जब दरवाज़ा बनता था / अभिज्ञात / पृष्ठ 6

Gadya Kosh से
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उस दिन उसके घर के सामने लोगों का मजमा लग गया। विधायक, सरपंच, स्कूल के हेडमास्टर और प्रबंधक सब के सब उसके दरवाज़े पर हाथ जोड़े खड़े थे। और एक ट्रक उसके घर के सामने आकर लगा। जिससे उसका दरवाज़ा उतारा गया। बेचन से कहा गया कि कृपया वह यह साफ़-साफ़ लिखकर दे कि उसका दरवाज़ा सही स्थिति में सादर उसे अपने घर पर प्राप्त हो गया है। यह उस पत्र का कमाल था जो उसने राष्ट्रपति जी को लिखा था। सबने अपनी भूल-चूक के लिए उससे माफी मांगी और दरवाज़ा वहीं छोड़कर चलते बने।


इस बीच बेचन लगातार दरवाज़ा प्रकरण में ही परेशान रहा था। अब जबकि दरवाज़ा लौट आया था उसकी मुश्किलें बढ़ गयी थीं। उसके सामने प्रश्न था इस विशालकाय दरवाज़े का वह क्या करे। रखे भी तो कहां। जिस कमरे में वह बना था दरवाज़े को बाहर निकालने के लिए उसकी एक दीवार तोड़ी गयी थी। वह अभी हाल ही में फिर से जोड़ दी गयी थी। पत्नी ने उसे इतनी जली- कटी सुनायी थी कि उसमें साहस न बचा था कि दुबारा दीवार तोड़कर दरवाज़े को घर के भीतर ले जाकर रखे। घर के बाहर पड़े रहने भी दें तो पानी से कैसे बचायेंगे। बारिश के दिन करीब थे। बारिश पड़ी तो वह पड़ा- पड़ा सड़ जायेगा।

बेचन की पत्नी ने कहा-"यह देववृक्ष को काटकर बना है। उसी का श्राप लगा है। श्राप के कहर से अपने परिवार को बचाने की आवश्यकता है। मैं पंडित जी से उपाय पूछती हूं। अब तो वे जो कुछ कहेंगे वही होगा।’

बेचन चुपचाप सुनता रहा जिसका मतलब था उसे यह बात मंज़ूर है।

पंडित जी ने जो उपाय बताया वह कम खर्चीला नहीं था। हवन होगा। उनके नेतृत्व में पांच पंडित हवन करेंगे। दरवाज़े के आकार का हवनकुंड बनाया जायेगा। उसमें दरवाज़े को उसी रूप में अग्रि को समर्पित कर दिया जायेगा जिस रूप में वह है। यह देववृक्ष से बना है। देववृक्ष को काटकर बनाना महापाप था जिसके कारण बेचन का परिवार मुश्किल में फंसेगा। छुटकारा पाने का उपाय है उसे अग्रि को समर्पित कर देना। वह जलकर राख हो जायेगा तो पाप भी जल जायेंगे। पंडितों को दक्षिणा देनी होगी, अंग वस्त्र देने होंगे और गांव भर को प्रसाद बांटना होगा।


नियत दिन नियत समय पर हवन शुरू हो चुका था। गांव के ज्यादातर लोग उसमें शामिल थे। लगभग दस फुट लम्बा और छह फुट चौड़ा हवन कुंड बनाया गया था। नीचे आग जलाने का इन्तजाम था और मंत्रों के जाप के साथ जलते हवन-कुंड पर दरवाजे को लिटा दिया गया ताकि देववृक्ष के श्राप से मुक्ति मिले। अभी लकड़ियां हल्की सी झुलसी थीं और कहीं-कहीं आग पकड़ चुकी थी कि वहां दो कारें आकर रुकीं। कार से कई लोग उतरे और उन्होंने पहला काम यह किया कि हवनकुंड पर से दरवाज़े को फौरन हटवाया और उस पर पानी मरवाया। यह एक आकस्मिक विघ्न था। यह करवाने वाला और कोई नहीं बल्क़ि वह शोधकर्ता था जिसने महीनों पहले बेचन का इंटरव्यू और तस्वीरें ली थीं।

