देवयानी / भाग-4 / पुष्पा सक्सेना
“कोशिश नहीं, वादा करना होगा वर्ना प्रोग्राम छोड़, आपको लेने घर पहुँच जाऊँगा। मुझ पर रहम कीजिएगा, मोहतरमा।”
“मुझ पर ये ख़ास मेहरबानी क्यों, रोहित जी ? क्या आप सबको ऐसे ही निमंत्रित कर रहे हैं?”
“ओह नो! सच बात ये है कि आप दूसरों से बिल्कुल अलग हैं। आपकी असाधारणता से मै प्रभावित हूँ, ऐंड दैट्स ऑल। बाय।
देवयानी के जवाब का इंतज़ार किए बिना, रोहित चला गया। देवयानी गुलाब के फूल को देखती सोच में पड़ गई। रोहित ने उसमें ऐसा क्या देखा, जो दूसरी लड़कियों में नहीं था।
घर पहुँची देवयानी को कल्याणी ने अपनी गाँव-यात्रा की कहानी उत्साह से सुनाई। माँ के चेहरे की खुशी देख, देवयानी का मन माँ के प्रति सम्मान और करूणा से भर आया। अगर पापा होते तो माँ को उनका साथ और साहस मिलता। माँ की सफलता पापा को कितना खुश करती। देवयानी ने हाथ में पकड़ा गुलाब माँ को देते हुए कहा-
“श्रीमती कल्याणी जी की पहली सफलता के लिए ये गुलाब भेंट करती हूँ।”
“अरे वाह ! ये तो बड़ा प्यारा गुलाब है, कहाँ से लाई ?”
“मेरे सीनियर्स कल हम फ़्रेशर्स को पार्टी दे रहे हैं। निमंत्रण के साथ मित्रता का प्रतीक, ये गुलाब दिया गया है।” न जाने क्यों देवचानी रोहित का नाम नहीं ले सकी।
“वाह ! ये तो बड़ी अच्छी परंपरा है। पहले रैगिंग में परेशान करो, फिर पार्टी और फूल देकर दोस्ती करो।” कल्याणी खुले दिल से हँस दी।
“हाँ, माँ, कहते हैं रैगिंग से परिचय गहरा होता है। वैसे सीनियर्स रैगिंग में भले ही कितना भी परेशान करें, बाद में जूनियर्स की बहुत मदद करते हैं।”
“ठीक कहती है। तू खाना खाकर सो जा, मैं काम करूँगी।”
“अब रात में कौन-सा काम करना है, माँ ?”
“अरे आज गाँव में जो सर्वे किया है उसके आधार पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करूँगी तभी तो फंड मिल सकेगा। बस यही चाहती हूँ, मेरी प्रोजेक्ट स्वीकार कर ली जाए।” कल्याणी की बातों में उत्साह और खुशी दोनों थीं।
“तुम्हारी योजना जरूर स्वीकार की जाएगी, माँ। जो काम सच्चाई और ईमानदारी के साथ किया जाता है, उसमें जरूर सफलता मिलती है।”
“भगवान तेरी बात सच करें।”
देर रात तक कल्याणी अपनी योजना तैयार करती रही। पेन रखने के बाद उसके चेहरे पर संतोष की झलक थी। देवयानी को चादर ओढ़ा, जब वो पलंग पर लेटी तो पुरानी यादें साकार होने लगीं।
बारहवीं की परीक्षा की तैयार कर रही कल्याणी कभी-कभी मेज़ पर सिर टिका सो जाती थी। सोती कल्याणी को प्यार से उठा, अमर चारपाई पर ले जाता था। दूसरे दिन सुबह परिहास में कहता-
“तुम्हें अपना वज़न घटाना चाहिए, कल्याणी वर्ना ये बंदा तुम्हें उठाते, बेमौत मर जाएगा।”
“अच्छा, तुम्हें हम भारी लगते हैं। याद रखो, बाबूजी के अंतिम समय में तुमने हमारा भार उठाने का वादा किया था।”
