दंगे का षड्यंत्र / भाग-1 / राजनारायण बोहरे
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नगर में कर्फ्यू लगा था।
स्कूल बंद हुए आज पांचवां दिन था। अजय , अभय और जफर वगैरह का भी स्कूल बंद था। घर मे कैद हो के रह रहे बच्चों का समय बड़ी मुश्किल से बीत रहा था।
आज सुबह ही जब कर्फ्यू में थोड़ी सी ढील देने की मुनादी करता एक तांगा घूम रहा था प्रसन्न होते अजय ने अपने अजीज दोस्त जफर को फोन किया था, कि वह समय निकाल कर अजय के घर पर आ जाये, तीनों मिल कर मस्ती से खेलेंगे और किसी तरह आज का दिन काटेंगे।
जफर ने फोन पर हामी भरी थी । वह मम्मी से अजय के फोन की बात कह झटपट कपडे़ पहन कर निकलने को तैयार भी हो चुका था, कि उसे बाहर जाने को उत्सुक देख उसकी अम्मीजान ने टोका-”देखिये साहबजादे ! अपनी हैसियत पर गौर कीजिये। शहर में इस समय कयामत मौत बनकर बरस रही है, तमाम लोग मारे जा चुके है और हिन्दु मुस्लिम दंगा अभी भी खत्म नहीं हुआ है, ऐसे में तुम्हारा अजय के घर जाना.....”
....”अम्मीजान” जफर ने अम्मी की बात काटी “आप अच्छी तरह जानती हैं कि ठाकुर केदारसिंह के बेटे अजय और अभय मुझसे सगे भाई से भी ज्यादा मुहब्बत करते हैं। एक फौजी जासूस केे घर में मुझे कोर्इ्र खतरा.............”
“लेकिन घर के बाहर तो खतरा है न” जफर के अब्बा हाजी बदरूद्दीन ने जफर की बात काटी-”देखो छोटे मियां, अपनी हांके जा रहे हो । अरे भाई ! दूसरों की भी सुना करो। माना कि केदारसिंह के घर में तुम्हारे लिये इस घर से भी ज्यादा हिफाज़त मिलेगी, लेकिन उनके मुहल्ले में और भी लोग रहते हैं, उनका क्या विश्वास ? वे कभी भी यह सहन नहीं करेंगे कि एक हिन्दू के घर में एक मुसलमान का लड़का आये। ... फिर यहां से वहां तक किस हिफाजत के दम पर तुम्हारा जाना हो सकेगा ? “
निराश होकर जफर ने फोन उठाया और अजय से बात की-”देखो अजय मियां, मेै माफी चाहता हूँ, मेरी तबियत आज कुछ ज्यादा ही खराब है सो मेै उधर नहीं आ पाऊंगा। हां, ये वादा रहा कि तबियत ठीक होते ही दो रोज में, मैं खुद आके तुमसे मिलंूगा। अलबत्ता आज नहीं आ सकूंगा।”
अजय ने जफर की बात सुन कर केवल इतना कहा-”अरे सुबह तो तुमने फोन पर नहीं बताया जफर भाई कि तुम्हारी तबियत खराब है, अब अचानक कैसे ? ...खैर तुम ठीक हो लो फिर मिल लेगें।”
अजय की मम्मी पास खड़ी थी। वह चौंकी “क्यों अजय, क्या हुआ जफर को? -”
“पता नहीं मम्मी सुबह कह रहा था कि मैं जल्दी ही इधर आ रहा हूँ, और अब फोन पर कहता है कि मेरी तबियत खराब है नहीं आ सकूंगा।” अजय ने उलझन भरे अंदाज में कहा।
-”हो सकता है सचमुच उसकी तबियत ....”
