छूता-फिसलता जीवन (पृष्ठ-2) / तेजेन्द्र शर्मा
<< पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |
मैंडी चिल्ला रही थी लेकिन उस कब्रिस्तान के अधिकतर मुर्दे ब्रिटिश राज के लोग थे जो इस बात के शायद आदि थे कि एक गोरा युवक एक भारतीय मूल की लड़की के साथ ज़बरदस्ती कर रहा है। मैंडी ने सदा ही जेम्स के साथ हमबिस्तर होने के स्वप्न देखे थे। लेकिन इतनी बेहूदगी के साथ नहीं। वासना मैंडी में भी मौजूद थी, लेकिन प्रेम के साथ। फिर भी मैंडी के शरीर में जेम्स के छू लेने मात्र से एक तनाव सा उत्पन्न हो रहा था। बस कुछ ही पलों में सब कुछ समाप्त हो गया। मैंडी अब भी उम्मीद लगाए बैठी थी कि जेम्स प्रेम के दो शब्द बोलेगा।
जेम्स बोला, "लुक मैंडी, किसी को कुछ बताना नहीं।-- वर्ना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।" और वह मैंडी को उसी हालत में छोड़ कर चलता बना। मैंडी स्तब्ध पड़ी रह गई। कब्रों में दफ़न लाशों के बीच वह अकेली ताज़ा लाश पड़ी थी, जिसे कोई दफ़न करने वाला वहां नहीं था। उस पर फूल चढ़ाने वाला कोई नहीं था, बस उसकी मिट्टी ख़राब करके जेम्स वहां से चलता बना था। सूजी आंखें लिए मैंडी अपने घर पहुंची। बीजी ने देखा, 'हाय नी, तैनू की होया?'
मैंडी चुप !
बीजी ताड़ गईं कि कुछ न कुछ हादसा तो ज़रूर हुआ है। लड़की गुमसुम सी हो गई है। बेटी के कपड़ों की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर, गले पर लगे खरोंच के निशान ¬ सब अपनी कहानी कह रहे थे। मां बेचैन हुए जा रही थी। बेटी का स्वप्न भंग हो चुका था।
कब तक अपने दर्द को भीतर समेटे रहती। रुलाई फूट पड़ी और मां सकते में रह गई, "नमक हराम! कमीना! वाहेगुरू दी मार पये ओस कंजर ते।" मां इस दुविधा में थी कि बेटे को बताए या न बताए। ख़ून ख़राबा न हो जाए। पति को बताती है तो वो सीधा पुलिस के पास जायेगा। यहां के कानून पर उनको अंधविश्वास है।
दार जी घर में ही थे। कमलजीत अभी लौटा नहीं था। मां की आवाज़ दारजी तक भी पहुंच गयी। दार जी भी कमरे में आ पहुंचे। उनकी अनुभवी आंखों ने पल भर में ही समझ लिया कि मामला गड़बड़ है। पत्नी की ओर प्रश्नवाची दृष्टि से देखा। फिर पुत्री की दशा देखी। जेम्स का नाम वो सुन ही चुके थे।
"देखो, यहां इस मुलक में कनून नाम की चीज़ मौजूद है। काके को कुछ बताने दी जरूरत नहीं है। तुसी दोनो मेरे नाल चलो। याद रखो, जे कर हम ने कनूनी कारवाही नहीं की तो हम जेम्स को कभी भी सज़ा नहीं दिलवा पाएंगे। इसलिये जरूरी है कि पहले पुलिस स्टेशन चल के रिपोर्ट लिखवाई जाये और मन्दीप का मैडिकल करवाया जाये। काके को उसके बाद भी बताया जा सकदा है।" दारजी ने खड़े कदमों ही पत्नी एवं पुत्री को साथ लिया और हाउन्सलों पुलिस स्टेशन की तरफ़ कार बढ़ा दी।
