चौथा अध्याय / बयान 12 / चंद्रकांता

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वह दिन आ गया कि जब बारह बजे रात को बद्रीनाथ का सिर लेकर आफतखां महल में पहुंचे। आज शहर भर में खलबली मची हुई थी। शाम ही से महाराज जयसिंह खुद सब तरह का इंतजाम कर रहे थे। बड़े - बड़े बहादुर और फुर्तीले जवांमर्द महल के अंदर इकट्ठा किए जा रहे थे। सबों में जोश फैलता जाता था। महाराज खुद हाथ में तलवार लिये इधर - से - उधर टहलते और लोगों की बहादुरी की तारीफ करके कहते थे कि ”सिवाय अपने जान - पहचान के किसी गैर को किसी वक्त कहीं देखो गिरफ्तार कर लो” और बहादुर लोग आपस में डींग हांक रहे थे कि यो पकडूंगा, यों काटूंगा! महल के बाहर पहरे का इंतजाम कम कर दिया गया, क्योंकि महाराज को पूरा भरोसा था कि महल में आते ही आफतखां को गिरफ्तार कर लेंगे और जब बाहर पहरा कम रहेगा तो वह बखूबी महल में चला आवेगा, नहीं तो दो - चार पहरे वालों को मारकर भाग जायगा। महल के अंदर रोशनी भी खूब कर दी गयी, तमाम मकान दिन की तरह चमक रहा था।

आधी रात बीता ही चाहती थी कि पूरब की छत से छ: आदमी धामाधाम कूदकर धाड़धाड़ाते हुए उस भीड़ के बीच में आकर खड़े हो गये, जहां बहुत से बहादुर बैठे और खड़े थे। सबके आगे वही आफतखां बद्रीनाथ का सिर हाथ में लटकाये हुए था।