उसने जो कहानी बतायी वह दिलचस्प थी। उसकी शुरुआत खुश करने वाली और उसका अन्त बेचन को निराश करने वाला था। शोधकर्ता ने बताया-बेचन का इंटरव्यू और दरवाज़े की तस्वीरें एक प्रसिद्ध अंतर्राष्टीय आर्ट मैगज़ीन में छपी। जिसका नतीज़ा यह हुआ कि दुनिया भर के आर्ट जगत में दरवाज़ा और उसका शिल्पकार सुर्खियों में आ गया। आर्ट और नायाब वस्तुओं की नीलामी से जुड़ी एक कम्पनी ने दरवाज़े को नीलाम करने के बारे में उससे पूछा तो उसने बेचन की ओर से हामी भर दी क्योंकि वह बेचन से मिल चुका था। उसकी माली हालत जानता था और सोचता था कि इस महान कलाकार के दिन बदलें। उसका नाम हो और उसे खूब पैसा मिले। और हां इससे उसे भी फायदा हो। स्वयं उसे नहीं अन्दाजा था कि नीलामी इतनी ऊंची कीमत तक जायेगी। यदि उसकी कट मनी को उसमें से काट लिया जाये तो भी बेचन को जो रकम इस दरवाज़े के लिए मिलने वाली है वह करोड़ों में है। वह इस दरवाज़े को लेने और उसकी क़ीमत चुकता करने आया है। नीलामीकर्ता कम्पनी का प्रतिनिधि भी साथ आया है।

लेकिन अब जबकि दरवाज़ा झुलस गया है और आंशिक तौर पर जल भी गया है उसकी कीमत हजार भी न लगे। अब यह आशंका है कि वह दरवाज़ा एक अधजली लकड़ी का टुकड़ा भर न मान लिया जाये। देर रात तक वे बातचीत करते रहे। बेचन की पत्नी रह-रह कर सुबकती। वह फूट-फूट कर रोयी थी। उसे पता नहीं था उसके पति ने रात-रात भर जागकर जो किया था वह एक महान कार्य था जिसकी क़ीमत करोड़ो में थी। वह सपने जो वह दरवाज़े के कारण देखता था उसी दरवाज़े से वे पूरे होने थे। रात को दरवाज़े को देववृक्ष के सहारे खड़ा कर दिया गया था। वे सब वहीं आसपास गांव वालों से मांगी गयी चौकियों पर सो गये। सुबह जब सूर्य की किरणों ने दरवाज़े को चूमा तो दरवाजे की दीप्ति देखने लायक थी। आग से झुलस कर दरवाज़े का रंग सुनहरा और जगह जगह से अजब सा काला हो गया था। उस पर बनी आकृतियों और सजीव हो उठी थीं। शोधकर्ता के लिए भी यह एक और चमत्कार था। उसने फौरन कैमरा संभाला और दरवाज़े की कई तस्वीरें लीं। उसने बेचन से कहा-शायद बात कुछ संभल सकती है। फिर बेचन को उन्होंने अपने साथ लिया और दरवाज़े को भी अपने साथ लाये वाहन में लादा और शहर की ओर निकल पड़े। कोई नहीं जानता था कि क्या होने वाला है। बेचन की पत्नी रोज राह तकती और देववृक्ष से सब कुछ ठीक ठाक होने की मन्नतें मांगती। गांव के लोग भी बेचन से जुड़ी खबर को जानना चाहते थे। कुछ माह गुजरे। फिर वह दिन भी आया कि बेचन एक शानदार कार से घर के सामने उतरा।


अगले दिन उस स्कूल की नयी इमारत का उद्घाटन होने वाला था। उसमें विशेष मेहमान कोई और नहीं बल्कि बेचन था। उसी ने उद्घाटन का फीता काटा था। आखिर स्कूल का नाम अब उसी के पिता के नाम पर था। उसने स्कूल को बीस लाख रुपये का चंदा दिया था।

दरअसल झुलसने के बाद दरवाज़े की फिर से नीलामी की गयी थी। उसे दुर्घटना का नाम नहीं दिया गया था बल्कि कहा गया था कि शिल्पकार ने नया आधुनिक टच दिया है। कीमत पहले से दुगुनी लगी थी। बेचन के सारे सपने दरवाज़े से ही पूरे हो गये। वह उन कलाकारों में से था जिसकी पहली ही कृति को इतनी ऊंची कीमत मिली थी। और पहली ही कृति से अंतर्राष्ट्रीय पहचान बन गयी थी।