चित्रकार और लड़की / पवित्र पाप / सुशोभित

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चित्रकार और लड़की
सुशोभित


एक चित्रकार था, उसका नाम था अंद्रेई।

एक लड़की थी, उसका नाम था मार्फ़ा।

चित्रकार रूस के अंद्रोनिकोफ़ मठ में रहता और पवित्र प्रसंगों के चित्र बनाता- होली ट्रिनिटी, वर्जिन मेरी, लास्ट सपर, क्रूसिफ़िकेशन।

लड़की धर्मविरुद्ध थी और रात्रि को अरण्यों में निर्वस्त्र होकर घूमती- वनदेवी, मदनिका, शालभंजिका, ट्री-निम्फ़ की भाँति। यह पंद्रहवीं सदी का क़िस्सा है और वन बहुत सघन थे। कीचड़ में लिथड़े विषधर गीले पत्तों की दीवार भेदकर रेंगते रहते। सफ़ेद बगूले धरती पर गिरते और उनके धवल पंखों पर कीच जम जाती। और बरगद के दरख़्त जैसा दिखाई देने वाला बूढ़ा थियोफ़ेनस द ग्रीक भी टूटी शाख़ पर बैठता तो किसी वल्मीक पर उसका पैर जा पड़ता और पिंडलियों पर चींटियाँ चढ़ने लगतीं। अंद्रेई अतिशय प्रतिभाशाली था और हर प्रतिभाशाली की भाँति उसके बहुत शत्रु थे।

एक दिन वनक्षेत्र को मशालों की लपटों से भर देने वाला सर्वोपासकों का एक समूह येसुस के उपदेशों का प्रचार करने वाले अंद्रई को पकड़कर एक वृक्ष से बांध देता है और उसे उसके हाल पर छोड़कर चला जाता है।

रात्रि को वन में निर्वसन होकर घूमती मार्फ़ा उसे देखती है तो उसके रूप पर मुग्ध हो जाती है।

बेथेलेहम के उपदेशक जैसा ही सुंदर वह युवक था। किन्तु उसके हृदय में स्त्री के प्रति आकर्षण नहीं था। मार्फ़ा को देखते ही वह आँखें झुका लेता है।

‘यों वन में नग्न होकर घूमना तो पाप है’, अंद्रेई मार्फ़ा से कहता है।

‘ऐसी रातें प्रेम करने के लिए बनी हैं, क्या प्रेम करना भी पाप है?’ मार्फ़ा प्रतिप्रश्न करती है।

‘एक नौजवान को यों रस्सियों से बांधे रखना भी क्या प्रेम है?’ अंद्रेई कटाक्ष करता है।

‘तुम जिस धर्म का उपदेश देते हो, वही लोगों को ऐसे भयभीत करता है कि उपदेशकों को बंधक बना लिया जाए’, मार्फ़ा कहती है।

‘भय उन्हें ही लगता है, जो ईश्वर से पवित्र प्रेम नहीं करते’, अंद्रेई कहता है।

‘हर प्रेम पवित्र होता है’, मार्फ़ा उत्तर देती है और आवेग से आगे बढ़कर बंधक चित्रकार के होंठों को चूम लेती है। चित्रकार रोमांच से सिहर उठता है।

‘मेरे बंधनों को खोल दो’, वह विनती करता है।

मार्फ़ा उसे मुक्त कर देती है। ग्लानि से ग्रस्त अंद्रेई वहाँ से चला जाता है। वन की कंटीली झाड़ियाँ उसके चेहरे को रक्तरंजित कर देती हैं।

भोर होने पर अंद्रेई एक नौका में सवार होकर क्लीष्मा नदी में यात्रा पर निकल जाता है। उसे व्लादीमीर के डोर्मिशन कैथेड्रल में धर्मप्रसंगों के चित्र बनाने का कार्य जो मिला है।

भोर होते-होते ही ख़्रिस्तानियों का समूह भी धर्मविरुद्ध सर्वोपासकों को वन से खदेड़ देता है। उनकी मशालें बुझा दी जाती हैं। उनकी नौकाएँ उलट दी जाती हैं।

निर्वस्त्र मार्फ़ा दौड़ते हुए आती है और उसी क्लीष्मा नदी में तैरने लगती है, जिससे होकर अंद्रेई यात्रा कर रहा था। चित्रकार उसे देखता रह जाता है।

व्लादीमीर पहुँचकर वह डोर्मिशन कैथेड्रल की दीवारों को सफ़ेद रंग से रंग देता है, किन्तु उन पर कोई चित्र नहीं बना पाता। ‘मैं ‘डे ऑफ़ जजमेंट’ का चित्र क्यों बनाऊँ, लोगों को भयभीत करने के लिए?’ अब वह पूछता है।

‘मैं इनफ़र्नो की आग को क्यों चित्रित करूँ? नर्क का भय क्यों रचूँ? आज रविवार है और लोग प्रेम कर रहे हैं। प्रेम करना अपराध तो नहीं?’ अंद्रेई की भाषा ही बदल जाती है।

वह ऐसे धर्म-प्रसंगों के चित्र बनाने से इनकार कर देता है, जो लोगों को प्रेम से नहीं, भय से भर देते हों।

व्लादीमीर क़स्बे पर तातार हमला बोलते हैं और घोड़ों को जला देते हैं, उपासकों के मुंह में पिघली सलीब का लावा उड़ेल देते हैं और पूरे शहर को तहस-नहस कर देते हैं।

मृतक महिलाओं की चोटियाँ गूंथने वाली एक युवा लड़की दुरोश्का को तातार उठा ले जाते हैं। उसे बचाने के लिए अंद्रेई कुल्हाड़ी उठाकर एक आक्रांता की हत्या कर देता है। वह लड़की मार्फ़ा नहीं थी, किन्तु उसकी आँखें मार्फ़ा से कितनी मिलती-जुलती थीं।

इसके बाद अंद्रेई अपनी कूची तोड़ देता है और फिर पंद्रह वर्षों तक कोई चित्र नहीं बनाता।

‘मैंने हत्या की है, मुझे प्रायश्चित करना होगा’, कोई पूछता तो वह बता देता।

सभी समझते कि अंद्रेई को तातार की हत्या का पछतावा है। किन्तु यह कोई नहीं जान पाता कि वास्तव में अंद्रेई को अपने भीतर के उस प्रणयी की हत्या का पछतावा था, जिसे मार्फ़ा ने उस रात चूम लिया था, जबकि वह बंधक था और वह निर्वसना।

पवित्र प्रसंगों के चित्र बनाने वाले कलाकार को भी यह अनुमति नहीं है कि एक निर्वसना के प्रणय की अवहेलना करे!

जिस रात्रि को सर्वोपासकों के समूह ने वन को मशालों की लपटों से भर दिया था, उसी रात्रि को मार्फ़ा ने फूस से भरी एक छोटी-सी नौका को आग दिखाकर नदी में तैरा दिया था। जलती हुई वह नौका फिर नदी में भोर तक तैरती रही थी।

वैसी ही एक नौका चित्रकार अंद्रेई के शरीर के भीतर भी थी, जिसे मार्फ़ा ने अपने चुम्बन से जला दिया था।

एक पछतावा यह भी हो सकता था कि अंद्रेई लौटकर मार्फ़ा को प्रेम करे, किन्तु किधर?

क्लीष्मा नदी को मार्फ़ा की देह की गंध स्मरण थी, अगर वह प्रार्थना के आवेग और विकलता से उस नदी से पूछता तो उसे उत्तर अवश्य मिल जाता।

[अंद्रेइ तारकोव्स्की की फ़िल्म ‘अंद्रेइ रूब्ल्योफ़’ के दृश्यों पर आधारित]