दंगे का षड्यंत्र / भाग-2 / राजनारायण बोहरे
शहर में खुलकर मौत बरसी।
सेना ने आकर जब तक व्यवस्था संभाली तब तक सांझ हो चुकी थी और हिन्दू व मुसलमान मुहल्लों में चीखें और कराहें गूंज रही थीं।
दर्जनों लोग मारे गये थे और सैकड़ों घायल हुये थे।
एक बात और विशेष थी, कि इन दंगों में न तो मुसलमान नेताओं के घर जले थे और न ही हिन्दु नेताओं के। घर जले थे-गरीब लोगों के, और सीधे सादे नागरिकों के।
शेरा पहलवान और नाजिम के घर भी बिल्कुल सुरक्षित थे, जबकि यह दोनों ही दंगाईयों के नेता बने थें।
पापा का यही आखिरी वाक्य अजय को पांच दिनों से परेशान कर रहा था और खेलने के साथ साथ इसी बात पर विचार करने के लिये उसने जफर को बुलाया था। सचमुच हैरानी की बात थी कि आग भड़काने वाले लोग सुरक्षित थे और पीछे रहने वाले लोग नुक्सान में थे।
अभय ने अजय को टोका-”भैया क्या बात है बड़े गुमसुम हो।”
-”कुछ नहीं,” कह कर अजय उठ कर अपने कमरे में चला गया।
अजय और अभय, ठाकुर केदार सिंह के दो बेटे थे। ठाकुर साहब खुफिया पुलिस की सेवा में थे और उनके विचार बड़े महान थे। सारे भारत को वह एक परिवार और सभी लोगों को एक जाति “भारतीय जाति” तथा सभी धर्मो को एक धर्म ‘‘मानव धर्म” मानते थे। इन्हीं बातों का प्रभाव उनके बेटों पर था, वे दोनों खूब मस्ती से खेलते, दिल लगा कर पढ़ते और कभी भी किसी के साथ कोई भेद भाव नहीं करते थे। देश के प्रति उनके मन में बड़ा सम्मान था।
अभय अजय से केवल दो बरस छोटा था, इसलिये वह दोनों हमेशा दोस्तों की तरह रहा करते थे।
अजय और अभय एन0सी0सी0 के छात्र थे और अपने स्कूल के हर कार्यक्रम में सदा आगे रहते थे। नियमित अखबार पढ़ना उनका शौक था । जफर को वह तीसरा भाई कहते थे, आज जफर के न आने से अजय को सचमुच बड़ा दुख हुआ था।
अभय ने अजय को कमरे में जाते देखा तो ेवह भी चुप होकर पढ़ने लगा।
घर के सन्नाटे को दरवाजे की घंटी की आवाज ने तोड़ा।
अभय भागा और खिड़की से झांकने लगा कि कौन आकर घंटी बजा रहा है। बाहर खड़े तरूण को देख कर वह चौंका-क्योंकि एक अपरिचित सा देहाती लड़का बाहर खड़ा घंटी को बजाये जा रहा था। उसके हाथों में “दूध का केन” था।
तभी मम्मी अन्दर से आई और उन्होंने धड़ाक से दरवाजा खोल दिया। बाहर खड़ा लड़का आंधी की तरह घर में घुसा कि अभय ने उसे लपक लिया “ अबे, अंदर कहां चला जा रहा है। कौन है तू ?”
