देवदास और पारो : चार / पवित्र पाप / सुशोभित

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देवदास और पारो : चार
सुशोभित


बहुतेरे पुरुषों के भीतर एक देवदास होता है, स्वयं का नाश करने वाला।

बहुतेरी लड़कियों के भीतर एक पारो होती है, दोहरी हत्या में कुशल।

अंतर इतना है कि पारो लाली-सेंदूर लगाकर, नई साड़ी पहनकर स्वयं की हत्या करती है।

और देवदास इससे विकल होकर पारो पारो की टेर लगाता तालशोनापुर की चौपाल पर मर जाता है।

देवदास चाहता था कि पारो चंद्रमुखी जैसी समर्पिता बने, ताकि स्वयं से रूठने के उसके हठ को एक प्रसंग मिले।

किंतु पारो देवदास से भी अधिक अभिमानिनी सिद्ध होती है, दोहरे ध्वंस के लिए संकल्पबद्ध।

चीज़ों को बस अपनी जगहें बदलना था। महज़ भूमिकाओं के हेरफेर से रुक जाती प्रलय।

किंतु जो टल जाए, वह सर्वनाश ही क्या!

इसी से तो- भर दोपहरी में जवान उम्र खेत रहती है, जिसे सुख का सूद चुकाना था!