पुलिस स्टेशन में जब प्रतीक्षा करते करते लगभग एक घन्टे तक किसी ने उनकी सुध भी नहीं ली, तो दारजी का विश्वास भी डगमगाने लगा। वे बार बार उठ कर काउण्टर पर बैठे पुलिस कांस्टेबल से रिपोर्ट लिखने को कह रहे थे। लेकिन वह बार बार उनको इन्तज़ार करने को कह देता। जब दारजी ने देखा कि उनके बाद आई एक सफ़ेद ब्रितानवी औरत की रिपोर्ट उनके सामने ही उनसे पहले लिख ली गई तो उनकी बरदाश्त से भी बाहर होने लगा। वे उठ कर अंग्रेज़ी में लगभग चिल्ला पड़े, "आफ़ीसर, तुम्हें इस तरह हमारी बेइज्ज़ती करने का कोई अधिकार नहीं। हम भी इस देश के टैक्स अदा करने वाल बाइज्ज़त शहरी हैं। मैं भी काउंसिल में ऊंचे पद पर काम करता हूं। मुझे आपकी रिपोर्ट आपके ऊंचे अधिकारी से करनी पड़ेगी। आपका यह रेसिस्ट एटिट्यूड ही पुलिस की बदनामी का बायस है।"
सामने बैठा अधिकारी दारजी की अचानक डांट से गड़बड़ा गया। उसे किसी भी भारतीय मूल के व्यक्ति से इस प्रकार की भाषा की उम्मीद नहीं थी। वह दारजी की पोज़ीशन की इज्ज़त करते हुए रिपोर्ट लिखने लगा। मैण्डी के मेडिकल चैक-अप के लिये उसे हस्पताल भेजा गया। मैण्डी चुप थी, बीजी परेशान और दारजी आगे की सोच रहे थे।
पुलिस ने केस दर्ज कर लिया था। हस्पताल की रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया था कि यह करतूत जेम्स की ही है। जेम्स का वही पुराना राग था कि मैण्डी ने अपनी मर्ज़ी से उसके साथ संभोग किया है। केस अदालत पहुंचने वाला था। पेशी की पहली तारीख़ भी तय हो गई थी।
मैण्डी के लिये हाउन्सलो, बाथ रोड, हाई स्ट्रीट सभी के अर्थ बदल गये थे। हीथ्रों हवाई अड्डे पर उतरने वाले विमान आज भी वहां से नीचे हो कर गुज़रते थे। लेकिन उन्हें देख कर अब उसके दिल में कुछ होता नहीं। दिल धड़कता है लेकिन ज़िन्दा महसूस नहीं होता। सड़क पर, स्टोर में, पेड़ के झुरमुटों में युवा लड़के लड़कियां आज भी चुम्बन लेते दिखाई देते हैं लेकिन मैण्डी पर उसका कोई असर नहीं होता। मैण्डी का चहकना बन्द हो गया था। अब वो डाइनिंग टेबल पर आती ही नहीं थी। बस अपने कमरे में चुप चुपीती खाना खा लेती।
समय बीत रहा था किन्तु मैण्डी अब भी चुप थी; परेशान थी; कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। आज बहुत दिनों बाद उसने कुछ सोचा, "अगर जेम्स उससे प्यार से यह सब करने को कहता तो वह कितनी आसानी से तैयार हो जाती। वह तो उन पलों की कब से प्रतीक्षा कर रही थी। ..फिर जेम्स ने ऐसा क्यों किया? क्या यह उसके प्यार करने का अंदाज़ है?...किन्तु उसके व्यवहार में प्रेम तो कहीं से भी महसूस नहीं हो रहा था। वह तो एक वहशी दरिंदे की तरह पेश आ रहा था। उसमें केवल वासना थी, प्रेम अगर होता तो क्या वह महसूस न कर लेती! कहीं वह जेम्स के प्रति अधिक कठोर तो नहीं हो रही? कहीं वह अपने माता पिता के कहने में आकर तो यह कदम नहीं उठा गई? ...नहीं! ऐसा नहीं है। उसने सही कदम उठाया है। जब वह स्वयं जानवर नहीं है तो किसी जानवर को अपनी इज्ज़त से क्यों खेलने दे? "