अचानक कल्याणी की आँखें भीग आईं। मास्टर पिता के लिए कल्याणी ही सब कुछ थी। लू लग जाने से व्याकुल पिता को कल्याणी की ही चिन्ता थी। उस वक्त उनकी व्याकुलता देख, अमर ने वचन किया था, वह कल्याणी से विवाह करेगा। बस इतनी बात सुनने के लिए ही वह जीवित थे। मास्टरजी को चिन्ता-मुक्त कर, अमर ने अपना वचन निभाया था। घर-परिवार से निष्कासन का दुख उसे अन्दर जरूर सालता होगा, पर उसके मुँह से कभी एक शब्द भी नहीं निकला। देवयानी के जन्म के समय उसने माँ के पास बेटी के जन्म की सूचना भेजी थी, कोई जवाब न पा, उसके चेहरे पर अवसाद की छाया बस कुछ देर के लिए झलकी भर थी। देवयानी को गोद में उठा, प्यार से कहा था-
”हमारी बेटी डॉक्टर बनेगी। हमारे बुढ़ापे में हमारी देवयानी ही हमारी देखरेख करेगी, कल्याणी” आज देवयानी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है, पर अमर कहाँ है ? काश, अमर उनके साथ होता।
करवट बदलती देवयानी का हाथ माँ के नम चेहरे पर चला गया-
“ये क्या माँ, तुम रो रही हो ? पापा की याद आ रही है ?”
नन्हीं बच्ची-सी माँ को प्यार से दुलारती देवयानी कुछ देर को कल्याणी की माँ ही बन गई। सुबह कल्याणी के उत्फुल्ल चेहरे को देख, देवयानी खुश हो गई। क्लांति का कहीं चिन्ह भी नहीं था।
“दैट्स लाइक. माई ब्रेव मदर.। आज कितने दिनों बाद तुम खुश हो माँ।
“वो तो ठीक है, देवयानी, पर कभी सोचती हूँ, क्या उनके परिवार वालों से अलग रहने की वजह से तेरे पापा की आत्मा को दुख तो नहीं होता होगा ?”
“मम्मी, तुम किस दुनिया की बात सोचती हो। मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में कौन जानता है ? आज जो है, बस वही सच है, उसी में जीना चाहिए।”
“वाह ! मेरी देवयानी तो फ़िलॉसफ़ी झाड़ने लगी है।”
“अरे याद आया। माँ आज की पार्टी में जाऊँ ?”
“तू अकेली कैसे लौटेगी, देवयानी।”
“लड़कियों को पहुँचाने का इंतज़ाम है, माँ तुम परेशान मत होना।”
“ठीक है, कौन-सा सूट पहनकर जाएगी ?”
चाहे तो मेरी आसमानी तारों वाली साड़ी पहन जा।”
“ओह, माँ। मैं कॉलेज की पार्टी में जा रही हूँ, किसी की शादी में थोड़ी जा रही हूँ। कोई-सा भी सूट पहन लूँगी।” देवयानी मुस्करा उठी।
“हो सकता है, मुझे लौटने में देर हो जाए। तू घर बंद करके चाभी लेती जाना।”
“ओ.के. माँ। मैं जानती हूँ, मेरी माँ कामकाजी महिला हैं। अब उसके पास अपनी बेटी के लिए वक्त नहीं है।” देवयानी ने चिढ़ाया।
“तू ऐसा सोचती है, देवयानी ? अगर ऐसी बात है तो मैं गाँव की प्रोजेक्ट जमा नहीं करूँगी।”
“अरे रे रे, तुम तो सच मान गईं। सच्चाई तो ये है, तुम्हें काम करते देख, मुझे बहुत खुशी होती है, माँ। क्या महिमा मौसी भी तुम्हारे साथ गाँव जाएँगी ?”
“हाँ, महिमा से मुझे जो प्यार मिला है, वो शायद अपनी सगी बहिन से भी नहीं मिल पाता।”
“सच, मौसी बहुत अच्छी हैं। उन्होंने हमारी ज़िंदगी बदल दी वर्ना........”
देवयानी का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि महिमा आ गई।
“किसने किसकी ज़िंदगी बदल दी देवयानी ?”
