हो जाउूं ......दुनिया भर में घूमूं अस्पतालों मेे जाकर मरीजों की सेवा करूं.....किसी मिशन में भर्ती हो जाउूं ...कविताऐं लिखूं ... और आखिर में उसका मन कविता लिखने में रमा और जिप्सी मन नामक कविता संग्रह छपता है लेकिन उसका मन फिर वही चाहता है कि रिचर्ड उसका कविता संग्रह देखे परन्तु उसका स्थायी पता मनु के पास नहीं है। उपन्यास में संबंधों की भटकन के संबंध में मनु और रिचर्ड का एक संवाद सम्पूर्ण वस्तुस्थिति को प्रगट करने के लिये पर्याप्त है-
अगर तुम मेरी बीबी होती...? उसने कहा था
तो मै महेश से प्यार करती
उसने चौंककर मेरी ओर देखा
और तुम जैनी से...
मनुष्य की कामनाओं और आकांक्षाओं का कोई अंत नहीं है। मृग मारीचिका के समान स्थिति है उनकी। कुछ आलोचकों ने इस उपन्यास के कुछ पृष्ठों को कामशास्त्र का पन्ना भी कहा है । सत्या जैन के शब्दों में कहें तो -
रीतिकाल के नायक नायिकाओं के रतिवर्णनों को चितकबरा बहुत पीछे छोड देता है।
एक वानगी देखें -
अगर मेरा शरीर ऐक उरोज होता- एक दीर्घकाय विशाल गुदगुदा उरोज । ग्लोब की तरह गोल । महेश उस पर पसर जाता उसके हाथ पांव और होंठ एक साथ उससे खेलते उसे मसलते उसे चूमते । चुचूक को होंठो में दबोचकर वह बाकी उरोज को मसलता और तब तक उसका निष्ठुर से निष्ठुर आधात भी वह सह लेता। आकार के साथ उसकी उत्तेजक शक्ति भी बढ जाती न?
या मनु के चुम्बन की अनुभूति के वर्णन की वानगी देखें-
अब उसके होंठ मेरे होंठों पर हैं। अपनी जबान से उसने बंद दरवाजा खोल दिया है और मेरी जबान पर कब्जा कर लिया है। मेरी जबान के तंतु चिनचिना रहे हैं....मैं सिर्फ जबान हूं ।