“कुवर अभय सिंह है ? हम ठाकुर जफरसिंह हैं। “
वह बोला तो अभय और मम्मी दोनों ही चौक पड़े। क्योंकि बिना किसी सन्देह के यह आवाज जफर की आवाज थी और अब उन्होने गौर से देखा तो वे पहचान गये अब जफर पहचान में भी आने लगा था।
वह जफर ही था जो हिन्दू लड़के का वेष बनाकर ठाकुर साहब के घर तक सुरक्षित आया था। अभय ने खुश होकर एक किलकारी भरी । अभय और जफर लपक के गले मिल गये। अभय उत्साह से अजय के कमरे की ओर लपका । जफर भी उसके पीछे-पीछे था।
वहाँ पहुंचते-पहुंचते जफर ने अपना देहाती वेष उतार फेंका। नीचे जफर के शानदार कपड़े निकल आये थे।
उसे देखते ही अजय उठा और दोनों गले लग कर मिले।
अब तीनों पास-पास बैठे थे।
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अजय ने अपने पापा के मुंह से सुनी सारी बातें जफर को बताई तो वह उछल पड़ा और बोला-”हाँ यार यही तो मैं सोच रहा था कि हमारे मोहल्ले में मुसलमानों के रहनुमा नेता फजल हुसेन भी रहते हैं। लेकिन क्या मज़ाल कि किसी ने उनके घर की तरफ आंख उठाकर भी देखा हो। जबकि हमारे घर की बैठक में ढेर सारे पत्थर मार कर हिन्दुओं का झुंड लौट गया था। बाकी के लोगों की तो हालत और भी खराब है।”
“यार जफर भाई उन सब लोगों के पागलपन की माफी मैं तुमसे मांगता हूँ, यार क्षमा करना। वह सब तो धर्म के नाम पर अंधे हो रहे थे, और दंगा कराने वाले अपनी खतरनाक चालें चल चुके हैं।”अजय बोला ।
“नहीं भाई, हम एक दूसरे से माफी किस कारण मांगे जो होना था वह तो हो चुका खैर आगे कहां क्या करें। हम लोग कैसे मिल सकेंगे।” जफर बोला।
“जफर भाई, पापा आज कह रहे थे कि अगर शांति रही तो अगले हफ्ते तक कर्फ्यू हट जायगा, और फिर पहले की तरह सब ठीक हो जायेगा।” अभय बोल पड़ा।
--”लेकिन यह तो सच है कि अभी भी लोगों के दिलों में आग धधक रही है, और उसका असर स्कूलों में भी पड़ेगा।” अजय बोला
-”यानि”
-”यानि यह कि हिन्दू और मुस्लिम लड़के अब अपने अपने गुट बनाकर रहेगें। “
-”फिर हम लोग कैसे मिल पायेंगे?”
-”हम लोगों के बारे में ही तो सोच रहा हूँ कि कैसे क्या होगा।”
-”अजय भैया में एक तरीका बताता हूँ” अभय उत्साहित होकर बोला- “स्कूल खुलने पर भोले बच्चों को अगर कोई भड़काएगा तो वह भड़काने वाले और कोई नहीं, या तो दंगे में शामिल गुंडे होंगे या कॉलेज के छात्र होंगे।” इतना कहकर उसने दो मिनट चुपचाप रह के दोनों की ओर देखा फिर बोला-”हम लोग क्यों न ऐसे लोगों पर नजर रखें।”
-ऐसा करते है कि कुछदिनों तक हम मिलेंगे नहीं और बल्कि अपने अपने गुटों के साथ रहने लगेंगे और इस तरह से हमको अलग रहने का बहाना भी मिल जायेगा और हम गुंडों पर नजर भी रख सकेंगे।” अजय ने अभय की बात को समझ कर आगे कहा।
-”हां यह ठीक है “ जफर बोला।
इसके बाद तीनों काफी देर तक अपनी योजनायें बनाते और बिगाड़ते रहे। काफी देर तक चुटकुले बाजी भी हुई फिर सांझ ढले ठाकुर केदारसिंह अपनी पुलिस की गाड़ी में बैठाकर जफर को छोड़ आये।
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रात में समाचारों मे टेलीविजन पर पुलिस सुपरडेंट ने बताया कि नगर में अब शान्ति थी।
फिर भी सुबह कर्फ्यू लगा हुआ था और सेना सड़कों पर घूम रही थी। जिसकी गाड़ीयों की आवाजें सड़कों को गुंजाती हुई चली जा रही थी।
वह रात गुजरी ! अगला दिन भी गुजरा, आने वाली रात भी सामान्य रही।
तीसरे दिन कर्फ्यू में ढील दी गई और चौथे दिन कर्फ्यू समाप्त हो गया। अलबत्ता पुलिस हर जगह लगी हुई थी।