महिमा ने सहास्य पूछा।
“तुम्हारे ही बारे में बात कर रहे थे। अगर तुम हमारी ज़िंदगी में न आतीं तो हम उसी काल-कोठरी में रह जाते।” कल्याणी ने कहा।
“अच्छा अब महिमा-पुराण रहने दो। तुम्हारी प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार है, कल्याणी ?”
“हाँ, रात भर लिखती रही। एक बार तुम भी देख लो। कोई कमी न रह गई हो।”
दोनों को बातें करती छोड़, देवयानी कॉलेज के लिए तैयार होने चली गई।
ऑफिस में प्रोजेक्ट रिपोर्ट जमा करने के बाद सुनीता और कुसुम के साथ महिमा और कल्याणी गांव पहुँची। सुनीता और कुसुम भी समाज कल्याण विभाग में सहायक पद पर काम करती थीं। कल्याणी की बातें उन्हें अच्छी लगतीं, इसीलिए उन दोनों ने कल्याणी की योजना में साथ देने का निर्णय लिया था।
आज गाँव की औरतें नदारद दिखीं। पारो और बन्तो ने आकर बताया, गाँव के मरदों ने अपनी औरतों को कल्याणी दीदी की बातें न सुनने की सख़्त हिदायत दे रखी हे। जो औरत उनकी बातों में आएगी, उसे घर में जगह नहीं मिलेगी।
“अरे वाह ! ये तो सरासर दादागिरी है। हमे कुछ करना होगा, कल्याणी।” महिमा तैश में आगईं।
“हूँ, चलो, हम ग्राम- प्रधान जी से बात करेंगे।”
“उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। वो भी तो मरद हैं, दीदी।” पारो ने शंका जताई।
“मरद होने के साथ वो गाँव के प्रधान भी तो हैं। मुखिया परिवार की देखरेख करता है। गाँव की औरतें उनके परिवार की बहू-बेटियाँ हैं, उनकी भलाई देखना भी तो उनका काम है।” गंभीर कल्याणी ने कहा।
“ये बात तो ठीक कही, दीदी। ठहरिए हम चंदन और उसके कुछ नौजवान साथियों को बुला लाते हैं। वो लोग भी आपका साथ देंगे। पारो चंदन को बुलाने दौड़ गई।
चदन के साथ पाँच-सात जोश से भरे नौजवान ग्राम-प्रधान के पास पहुँचे। पहले तो ग्राम प्रधान उनसे बात करने को ही तैयार नहीं थे, पर जब कल्याणी ने अपनी योजना विस्तार में समझाई तो बात उनकी समझ में आ गईं। उन्हें बताया गया अगर उनके गाँव की औरतें साक्षर और आत्मनिर्भर बन जाएँगी तो उसका श्रेय गाँव के प्रधान को दिया जाएगा। हो सकता है उनका गाँव सर्वश्रेष्ठ गाँव के रूप में पुरस्कृत किया जाए। सबसे बड़ी बात औरतों की आय से परिवारों का जीवन-स्तर ऊपर उठ सकेगा। जो भी खर्चा होगा, उसे कल्याणी के ऑफिस की सरकारी योजनाओं से दिया जाएगा। ग्राम-प्रधान ने गाँव के पुरूषों को समझाने का दायित्व ले, कल्याणी के साथियों को विदा किया।
देवयानी कालेज से जल्दी लौट आई। शाम के फ़ंक्शन की वजह से क्लासेज एक बजे ख़त्म कर दी गईं। अपने गिने-चुने कपड़ो में से शाम के लिए कपड़े चुनने में देवयानी को ज़्यादा देर नहीं लगी। माँ ने अपनी प्याज़ी साड़ी का सलबार-सूट देवयानी के लिए सिलवा दिया था। साड़ी के ज़रीदार किनारे ने सूट की शोभा बढ़ा दी। एक मेले से प्याज़ी मोती की माला और बुंदे, देवयानी ने शौक से खरीद लिए थे। सूट से साथ गले और कानों में मोती पहन, जब देवयानी ने आइने में अपने को निहारा तो चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।
