ठेठ हिंदी का ठाट / दूसरा ठाट / हरिऔध
देवबाला की माँ का नाम हेमलता है। यह देवनंदन को बहुत चाहती, जब वह घर आता, यह उसका बड़ा लाड़ प्यार करती, वह सोचती, फूल-सी मेरी लाड़िली के लिए, कौल से देवनंदन को छोड़ और कोई जोग बर नहीं हो सकता। घर में जब यह दोनों साथ खेलते, उस घड़ी हेमलता की आँखों को इन की जोड़ी देखकर बड़ा सुख मिलता। जब यह दोनों छोटे थे, उन दिनों हेमलता इन को कभी-कभी फूलों से सजाती, और दोनों को अपनी गोद में बैठाल कर सरग सुख लूटती। जब से देवनंदन सयाना हुआ है, लाज से बहुत हेमलता के घर न आता था, और इसीलिए फुलवारी में देवबाला को उलहना देना पड़ा था। पर जब कभी वह आता, हेमलता उसी भाँति उसको प्यार करती, उसी भाँति देवबाला के साथ उसको मिलने-जुलने और खेलने देती। हेमलता भले घर की पतोहू है, वह जानती थी ग्यारह बरस की लड़की का चौदह-पन्द्रह बरस के पराये लड़के के साथ मेल-जोल भलेमानसों की चाल नहीं है। पर जो बात उस के जी में थी, उससे वह दोनों के आपस के नेह में कोई बुराई न समझती। घर की फुलवारी में भी देवबाला के पास देवनंदन को आने-जाने से न रोकती।
एक दिन हेमलता अपने पती रामकान्त के पास बैठी हुई पंखा झल रही थी, इधर-उधर की बातें हो रही थीं, इसी बीच देवबाला की बात उठी। हेमलता ने कहा-”देवबाला ग्यारह बरस की हो गयी, अब उसका ब्याह हो जाना चाहिए, मैं चाहती हूँ इस बरस आप इस काम को कर डालें।”
रामकान्त ने कहा-”यह बात मेरे जी में भी बहुत दिनों से समाई है, मैं भी इस बरस उसका ब्याह कर देना चाहता हूँ, पर क्या करूँ कहीं जोग घर बर नहीं मिलता, एक ठौर ब्याह ठीक भी हुआ है, तो वह पाँच सौ रोक माँगते हैं, इसी से कुछ अटक है, नहीं तो इस बरस ब्याह होने में और कोई झंझट नहीं है।”
हेम-क्या आप मेरी बात न मानेंगे? मैं कई बार आप से कह चुकी हूँ, देवबाला के जोग देवनंदन ही है। आप क्यों नहीं देवबाला का ब्याह देवनंदन के साथ कर देते। देवनंदन से बढ़ कर बर कहाँ मिलेगा।
राम-मैं तुम को कहाँ तक समझाऊँ, देवनंदन का ब्याह हमारी लड़की के साथ नहीं हो सकता। यह मैं जानता हूँ, देवनंदन का बाप बड़ा धनी है;देवनंदन भी देखने-सुनने पढ़ने-लिखने सब बातों में अच्छा है, पर हाड़ में तो अच्छा नहीं है!
हेम-कैसा! हाड़ में अच्छा नहीं है कैसा! मैं तो जानती हँ उसके ऐसा सुघर सजीला लड़का इस गाँव भर में कोई दूसरा नहीं है।
राम-जो तुम को यही समझ होती, तो मुझ को इतनी सिरखप क्यों करनी पड़ती। मैं यह कहता हूँ, उस के घर की लड़की का ब्याह मेरे यहाँ हो सकता है, मेरे घर की लड़की उस के यहाँ नहीं दी जा सकती। वह जात में मुझ से उतर कर है।
हेम-यह कैसी बात! जिस की लड़की लेते हैं, जिस के यहाँ भात खाते हैं, वह जात में कैसे उतरा कहा जा सकता है। मैं समझती हूँ ऐसी ठौर लड़की देने में कोई बुराई नहीं है।
राम-तुमारी समझ ही कितनी! तिरिया ही न हो; बाप दादे से जो बात होती आती है, उसको कोई कैसे छोड़ सकता है। क्या लोगों के हँसने का डर तुम को नहीं है?