कमलजीत के लिये अपने आपको रोक पाना बहुत ही कठिन हो रहा था। दारजी को बहुत मेहनत करनी पड़ी उसे समझाने में, "काका, तूं मेरी गल्ल सुण। जे तूं उसनूं मार दवेंगा ते होवेगा की? तैनूं वी जेल हो जावेगी! बस ऐही ना। पुत्तरा तूं देखीं, जेम्स नूं घटो घट सत्त साल दी जेल न करवाई ते मेरा नां बदल देवीं। उसदे नां अगे सारी उमर लई लिखया जावेगा कि ओह क्रिमिनल है।" "दारजी, इट इज़ थिंकिंग लाइक यूअरज़, जेड़ी कि ऐहनां गोरयां नूं ज़्यादा शह देंदी है। दे मस्ट नो दैट दे कैन्नॉट टेक अस फ़ॉर-ग्रांटेड"
"काका याद रक्खों कि गुस्से नाल कदी कोई गल्ल हल नहीं होंदी। बस, अपणी भैण दा ध्यान रखो। मां दे दु:ख नूं घट करो। कनून नूं अपणा कम करण देवो।"
मैण्डी फिर सोच में डूब गई है। जेम्स अब भी उसके सपनों में आता है, उसे परेशान करता है, उससे बातें करता है। मैण्डी परेशान इसलिये भी है कि असल ज़िन्दगी में तो जेम्स ने कभी उससे बातें नहीं कीं। उसकी आवाज़ में बस उसकी एक ही बात मैण्डी के दिल पर छाई हुई है, " लुक मैंडी, किसी को कुछ बताना नहीं।-- वर्ना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। " यह आवाज़ रह रह कर मैण्डी को कचोटती है। अगर इसकी जगह सिर्फ़ इतना ही कह देता, "मैण्डी आई लव यू ! "...तो मैण्डी तो उस पर वारी वारी जाती। "अगर वो अब भी मुझे मनाने के लिये आ जाए और मुझ से प्यार की इजाज़त मांगे, तो क्या मैं उसको नां कह पाऊंगी? " क्या सोच का कोई अंत नहीं होता?
अवश्य होता होगा ; लेकिन मैण्डी तो सोच से बाहर आना ही नहीं चाहती। सपनों की दुनियां उसे कहीं अधिक हसीन लगती है। उसे अब भी उम्मीद है कि जेम्स शायद उससे माफ़ी मांगने आ जाये। डाइनिंग टेबल पर अब भी वो उस कुर्सी को निहारती है जिस पर जेम्स बैट कर भोजन खाया करता था। तीन महीने बाद भी उससे भोजन खाया नहीं जा रहा। दिल मितलाने सा लगा है।
सुबह तो बिना भोजन किये ही मितली होने लगी। बीजी ने देखा। उनका चेहरा फक्क पड़ गया। झट से बेटी को कुर्सी पर बिठाया ; उसकी पीठ मली, "बेटा, कैसी है तबीयत ?... जी कैसा हो रहा है ? " बीजी किचन में गईं और वहां से नीबू का खट्टा मीठा अचार ले आईं। "थोड़ा सा खा लै बेटी, तबीयत संभल जावेगी। " बीजी ने देखा कि अचार चाटने से मैण्डी बेहतर महसूस करने लगी थी। मुंह से निकल पड़ा, "वाहे गुरू तूं एह की कर दित्ता ? "
रात को भोजन के बाद बीजी ने दारजी से बात शुरू की, "जी तुहाडे नाल इक गल्ल करनी सी। "
"बोल गुरप्रीत, की होया ? "
"जो नहीं होणा चाहीदा सी, ओह हो गया जे। "
"पहेलियां न बुझा, ते सिद्धी सिद्धी गल कर। "
"कुड़ी नूं उलटियां आण लग पयिआं ने, ते खट्टा खाण नू जी करण लग पेया जे। "
"फटाफट अबॉरशन करवाणा पवेगा। साढी तां पहले ही नक वड्डी गयी है। हुण जे बच्चे दी ख़बर वी फैल गई, तां किसे नूं मुंह दिखाण दे काबल नहीं रहांगे। ... तूं ज़रा मन्दीप नाल गल करके देख। की कहंदी है। "