नियत समय पर पहुँची देवयानी के लिए रोहित प्रतीक्षा में खड़ा था। देवयानी को देखते ही उसके ओंठ गोल हो गए-
“वाउ, यू लुक चार्मिंग। मुझे डर था कहीं आप न आएँ।”
“दोस्ती तो निभानी ही पड़ती है। आपने इतना प्यारा गुलाब जो दिया था।” देवयानी हल्के से मुस्करा दी।
“थैंक्स,ग़ॉड। यानी मेरी दोस्ती कुबूल हो गई। आइए हॉल में चलें।”
रंगीन झिलमिलाती झालरों के साथ रजनीगंधा की लड़ियों से हॉल सजाया गया था। हल्का संगीत माहौल रंगीन बना रहा था। लड़कियाँ और लड़के मिलजुल कर बातें कर रहे थे। रोहित के साथ देवयानी को आते देख, एक सीनियर ने रिमार्क कसा-
“लो दोस्तो, प्रिंस चार्मिंग अपनी सिंड्रेला के याथ आ रहे हैं।”
सबकी हँसी पर देवयानी अपने में सिमट आई। देवयानी के उस संकोच पर रोहित हँस पड़ा-
“कम ऑन, देवयानी। ऐसी बातों की तो आदत डालनी होगी। वैसे तुम्हारे मुकाबले सिंड्रेला की क्या औकात, हाँ, तुम्हें परियों की राजकुमारी कहा जाना चाहिए।” मंद स्मित के साथ रोहित ने कहा।
“छिः। अब आप भी बनाने लगे।” शर्म से देवयानी के गोरे गाल लाल हो गए।
“अरे, आपको तो भगवान ने गढ़कर भेजा है, इंसान की क्या मज़ाल जो आपको बना सके।”
“कुछ देर पहले आपने मुझे ‘तुम‘ कहा था। प्लीज़ हमे तुम कहकर ही बात करें। आपसे छोटी हूँ।”
“मंज़ूर। पर तुम्हें भी एक शर्त माननी होगी।”
“कौन-सी शर्त।” बड़ी मासूमियत से देवयानी ने पूछा।
“तुम भी मुझे रोहित जी नहीं, सिर्फ़ रोहित कहोगी। और हाँ, मैं भी तुम्हारे लिए ‘आप‘ नहीं बस ‘तुम‘ हूँ। दोस्ती में ये जी और आप जैसे शब्द बड़े फ़ॉर्मल से लगते हैं, देवयानी।
“लेकिन आप तो हमसे उम्र और क्लास दोनों में बड़े हैं।”
“अमरीका में तो माँ-बाप, टीचर को भी नाम से पुकारा जाता है।”
“ये अमरीका तो नहीं।”
“देखो, या तो मेरी शर्त मंज़ूर करो या दोस्ती तोड़ दो।” रोहित की उत्सुक हष्टि देवयानी पर गड़ गई।
“ये तो ठीक शर्त नहीं है, रोहित जी।”
“अगर मैं ग़लत हूँ, तो इतना जान लो, इस कॉलेज में फ़ॉर्मेलिटी नहीं, अपनापन मिलेगा। तुम अपनी माँ को अगर ‘आप‘ कहकर संबोधित करती हो तो उनसे निकटता महसूस नहीं करतीं।” रोहित ने अपना फ़ैसला सुना दिया।
निरूत्तर देवयानी का हाथ पकड़ रोहित ने कहा-
“तुम्हारी चुप्पी तुम्हारी स्वीकृति है। हमारी दोस्ती हमेशा बनी रहे। चलो, अब प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है।”
लड़को ने लड़कियों को कुछ चिटें बाँटी। उन पर नम्बर लिखे थे। जिस नम्बर को पुकारा जाएगा, उस लड़की को स्टेज पर जाकर उससे जो फ़र्माइश की जाए, उसे पूरा करना होगा। देवयानी के हाथ में नं. 5 की चिट थी। अचानक नम्बर 5 की पुकार पर देवयानी को स्टेज पर जाना पड़ा। लड़कों ने आवाज़ लगाई-
