तीन तारे / हिमांशु जोशी / पृष्ठ 3

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आज घर में बड़ी धूम-धाम थी। पण्डितजी ऊंचे आसन पर विराजमान थे। टिन्कू बड़ा खुश नजर आता था। सारे दिन वह इधर-उधर चक्कर काटता रहा। पर समझ में उसकी कुछ भी नहीं आ रहा था।

तभी उछलकूद नौकर को बुला कर उसने बड़ी उत्सुकता से पूछा, ‘‘आज यह घर में क्या होने जा रहा है, भाई ?’’

‘‘अरे, इतना भी नहीं जानते ? आज गो पूजन है।’’

‘‘इसमें क्या होता है ?’’ उसने फिर प्रश्न किया।

‘‘देखते नहीं, गौ माता की पूजा अन्दर हो तो रही है।’’ इतना कहकर उछलकूद उछलता-कूदता चला गया।

टिन्कू ने देखा, अन्दर गौ माता की मूर्ति पर तिलक, चन्दन अक्षत चढ़ रहे हैं। फूल-पत्तियों की बरसा हो रही है। सामने मिठाइयों के थाल सजे हैं। बर्फी, केले सन्तरों की भरमार है। मटका भर चरणामृत है। टिन्कू की लार टपक गई।

तभी उसकी नानी ने बुलाया, ‘‘टिन्कू, अरे ओ टिन्कू !’’

‘‘क्या है, नानी ?’’ उसने पास जाकर पूछा।

‘‘बेटा, देखो ! आज पूजन है। शाम को तुम यहीं रहना आरती के समय कहीं इधर-उधर चले न जाना। और हां देखो, अपने दोस्तों को भी निमन्त्रण दे आना। ऐसे शुभ दिन भला कब-कब आते हैं ! सभी साथ बैठकर भोजन करना।’’

नानी इतना कहकर काम में जुट गई, और टिन्कू सीधा गोली की तरह दौड़ता हुआ मैदान में पहुंचा।

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