मंदीप अपनी हालत से बेख़बर सो रही थी। मां बाप की नींद सिरे से ग़ायब थी। मां सुबह के इंतज़ार में आंखें जपजी साहब के गुटके में गड़ाये थी तो पिता कुर्सी पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रहे थे। मंदीप की चिन्ता न जेम्स को थी, न दारजी और बीजी को। सब को अपनी चिन्ता थी।
सुबह के आने के साथ ही बीजी मंन्दीप के आस पास घूमने लगीं, "बच्चिये, तेरे मेंसिज़ होये काफ़ी दिन हो गये। कोई तकलीफ़ तां नहीं है ना ? "
"हां बीजी, दो तिन महीने तों नहीं होये, मैं तां सोचया ही नहीं। "
"देख धीये, इक गल ठीक तरह समझ लै कि एह कोई छोटी मोटी गल नहीं है। तूं हाले बच्चा जम्मण दे काबल नहीं हैं। हाले तेरा ब्याह करणा है असी। ... पुत्रा, इह हमल तां तैनूं गिरवाणा ही पवेगा।"
सन्न सी खड़ी रह गई थी मन्दीप।... जेम्स से अनचाहा मिलन भी अपनी याद की निशानी उसके पेट में छोड़ गया है। "आई हेट दैट बास्टर्ड ! " मन्दीप के मन से जेम्स के लिये बस गालियां ही निकल रही थीं। उसने बीजी की किसी बात का भी जवाब नहीं दिया। बस आंखें गीली करती रही। उसने बोला एक शब्द भी नहीं।
बीजी अपने दोस्तों में पता करने का प्रयास करती रहीं कि किसी ऐसी क्लिनिक का पता चल सके, जहां चुपके से जा कर अबॉर्शन हो सके। उनकी भूख और नींद दोनों ही उड़ गई थीं। मैण्डी कुछ तय नहीं कर पा रही थी कि अबॉर्शन करवाना है या नहीं। उसके पेट में जो बच्चा पल रहा है वो जेम्स का है, या मेरा है। बहुत मुश्किल हो रही थी उसे।
जेम्स के प्रति उसकी नफ़रत बढ़ती जा रही थी। अगर जेम्स ने उससे विवाह किया होता और वह गर्भवती होती, तो दोनों गर्भ ठहरने से पहले और बाद में बच्चे के बारे में कितनी बातें करते। उस होने वाले बच्चे के भविष्य की चर्चा करते। यह बच्चा अनचाहा बच्चा नहीं होता। इस बच्चे के माता पिता की चाहत इस बच्चे के लिये पैदा होने से पहले ही उसके लिये कितनी दुआओं और शुभकामनाओं का माहौल पैदा कर देते। नाना नानी कितनी रस्में करते !...गुरूद्वारे ले जाते, रिश्तेदार गोद भराई के लिये आते। आज सब कुछ कितना ग़लत है। मैण्डी वही है, उसके पेट में बच्च पहुंचाने वाला जेम्स वही है, बच्चे के नाना नानी वही हैं, लेकिन सब ग़लत है, पूरी तरह से ग़लत। मैण्डी के लिये जेम्स आज सबसे बड़ा अपराधी है – उसका भी और होने वाले बच्चे का भी। बीजी के मनाते मनाते न मालूम कितने महीने बीत गये। हालांकि अभी मैण्डी का पेट बहुत बड़ा नहीं दिखाई दे रहा था। फिर भी बीजी की निगाह हर वक्त मैण्डी के पेट पर ही लगी रहती। अन्तत : मैण्डी डॉक्टर से मिलने के लिये राज़ी हो गई। डाक्टर ने देखा। टेस्ट किये, "मिसेज़ ब्रार, आई एम सॉरी, अब तो बहुत देर हो चुकी है। इस स्टेज पर सर्जरी करने से बच्चे के साथ साथ मां की जान को भी ख़तरा हो सकता है। अब तो इस बच्चे को जन्म लेना ही होगा।
हार कर बैठ गई थीं बीजी। आज अदालत में जेम्स का फ़ैसला होने वाला है। मैण्डी अब भी उम्मीद लगाए है कि जेम्स उस से माफ़ी मांग लेगा और सब ठीक हो जायेगा। अगर जेम्स को माफ़ी मांगनी होती तो हालात यहां तक पहुंचते ही कैसे ?