-” नहीं मम्मी अजय बीच में ही बोला, तबियत सुबह खराब नहीं थी, और इतनी जल्दी खराब हो गई। शायद बात कुछ और है”
“बात क्या हो सकती है, जफर भैया तो इस घर को अपना दूसरा घर मानते हैं । उनके अब्बा और अम्मी की तरफ से तो उसे मना किया नहीं जा सकता, जरूर कोई ऐसी वजह है जिसके कारण उन्होन मनाही कर दी।” अभय ने बीच मे दखल दिया
“छोड़िये मम्मी, जब वह मिलेगा तो बात साफ हो जायेगी।
मम्मी अपने काम में लग गई।
लेकिन अजय को चैन कहां था। वह शहर के बिगड़ते हालात के लेकर सोच विचार करने लगा।
दरअसल शहर की यह हालत पिछले मंगलवार से शुरू हुई थी, तथा उसका सूत्रपात अजय और जफर के स्कूल से ही हुआ था।
अजय को उसके पापा फोजी जासूस केदार सिंह ने बताया था कि उस दिन स्कूल में हर माह होने वाली मासिक परीक्षा थी और स्कूल में एक तरह का सन्नाटा था। छात्र सुनसान माहौल से घिरे कमरों में अपनी अपनी टेबिल पर बैठ कर चुपचाप लिख रहे थे और उनके बीच हमेशा की तरह उनके टीचर घूम रहे थे।
जैसा कि हर परीक्षा में होता है, एक छात्र बहुत देर से आँख बन्द करें बैठा था और अपनी कॉपी में कुछ नही लिख रहा था। कुछ देर बाद उसने आँख खोल कर चारों ओर देखा, तो पाया कि सब लोग अपनी कॉपी में गुम होकर लिखे चले जा रहे थे और दूर दरवाजे के बाहर खीझते हुए से उनके कमरे के दोनों टीचर पास पास खड़े धीमी सी आवाज में बतिया रहे थे। मौका ताड़ते हुए उस लड़के ने अपनी जेब से चिट निकाली और अपनी परीक्षा की कॉपी के नीचे रखकर उसकी नकल उतारने लगा।
उस दिन परीक्षा के इंचार्ज के रूप में गणित के टीचर अकरम साहब की ड्यूटी थी, वे सारे कमरों मेे एक एक कर घूमते हुए कुछ देर बाद उस कमरे में भी भीतर आये और मुस्तैदी से हरेक छात्र को घूरते हुए कमरे का चक्कर लगाने लगे। पुराने अनुभवी होने के कारण अकरम सर ने चिट पकड़ने वाले लड़के को क्षण भर में ताड़ लिया और झपटकर उसकी कॉपी उठा ली। आसपास के दूसरे छात्र या टीचरों में से कोई कुछ समझे, इससे पहले ही वह छात्र अपनी चिट उठाकर मुंह में डाल चुका था। अकरम साहब ने कॉपी एक ओर फेंकी और छात्र के मुंह को पकड़कर अपनी अंगुली उसके मुंह में डाली और चिट बाहर निकाल ली।
छात्र को उठा कर बाहर ले गये और परीक्षा से निकाल दिया गया।
ऐसा ही एक दूसरे कमरे में हिन्दी के टीचर डी0पी0 शर्मा के साथ हुआ, उन्होंने वहाँ भी एक लड़के की चिट पकड़ ली।
ऐसा रोज ही होता था, एक दो छात्र चिट करते पकड़े जाते थे और उन्हें परीक्षा से निकाल दिया जाता था, लेकिन आज बड़ी विचित्र परिस्थिति हो गई। क्योंकि अकरम साहब ने जिस छात्र को पकड़ा था, वह जाति से ब्राह्मण था और पंडित डी0पी0 शर्मा द्वारा पकड़ा गया लड़का मुसलमान था। किसी ने अफवाह फैलाई कि हिन्दू लड़के को झूठमूठ ही नकलची बता कर एक मुसलमान अध्यापक ने परीक्षा से निकाल दिया और इसके बदले में एक हिन्दू टीचर ने मुसलमान लड़के को झूठा फंसा दिया।
बस यही बात पंख लगाकर स्कूल से उड़ी और शहर में फैल गई। शहर तक पहुंचते पहुंचते इस घटना में अनेक गप्पें जुड़ गई थीं और हर आदमी मनमाने तरीके से लोगों को भढ़का रहे थे।
शहर के कॉलेज में छात्रों के दो गुट थे एक नफर मियां का और दूसरा विजय सिंह का। हालांकि इन गुटों में जातिवाद या मजहब और धर्म की कोई भावना नहीं थी क्योंकि नफर के गुट में अनेक हिन्दू थे जबकि विजयसिंह के गुट में अनेक मुसलमान छात्र थे। वहां भी यह बात पहुंच गई।
नफर के गुट तक पहुंचते-पहुंचते इस घटना में यह और जुड़ गया कि हिन्दू टीचर ने मुसलमान के लड़के को पकड़ लिया, जबकि हिन्दू लड़के खुले आम चिट करते रहे।
यही बात विजय सिंह के पास उल्टे रूप से पहुंची कि एक मुसलमान टीचर ने झूठमूठ हिन्दू लड़के को फंसवा दिया जबकि मुसलमान लड़का सामने रखकर नकल करते रहे।
अफवाह के नतीज बड़े खतरनाक रहे।
कॉलेज के बाहर एक कोने में नफर के गुट के सारे मुसलमान लड़के इक्ट्ठा होने लगे, तो दूसरी ओर विजयसिंह के गुट के सारे हिन्दू लड़के और सिख इक्ट्ठे हुए। पता नहीं किसने क्या कहा कि लड़के जोश में आकर जोर जोर से चीखते हुए सामने वालों को सबक सिखाने की बातें करने लगे। छात्रावास से हाकियां ली गई, और दोनों गुट एक दूसरे पर पिल पड़े। कई बेगुनाह छात्रों के सिर फूटे, कई लोग इतने जख्मी हुए कि उनकी हालत खतरनाक हो गई। हाकियां फिर भी चल रहीं थीं।
कॉलेज इमारत के सामने खून का कीचड़ मच गया था। जाने कब-कब का छिपा हुआ आग का लावा आज एक साथ फूट पड़ा था। परिस्थिति को भांप कर प्रिंसीपल ने पुलिस बल को फोन किया , और कुछ ही क्षणों में पुलिस के डंडे वहाँ चमक उठे थे, जहां कि पढ़ने पढ़ाने का माहौल रहना चाहिए था लेकिन गुमराह और लहुलुहान छात्र एक दूसरों को हाकियां मार रहे थे।
वाह रे जातिवाद ! वाह रे धर्म के अंधे लोगों !
