चूड़ीवाला और अन्य कहानियाँ / अमरेन्द्र कुमार / पृष्ठ 4

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'मीरा'


'मीरा' अमरेन्द्र जी की एक लम्बी कहानी है। एक तरह से कोई जिया गया वृतांत, जिसमें विस्मृतियों की अनेक गांठें परस्पर खुलती रहती है। इस संग्रह की भूमिका में उनके ही शब्दों में परतें खोलती हुई कलम कह उठती है - " कहानी मनुष्य की अनुभूत मनोदशाओं का एक पूरा दस्तावेज़ है। यह एक ऐसी दुनिया है जहां सब कुछ अपना है - पात्र, परिवेश, परिस्थ्ति, आरम्भ, विकास और परिणति " आगे उनका कथन है -" कहानी का अंत कभी नहीं होता, उसमें एक विराम आ जाता है। एक कहानी से अनेक कहानियां निकलती है.." सच ही तो है ! उनकी कहानियां अपने जिये अनुभवों का एक लघु धारावाहिक उपन्यासिक प्रयास प्रस्तुत करती है जो शब्दों के सैलाब से अभिव्यक्त होता है जिसमें कहानी का किरदार, अपने आस- पास का माहौल, रहन- सहन, कथन-शैली से जुड़ते हुए भी किताना बेगाना रहता है। एक विडंबनाओं का पूरा सैलाब उमड़ पड़ता है कहानी 'मीरा' के दरमियान जिसमें समोहित है आदमी की पीड़ा, तन्हाईयों का आलम, परिस्थितियों से जूझते हुए कहीं घुटने टेक देने की पीड़ा, उसके बाद भी दिल का कोई कोना इन दशाओं और दिशाओं के बावजूद वैसा ही रहता है - "कोरा, अछूता, निरीह, बेबस और कमजोर"। "मां नहीं रही.." खबर आई, समय जैसे थम गया, सांस अटक गयी, आंसू निकले और साथ में एक आर्तनाद" लेखक के पात्र का दर्द इस विवरण में शब्दों के माध्यम से परिपूर्णता से ज़ाहिर हो रहा है। आगे लिखते है " सब कुछ लगा जैसे ढहने, बहने, गिरने और चरमराने और मैं उनके बीछ दबता, घुटता, और मिटता चला गया " नियति की बख़्शी हुई बेबसी शायद इन्सान की आखिरी पूंजी है। मन परिन्दा सतह से उठकर अपनी जड़ों से दूर हो जाता है, लेकिन क्या वह बन्धन, उस ममता, उस बिछोह के दुख से उपर उठ पाता है ? अतीत की विशाल परछाईयों में कुछ कोमल, कुछ कठोर, कुछ निर्मल, कुछ म्लान, कुछ साफ, कुछ धुंधली सी स्मृतियां, टटोलने पर हर मानव मन के किसी कोने में सुरक्षित पायी जाती है। दर्द के दायरे में जिया गया हर पल किसी न किसी मोड़ पर फिर जीवित हो उठता है । अमरेंद्र जी की क़लम की स्याही कहानी की रौ में कहती-बहती इसी मनोदशा से गुज़रे 'मीरा' के जीवन को रेखांकित कर पाई है, जो बचपन, किशोरावस्था से जवानी और फिर उसी उम्र की ढलान से सूर्योदय से सूर्यास्त तक का सफ़र करती है। कहानी में अमरेन्द्र ने अनुरागी मन के बंधन को खूब उभारा है जहां मीरा की सशक्तता सामने ज़िन्दा बनकर आती है - वहीं नारी जो संकल्पों के पत्थर जुटाकर, अपनी बिख़री आस्थाओं की नींव पर एक नवीन संसार का निर्माण करती है। मानवीय संबंधों की प्रभावशाली कहानी है 'मीरा' !

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