चोट / सुभाष नीरव / पृष्ठ 1
- चोट
- सुभाष नीरव
सफदरजंग एअरपोर्ट के बस-स्टॉप से कुछ हटकर मोटरसाइकिल के समीप खड़े लड़के ने लड़की को अपने निकट आते देख कहा, आज कितनी देर कर दी तुमने।
हाँ, थोड़ी देर हो गई। सॉरी। बस ही देर से मिली।
थोड़ी देर?... पूरे एक घंटे से खड़ा हूँ। लड़का गुस्से में था, घर से ही देर से निकली होगी। किदवई नगर से एअरपोर्ट के लिए हर एक सेकेंड पर बस है। हेल्मिट पहन मोटरसाइकिल स्टार्ट कर लड़का बोला।
लड़की ने एक बार इधर-उधर देखा और फिर उचक कर लड़के के पीछे बैठ गई।
कहाँ चलना है? मोटरसाइकिल के आगे सरकते ही लड़के ने पूछा।
कहीं भी, पर यहाँ से निकलो। लड़की ने दायाँ हाथ लड़के के कंधे पर रख आगे सरकते हुए कहा।
प्रगति मैदान या पुराना किला चलें?
कहीं भी, जहाँ तुम चाहो।
हवा से बचने के लिए लड़की ने हाथ लड़के के विनचेस्टर की जेबों में ठूँस लिए थे और अपनी छाती को लड़के की पीठ से चिपका लिया था। लड़की का ऐसा करना लड़के को अच्छा लगा। उसका गुस्सा जाता रहा।
सुनो... लड़की ने लड़के के दायें कान की ओर मुँह करके कहा, हम लोग एअरपोर्ट वाले बस-स्टॉप पर नहीं मिला करेंगे।
क्यों?
इस बस-स्टॉप से ऑफिस के कई लोग बस चेंज करते हैं।
सामने रेड-लाइट आ गई थी। रुकना पड़ा। लड़के ने मुँह घुमाकर लड़की की ओर देखा। उसकी आँखों में चमक और होंठों पर मुस्कराहट थी। उसने पूछा, फिर कहाँ मिला करूँ?
ऊँ... लड़की ने होंठों को गोल करते हुए कुछ देर सोचा और बोली, मदरसे के बस-स्टॉप... पर तुम स्टॉप से कुछ दूर हटकर खड़े हुआ करो।