धर्म के नशे में अंधे इन लोगों ने यह नहीं देखा कि उन पर नियंत्रण करने वाली पुलिस में हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियों के सिपाही हैं, जिन्हें इन धार्मिक लड़ाइयों और झूठी सच्ची अफवाहों पर कोई विश्वास नहीं है।
अलबत्ता ! कॉलेज की यह खबर शहर में पहुंची तो और भी ज्यादा गजब हो गया।
नगर की जामा मस्ज़िद में नमाज पढ़ने का मुसलमान भाई इक्ट्ठे हुए तो अचानक वहाँ एक ऐसे व्यक्ति का आगमन हुआ जो कभी भी नमाज पढ़ने नहीं आता था, जो जुआ और कत्ल के कई मुकद्मों में जेल काट चुका था। नमाज के बाद उसका भाषण हुआ। भाषण क्या था आग का दरिया था। लोगों की निगाहों में उसने बस एक ही बात उठाई कि हिन्दुओं को सबक सिखाना है। किसी ने यह नहीं सोचा कि भाषण देने वाला गुण्डा नाजिम खुद अपने ही घर में ईमान पर नहीं चलता और खुद दोनों धर्म मानता है। वह खुद दो बीबियां रखे हुए था जिन में से एक मुसलमान और एक दूसरी बीबी हिन्दु थी।
मस्ज़िद के बूढ़े मौलबी ने लोगों को शांत रहने की कोशिश की तो नाजिम ने उन्हें डांट दिया, “............ जनाब मौलबी आप जैसे बुजुर्गो की वजह से ही काफिरों की यह मज़ाल हुई है कि वह हम पर हाथ उठा सके हैं, हम इस शहर में से हिन्दुओं का नामो निशान मिटा देंगे। आप हट जाइये।”
बेचारे मौलबी !
उन्हें एक तरफ धक्का देकर वह कमरा खोल लिया गया जहाँ ताजियों के वक्त नुमाइस के लिए अखाड़े में काम आने वाले हथियार जमा थे। कुछ ही क्षणों में वहाँ मौजूद हरेक व्यक्ति हथियारों से सजा खड़ा था।
नाजिम् सबसे आगे था।
वह लोग हिन्दुओं की बस्ती की ओर बढ़ गये।
ऐसा ही कुछ हिन्दुओं के साथ हुआ
शेरा पहलवान यानी ऐसा आदमी जो दिन में कई बोतल शराब पीता था और रास्ता चलते किसी भी आदमी को छेड़ देना उसका एक शौक था।
उसने यह मौका अपने लिये अच्छा समझा और एक बोतल दारू की गटक कर हनुमान मन्दिर जा पहुंचा।
उसने पुजारी से मंदिर का शंख छीन कर बजा दिया और आनन-फानन में हिन्दु उस मन्दिर में इक्ट्ठे होने लगे।
कोई देखे तो आश्चर्य करे कि उन हिन्दुओं में ऐसे लोग भी थे जो खूब विद्वान और पढे लिखे थे, वे सच्चाई जान सकते थे, लेकिन सच्चाई जानने की फुरसत किसे थी। सारा शहर अफवाहों का शिकार था। मंदिर में शेरा गुण्डे का भाषण ऐसे चल रहा था, जैसे कोई बहुत बड़ा नेता बोल रहा हो।
यहां भी बड़े पुजारी को एक ओर धक्का मार के व्यायाम शाला के कमरे से लाठियां और बल्लम निकले थे और सिरफिरों का यह जुलुस मस्लिम बस्तियों की ओर बढ़ गया था।
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