अगले हफ्ते से स्कूल आदि भी खुल गये। बच्चे उत्साह से पढ़ने जाने लगे । सब कुछ लगभग वैसा ही चल रहा था जैसा उन्होने सोचा था। हिंदू और मुस्लिम लड़कों के झुण्ड अलग अलग बैठने लगे थे, अलग खेलने लगे थे।
स्कूल खुले हुए अभी तीसरा दिन ही बीता था कि सुबह-सुबह सामने का नजारा देख कर जफर चौंका। कॉलेज में दंगा फैलाने वाला गुण्डा नफर अपने दो साथियों के साथ स्कूल में चला आ रहा था।
जफर ने बीते दो दिनों में अपना व्यवहार बदल लिया था, उसकी पोशाक पठानी सूट धारी एक मुसलमान लड़के की तरह थी और वह बातें भी कुछ बेतुकी करता रहता था, जैसे ‘‘काफिर लोगों को जीने का हक नहीं है, या ‘‘काफिरों को एक बार और सबक सिखाया जायेगा” वगैरह-वगैरह।
नफर को आते देख जफर उधर ही लपका। स्कूल का एक और मुस्लिम लड़का शरीफ खाँ भी नफर की ओर बढ़ा।
-"अस्सलाम नफर भाई “शरीफ खां बोला।
स्कूल के आंगन में खड़े होकर नफर ने निगाह फेरी। इस समय रेस्ट चल रहा था और स्कूल के सभी छात्र आंगन में घूम रहे थे। नफर को देखकर मुस्लिम छात्र उधर ही सिमटने लगें।
कुछ देर बाद एक अच्छा खासा झुंड वहाँ इकट्ठा था जहाँ कि नफर खड़ा था।
स्कूल में नियुक्त पुलिस के सिपाही भी उधर ही बढ़े और उन्होंने नफर को बाहर जाने का आदेश दिया।
झुण्ड के छात्रों को साथ लेकर नफर बाहर की ओर चला तो जफर भी पीछे पीछे चल पड़ा।
स्कूल के बाहर निकल कर सामने ही खेल का एक मेैदान था नफर उधर सबको ले गया फिर एक ऊँची सी जगह खड़े होकर उसने बोलना शुरू किया-”भाईयो, कुछ दिनों पहले जो कुछ हुआ वह आप सबको मालूम है। हिन्दुओं ने हम मुसलमानों के घरों पर हमले किये और घरों को जलाया, लूटा। यहाँ तक कि छोटे बच्चों को, औरतों को पत्थर मारे। हिन्दु गुण्डों ने हमारे दस मुसलमान भाईयों को कत्ल कर दिया। यह पुलिस और मिलेट्री हिन्दुओं से मिली है और यह लोग भी हम लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं। पुलिस कहती है कि केवल चार आदमी मरे हैं दो हिन्दु और दो मुसलमान यह एक-दम झूठ है। हिन्दु एक भी नहीं मरा। मैं जेल से छूट कर सीधा आ रहा हूँ। जेल में एक भी हिन्दू बंद नहीं हुआ और हमारे पचास मुसलमान भाई वहाँ बन्द थे।
जफर ने देखा कि मुसलमान लड़कों की आंखों में क्रोध समाता जा रहा था, नफर आगे बोला-”खुदा के सच्चे बेटो, अभी हमको काफिरों से बदला लेना है, इसलिये आप लोग अमन और चैन की बातें भूल जाओ। कॉलेज का हर मुसलमान स्टूडंेट तुम्हारें साथ है आज शाम ईदगाह के पास आप सभी जरूर तशरीफ लायें वहां जरा कैफियत से बाते होंगी।”
इतना कहकर नफर खिसकने लगा, लोग बिखर गए। जफर नफर के ज्यादा से ज्यादा पास रहना चाहता था, अतः कुछ दूर तक वह उसके साथ, उसे छोड़ने गया। लेकिन नफर फिर कुछ नहीं बोला।
कक्षा में लौट कर अपनी कुर्सी पर बैठकर जफर ने कॉपी खोली और पेन निकाल लिया। जिस समय टीचर कोर्स सम्बन्धी प्रश्न लिखा रहे थे, उसी समय जफर कुछ और लिख रहा था, कोर्स से अलग बाते लिख रहा था।
बाहर कुछ और ही नजारा था।
जैसे पहले से षडयंत्र हो।
नफर के खिसकने के कुछदेर बाद ही स्टूडेन्ट विजय सिंह जो कि कॉलेज में हिन्दू छात्रों का नेता था, वह स्कूल में आया।
अजय ने देखा तो जैसे बिजली सी कोंधी फुर्ती दिखाते हुए वह विजयसिह के बिल्कुल पास पहुंच गया और धीमे से बोला -”विजय भाई, साहब क्या बात है आपके कुछ देर पहले वह पापी नफर आया था और लड़कों को जाने क्या सुना गया। इसलये मुस्लिम लड़के आज एक दम काफी गर्म हैं।”
"कोई बात नहीं हम अपना काम भी शुरू करते हैं।”