चोट / सुभाष नीरव / पृष्ठ 2

Gadya Kosh से
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हरी बत्ती होते ही लड़के ने बाइक गियर में लेकर एक्सीलेटर दबाया और वाहनों के बीच से लहराते हुए बाइक को निकालने लगा।

क्या करते हो?... ठीक से चलाओ।

लड़का मस्ती में था। उसने बाइक और तेज़ कर दी। इस पर लड़की ने उसकी पीठ में चुकोटी काटी और बोली, बहुत मस्ती आ रही है?... हैं!

पुराने किले के बाहर पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर वे दोनों झील के साथ वाले पॉर्क की ओर बढ़ गए। झील का पानी सर्दियों की सुनहरी खिली धूप में चमक रहा था और उसमें बोटिंग करते लोगों से झील जैसे जीवंत हो उठी थी। वे झील के किनारे ढलान पर एक झाड़ी की ओट में बैठ गए। उनके बैठते ही बत्तखों का एक झुण्ड जाने किधर से आया और उनके इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगा। लड़की लड़के को भूलकर बत्तखों से खेलने लगी। अब लड़की अपने आसपास की घास तोड़कर बत्तखों पर फेंक रही थी और हाथ बढ़ाकर उन्हें अपने पास बुला रही थी। जब कोई बत्तख उसके बहुत निकट आ जाती, वह डर कर उठ खड़ी होती। लड़की का जब यह खेल लम्बा खिंचने लगा तो लड़का उखड़ गया।

छोड़ो भी अब...।

लड़की लड़के की रुखाई देख हँस दी और तोड़ी हुई घास की बरखा लड़के पर करने लगी। लड़का फिर झुंझलाया, क्या करती हो? और अपने कपड़े झाड़ने लगा। लड़की उसके समीप बैठते हुए बोली, गुस्से में तुम अधिक सुंदर लगते हो।

लड़के ने लड़की की बाईं हथेली पर अपनी दाईं हथेली रख दी। लड़की ने इधर-उधर देखा और लड़के की फैली हुई टांगों को सिरहाना बनाकर अधलेटी हो गई। अब लड़का रोमांचित हो रहा था। उसने घास के तिनके तोड़े और उन्हें लड़की के कान, नाक, गाल और गले पर फिराने लगा। लड़की को गुदगुदी होती तो वह हँसती हुई दोहरी हो जाती।

ढलान के ऊपर पटरी पर लोग आ-जा रहे थे। आरंभ में आते-जाते लोगों से लड़का-लड़की घबरा उठते थे और प्यार-भरी हरकतें करना बन्द कर देते थे। अब ऐसा नहीं करते। बस, लड़की चौकन्ना रहती है। कहीं आते-जाते लोगों में कोई परिचित चेहरा न निकल आए।

चलो, किले के अंदर चलते हैं। बहुत दिन हो गए उधर गए। लड़के ने एकाएक कहा। लड़की समझ गई, लड़के का आशय। एकांत वह भी चाहती थी। वह तुरन्त खड़ी हो गई।

किले के अंदर अपनी पुरानी जगह पर वे बैठ गए- एक टूटी दीवार से पीठ टिका कर। उनकी आँखों के ठीक सामने एक लम्बा लॉन था जिसकी मखमल-सी घास धूप में चमक रही थी। एक मालगाड़ी धीमी गति से निजामुद्दीन की ओर से आ रही थी, तिलक ब्रिज की ओर। लड़की ने कुछ देर गाड़ी के डिब्बे गिनने की कोशिश की, किन्तु ना-कामयाब रही।

तुमने बताया नहीं, आज तुम देर से क्यों आई? लड़के ने लड़की की गोद में सिर छिपाते हुए पूछा। लड़की ने झुक कर लड़के का माथा चूमा और बोली, बस, यों ही देर हो गई। दरअसल...।

दरअसल क्या?

डिस्पेंसरी गई थी।

डिस्पेंसरी?... लड़का चौंका, क्यों? कौन बीमार है? घर पर सब ठीक तो है? लड़के ने एक साथ कई सवाल कर डाले।

सब ठीक है।

फिर, डिस्पेंसरी क्यों गई थीं?

अपनी दवा लेने।

क्यों, क्या हुआ तुम्हें?

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