बीजी अपनी बेटी को ले कर आख़री महीने के लिये बरमिंघम में अपनी एक सहेली के घर रहने चली गईं। चंचल खन्ना उनकी बचपन की सहेली थी। दोनों को एक दूसरे के सभी राज़ मालूम थे। यह कैसे छुपा रहता। बेटा पैदा हुआ। मैण्डी ने उसे देखने से भी इन्कार कर दिया। जेम्स के प्रति बढ़ती नफ़रत ने उसे अपने पुत्र से भी बेसरोकार कर दिया था। चंचल ने ही पुत्र को नाम दिया था – पैरी। चंचल का कहना था कि बेटा बहुत प्यारा है बिल्कुल प्यारे मोहन – ब्रिटेन के लिये पैरी।
किन्तु मन्दीप के मन में उस बच्चे के लिये न तो मन में कोई प्यार था और न ही सरोकार। बच्चा जगत में बीजी की इच्छा के विरुद्ध आया था किन्तु उसका सारा काम बीजी को ही करना पड़ता। मन्दीप तो बस पड़ी रहती। कभी उठती, नहाती, भोजन करती। लेकिन चुपचाप पड़ी रहती। जेम्स को हुई सज़ा में भी उसे कोई रुची नहीं थी। उस सज़ा ने बीजी और दारजी को ज़रूर तसल्ली दी किन्तु मन्दीप के लिये उसका कोई अर्थ नहीं था। अब जेम्स का ज़िन्दा होना या न होना मन्दीप के लिये कोई अर्थ ही नहीं रखता था। जज ने भी जेम्स को कहा था कि अगर वह मन्दीप से माफ़ी मांग कर उससे विवाह के पेशकश करे, तो उसकी सज़ा कम की जा सकती है, या फिर केवल कम्यूनिटी सर्विस से ही सज़ा पूरी हो सकती है। लेकिन जेम्स के मन में मन्दीप के लिये न तो कोई स्थान था न चाहत।
पैरी के रोने, सोने, खाने या पीने में मन्दीप को कोई रूचि नहीं थी। एक दिन दारजी तक ने कह दिया, "एह मुण्डा सोहणा किन्ना है। " लेकिन मन्दीप ने कभी कोई ध्यान ही नहीं दिया। सब परेशान थे कि ऐसा क्या किया जाये जिससे मन्दीप के मन में जीने की चाह एक बार फिर पैदा हो जाये।...सब के सब अपने यत्नों में असफल हो चुके थे। लेकिन आज जब पैरी बस गिरने ही वाला था कि मैंडी ने भाग कर उसे अपनी बाहों में भर लिया.. ..अपनी गोदी में बिठा लिया। आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह पैरी की मां है। पैरी की संभावित चोट ने उसके भीतर की औरत को जैसे आज अचानक जीवित कर दिया था।
पैरी मुस्कुराया, और मैंडी के गाल को चूम लिया।
<< पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |