पवित्र पाप / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
रॉबेर ब्रेसाँ की फ़िल्म ‘डायरी ऑफ़ अ कंट्री प्रीस्ट’ के उत्तरार्ध में कंट्री प्रीस्ट से अपनी अंतिम भेंट के अवसर पर उसका संरक्षक प्रीस्ट ऑफ़ टोर्सी ‘वर्जिन मैरी’ के स्वरूप का मार्मिक बखान करता है-
‘Pray to the Holy Virgin. She is, of course, the mother of mankind, but she is also its daughter. The ancient world, the world before grace, rocked her in its cradle. For centuries its old hands protected the wondrous young girl whose name it didn’t even know. A little girl, this queen of the angels, which she still is to this day.’ ‘होली वर्जिन’ के लिए इससे सुंदर शब्द मैंने अन्यत्र नहीं सुने। ये निश्चय ही भावविभोर कर देने वाले हैं। इनका कंट्री प्रीस्ट पर गहरा असर पड़ता है। वह सोच में डूब जाता है।
अगले दृश्य में हम देखते हैं कि सांझ का झुटपुटा है और कंट्री प्रीस्ट ग्राम के सीमान्त पर है। वह घर लौट रहा है, तभी उसे तीखी वेदना होती है। वह गिर पड़ता है और ख़ून की क़ै करता है। उसके कपड़े कीचड़ और क़ै में लथपथ हो जाते हैं। अचेत होने से पहले वह ‘वर्जिन मेरी’ के स्वरूप का स्मरण करता है-
‘I think I called out. The image of the Holy Virgin was constantly before me. A sublime creature. Her hands- I stared at her hands. Now I’d see them, now they’d disappear. As my pain grew more extreme, I took one of them in mine. It was the hand of a poor child, already roughened by hard work and washing। I closed my eyes.’
ईसाई परम्परा में ‘मारियन अपारिशन्स’ एक सर्वमान्य परिघटना है। अनेक व्यक्तियों को ‘होली मैरी’ के विज़न दिखते हैं। इंगमर बेर्गमन की फ़िल्म ‘द सेवेन्थ सील’ में भी एक वही व्यक्ति अंत में जीवित रहता है, जिसे ‘होली वर्जिन’ का विज़न निरंतर दिखता रहता है। किन्तु ब्रेसाँ के कंट्री प्रीस्ट के साथ बात दूसरी है।
अचेत हो जाने से पहले कंट्री प्रीस्ट दैवीय बिम्ब के स्पर्श को अनुभव करता है, किन्तु, ‘इट वॉज़ द हैंड ऑफ़ अ पुअर चाइल्ड!’ कौन है यह पुअर चाइल्ड?
चेतना लौटने पर वह पाता है कि वास्तव में सेराफ़ीता उसकी सेवा-सुश्रूषा कर रही है। यह वही किशोरी है, जिसे वह अपनी सैक्रामेंटल क्लासेस में पढ़ाता है। वह अभी बालिका ही है, किन्तु निश्चित ही, देवताओं जैसे पवित्र किन्तु यातनापूर्ण चेहरे वाले इस नौजवान प्रीस्ट के प्रति वह आकर्षित है। कंट्री प्रीस्ट यूकारिस्ट के बारे में पूछता है, तो वह कहती है आपकी आँखें कितनी सुंदर है। वह प्रीस्ट के नाम चिट्ठी लिखकर उसके सामने बस्ता फेंककर चली जाती है। युवा प्रीस्ट उसकी हरकतों से झेंपा रहता है। फिर यही सेराफ़ीता उसकी सुश्रूषा करती है और उसके रक्त और वमन को साफ़ करती है, जबकि अपनी अचेतावस्था में वह उसकी कल्पना ‘वर्जिन मैरी’ की तरह करता है!
कौन जाने, वह स्वयं को माइकेलेंजेलो की कृति ‘पीएता’ के जीसस की तरह देख रहा हो, जिसमें ईश्वर के पुत्र की प्राणहीन देह ‘होली मदर’ की गोद में निश्चल पड़ी है। अंद्रेई तारकोव्स्की इस दृश्य-बिम्ब को एक भिन्न परिप्रेक्ष्य में अपनी फ़िल्म ‘द सैक्रिफाइस’ में दर्शाते हैं।
‘डायरी ऑफ़ अ कंट्री प्रीस्ट’ में पांच मुख्य स्त्री-चरित्र हैं।
पहली है बालिका सेराफ़ीता, जो युवा प्रीस्ट के प्रति आकृष्ट है।
दूसरी है मिस लुई, जो उसके गिरजे में प्रार्थना करने वाली इकलौती स्त्री है। पैरिश के काउंट से उसके यौन सम्बंध हैं, और वह प्रीस्ट के नाम एक बेनाम चिट्ठी लिखकर उसे कहती है कि वह वहाँ से चला जाए। शायद, प्रीस्ट की उपस्थिति उसे ग्लानि का अनुभव कराती है।
तीसरी है काउंटेस, जो अपने बेटे की मृत्यु पर शोक में डूबी है। प्रीस्ट उसे ‘डिवाइन ग्रेस’ को अंगीकार करने के लिए उकसाता है। आत्महत्या करने से पूर्व वह युवा प्रीस्ट से अत्यंत कोमल स्वर में कहती है कि ईश्वर ने मुझसे एक पुत्र छीन लिया, तो दूसरा दे भी दिया।
चौथी है काउंटेस की युवा पुत्री शैन्तेल, जो निश्चय ही प्रीस्ट को सिड्यूस करना चाहती है। अपने पिता के व्यभिचार के प्रति उसके मन में वही कुंठा है, जो अपनी माँ के व्यभिचार के प्रति शेक्सपीयर के हैमलेट के मन में थी। (रिवर्स ‘ओडिपस कॉम्प्लेक्स’?) और पांचवीं है, प्रीस्ट डुफ्रेटी की प्रेमिका, जो उससे विवाह करने की अपनी इच्छा को इसलिए त्याग देती है, ताकि डुफ्रेटी के प्रीस्टहुड में बाधा ना आए।
‘डायरी ऑफ़ अ कंट्री प्रीस्ट’ में ‘डिवाइन ग्रेस’ के सिद्धांत पर अनेक पन्ने लिखे गए हैं, किन्तु इस फ़िल्म की ‘फ्रायडियन’ मानदंडों पर व्याख्या करने का प्रयास नहीं हुआ है। और यह तब है, जब कंट्री प्रीस्ट स्वयं अपने मित्र प्रीस्ट डुफ्रेटी से स्पष्ट शब्दों में कहता है कि ‘अगर मैं अपनी पवित्र शपथ को किसी के लिए तोड़ूँगा, तो वह किसी स्त्री का प्रेम ही होगा।’ (‘If I’d broken my ordination promises, I’d rather it had been for love of a woman.’)
यह कंट्री प्रीस्ट के लिए वैसा ही क्षण है, जो मुक्तिबोध ने ‘अंधेरे में’ की हाहाकारी सभ्यता-समीक्षा के दौरान अनुभव किया था-- ‘घूमता है मन उन अर्थों के घावों के आस-पास / आत्मा में चमकीली प्यास भर गयी है / उस स्वप्न-स्पर्श की, चुम्बन की याद आ रही है / याद आ रही है / अज्ञात प्रणयिनी कौन थी, कौन थी? / हाय ! यह वेदना स्नेह की गहरी / जाग गयी क्यों कर?’
जैसे ‘डायरी ऑफ़ अ कंट्री प्रीस्ट’ में अंतर्निहित लिबिडो पर कोई बात नहीं करता, वैसे ही मुक्तिबोध की महाकाव्यात्मक कविता के इस अंश की अनदेखी कर दी जाती है, जबकि ये सिगमंड फ्रायड का बुनियादी पूर्वग्रह है कि ‘The Libido is part of the ID and is the driving force of all behavior.’
हर मनोगत बाधा के बावजूद कंट्री प्रीस्ट अंततः एक ऐसा नौजवान था, जिसके प्रति किशोरी बालिकाएँ और हतवय प्रौढ़ाएँ समान रूप से आकृष्ट हो सकती थीं।
दूसरे प्रसंग को आप चाहें तो ‘ओडिपस कॉम्प्लेक्स’ के आलोक में समझ सकते हैं, पहले प्रसंग को मिलान कुन्देरा ‘इरोटिक एम्बीग्विटी’ कहकर पुकारेगा। प्रसंगवश, कुन्देरा के ‘अनबियरेबल लाइटनेस’ में ओडिपस ग्रंथि पर बात करने के ख़तरों की निर्णायक भूमिका है।
स्त्री-साहचर्य से पूर्णतया विरत मन का ही यह उद्वेग हो सकता है कि एक किशोरी ग्रामबालिका की सुश्रूषा को वह ‘होली मदर’ के स्पर्श की तरह अनुभव करता है!
उसे उदर का कैंसर है और मृत्यु सुनिश्चित है, जैसे कि वह तपेदिक से ग्रस्त फ्रांत्स काफ़्का के लिए सुनिश्चित थी। इस परिघटना ने उनके दृष्टिकोण को अनिवार्यतः विरूप कर दिया था। किन्तु अगर मृत्यु सम्मुख नहीं होती, तो कौन जाने कंट्री प्रीस्ट ‘डिवाइन ग्रेस’ के बजाय किसी स्त्री के प्रेम में अपने ‘सैल्वेशन’ की तलाश करता।
मुझे तो इसमें संदेह नहीं, क्योंकि स्वयं कंट्री प्रीस्ट के शब्दों में, ‘वह पाप पवित्र है, जो हमें लज्जा से भरता हो!’
और पुरुष के लिए स्त्री-साहचर्य से पवित्र पाप भला क्या हो सकता है?