हेम-हँसने का डर कैसा? जान बूझ कर बुरा काम न करना चाहिए, भला काम करने पर कोई हँसे, हँसा करे। फिर जो समझवाले हैं, पढ़े-लिखे हैं, भले हैं, वह ऐसी बातों पर हँसते नहीं, कोई थोड़ी समझ का, अनपढ़, गँवार और नंगा लुच्चा हँसे, हँसा करे, इस में कोई बुराई नहीं। बाप दादे जो कर गये हैं,वही करना चाहिए, पर बाप दादे ने जो कुछ भूल की हो, कोई बुरा काम किया हो, उसको न करना ही सब लोग अच्छा समझते हैं। आप ने जहाँ देवबाला का ब्याह ठीक किया है, मैं जानती हूँ। देवपुर के दयासंकर पाण्डे के लड़के रमानाथ से आप देवबाला का गँठजोड़ करना चाहते हैं। भला बताइये तो रमानाथ-सा अनपढ़, काला-कलूटा, गाँव भर का नंगा लड़का ही देवबाला के लिए जोग बर है, दयासंकर के छप्पर के झोंपड़े ही देवबाला सी दुलारी और प्यारी लड़की के रहने जोग घर है। जनम भर के लिए लड़की धूल में मिला दी जावे, यह कोई हँसी की बात नहीं है। लड़की को अच्छा खाना न मिले,अच्छा कपड़ा न मिले वह अनपढ़, गँवार, मूफट्ट, लोहलट्ठ के पाले पड़ कर जनम भर जला करे, यह हँसी की बात नहीं है, दुख की बात नहीं है। पर जोग बर के साथ अच्छे घर में लड़की देना, सो भी उसके यहाँ जिस की लड़की लेते हैं, जिस का भात खाते हैं, हँसी की बात है। जो हँसी हँसनेवाले के मूँ तक ही रहती है, जिस हँसी से हमारा कुछ बिगाड़ नहीं हो सकता, उस ओर तो हमारा मन जाता है, पर कैसे पछतावे की बात है, जिस काम के करने से हमारी लड़की जनम भर बिपत की नदी में डूबती उतराती रहती है, उस काम के न करने की ओर हमारा मन नहीं जाता। आप मेरी इन बातों को सोचें और अपनी फूल ऐसी सुकुआरी लड़की को ऊसर में न फेंकें।
राम-आज तो तुम ने बातों की झड़ लगा दी। इतनी सी बात के लिए इतना पचड़ा, मैं तुमारी सब बातें समझता हूँ। पर जिस काम के करने से मुझ को अपनी मूँछ नीची करनी पड़ेगी, उस काम को मैं जी रहते कभी न कर सकूँगा। दयासंकर और बातों में कैसे ही होवें, पर हाड़ में बहुत अच्छे हैं, उनके यहाँ ब्याह करने ही में मेरी पत रहेगी। देवनंदन सोने का भी हो तो, हमारे काम का नहीं है।
हेम-भला काम करने में मूँछ नीची क्यों होगी, यह मैं नहीं समझती, पर जो आप नहीं मानते हैं, तो कोई अच्छा घर बर खोजिये। दयासंकर के यहाँ मैं अपनी लड़की का ब्याह कमी न होने दूँगी।
राम-न होने दोगी, तो गहने उतारो, घर दुआर बेचो, बारह चौदह सौ रोक दो, अच्छा घर बर मैं खोज देता हूँ। बेटी का ब्याह कर के घर-घर भीख माँगते फिरना।
हेम-बड़े दुख की बात है, जिन को आप हाड़ वाले कहते हैं, उनके यहाँ अच्छा घर बर मिलने से हम लोग आप कंगाल बनते हैं, जो देवनंदन का बाप सदासिव मिसिर भलेमानसों की भाँति बिना एक कौड़ी लिए हम से ब्याह करना चाहते हैं, उनके यहाँ देवबाला के देने से आप की मँछ नीची होती है। तो क्या दया-संकर के यहाँ ब्याह कर के लड़की को जनम भर के लिए मिट्टी में मिला देना ही आप अच्छा समझते हैं।
राम-किसी को कोई मिट्टी में नहीं मिलाता, जो जिस के भाग में होता है, वही होता है, देवबाला के भाग में दुख बदा है तो उसको सुख कैसे मिलेगा?
हेम-सच है, पर किसी को जान बूझ कर जब हम आग में फेंक देंगे तो वह क्यों न जलेगा, भाग वहीं माना जाता है जहाँ बस नहीं चलता।
राम-हुआ, बहुत हुआ, चुप रहो, दयासंकर भिखारी नहीं हैं, अब भी उनके पास दस पाँच बीघा खेत है, रोटी दाल चली जाती है। घर के बोझ पड़ने पर रमानाथ भी बहुत कुछ सुधार जावेगा।
हेम-नहीं नहीं मान जाओ, हठ न करो, हाड़ लेकर क्या करना होगा। अच्छा घर बर मिलता तो आप हाड़ ही वाले के यहाँ ब्याह करते, मैं न रोकती। पर जब अच्छा घर बर मिलना पैसा हाथ में न होने से कठिन है, तो मिले हुए जोग घर बर को न छोड़िये। सदासिव मिसिर भी बाम्हन ही हैं, सब बातों में हमारे जैसे हैं। हम ऊँचे हैं, वह हम से उतर के हैं, यह सब घमण्ड की बातें हैं, पढ़े-लिखे और समझ बूझवालों को ऐसी बातें नहीं सोहतीं।
रामकान्त अब की बार चिढ़ गये, बोले। देखो आज तुम ने मुझ को बहुत खिजाएा, पर चेत रखो, जो फिर मुझ से ऐसी बातें करोगी, मुझ को बिना समझे बूझे छेड़ोगी, तो तुम को ठीक करने के लिए हम को जतन करना होगा। तुमारी बातों में आकर हम अपनी जात नहीं गँवा सकते। तुम तिरिया हो,हठ करना छोड़ और कुछ तुम को नहीं आता।
यह कह कर खिजलाये हुए रामकान्त घर से बाहर हो गये।