“एक प्यार से सराबोर ग़ज़ल गाइए, मोहतरमा” देवयानी की हिचक पर रोहित आगे बढ़ आया-
“दोस्ती के नाम पर एक ग़ज़ल सुना दो, देवयानी।”
देवयानी ने जैसे ही माइक थामा, हॉल तालियों से गूँज उठा। देवयानी ने अपनी फ़ेवरिट ग़ज़ल शुरू की -
“दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए, बस एक बार मेरा कहा, मान लीजिए.......” सुरीले गले से निकली ग़ज़ल में मानो उमराव जान साकार थी। ग़ज़ल समाप्त होने पर कुछ पलों के लिए आत्म- विस्मृत सन्नाटा छाया रहा। अचानक ज़ोरदार तालियों की गड़गड़ाहट ने जैसे सबकी तंद्रा भंग कर दी।
“एक और, वन्स मोर” के शोर के बीच देवयानी मंच से नीचे उतर आई। सब देवयानी की ओर मुग्ध दृष्टि से ताक रहे थे। रोहित ने देवयानी को बधाई देते कहा-
“तुम में और कितने गुण छिपे हैं, देवयानी ? जितना ही तुम्हें जान रहा हूँ, उतना ही विस्मित हो रहा हूँ।‘
उसी वक्त देवयानी को सर्वसम्मति से कालेज की ‘लंता मंगेशकर‘ का खि़ताब मिल गया।
कुछ ही देर में नृत्य के लिए संगीत शुरू हो गया। लड़कों ने लड़कियों को आमंत्रित कर डांस शुरू कर दिया। देवयानी हॉल के कोने में बैठी नृत्य करते जोड़ों को कौतुक से देख रही थी। एक-एक करके कई साथियों ने देवयानी को नृत्य के लिए आमंत्रित किया, पर देवयानी प्रस्ताव शालीनता से अस्वीकार करती गई-
“क्षमा करें, मुझे नृत्य नहीं आता।”
“आइए न, हम सिखा देंगे, बशर्ते आप हमे संगीत सिखा दें।” मुस्कराते मोहनीश ने कहा।
“अरे पाश्चात्य नृतय में होता ही क्या है, बस इधर-उधर पाँव रखते रहिए।” अनुराग ने समझाया।
“मुझे दूसरों को नृत्य करते देखना अच्छा लगता है। प्लीज़ हमे एन्ज्वॉय करने दें।”
“ओ. के. ऐज़ यू विश।”
अचानक पीछे से आए रोहित ने देवयानी को कंधे से पकड़ जबरन खड़ा कर लिया। रोहित के साथ करीब-करीब घिसटती-सी देवयानी डांस- फ़्लोर पर पहुँच गई।
“हमे छोड़ दो, रोहित। प्लीज़, हमे डांस नहीं आता।” देवयानी रूँआसी-सी थी।
“ऐ बेबी, ज़िंदगी का एक-एक पल एन्ज्वॉय करना सीखो। न जाने कब हमें ये खूबसूरत दुनिया छोड़कर चले जाना पड़े। नाउ लेट्स स्टार्ट लाइक दिस.........।”
रोहित की बातों मे न जाने क्या जादू-सा था, देवयानी के पाँव उसके साथ उठते गए।
साथियों ने तालियाँ बजाकर, आवाजें कसीं-
“हियर-हियर। रोहित यार, मान गए।”
“अब तू मेडिसिन की पढ़ाई छोड़, डांस-टीचर बन जा।” रोहित के साथी जयंत ने सलाह दी। हँसी-खुशी को वो शाम बड़ी जल्दी बीत गई। अचानक कलाई-घड़ी पर नज़र पड़ते ही देवयानी चौंक गई। ग्यारह बजे रात तक वो पहली बार बाहर रही थी। माँ का चिंतित चेहरा याद हो आया।
“अब हमें जाना है, माँ परेशान होंगी।” साथ बैठी रितु हंस पड़ी
“अरे, घर में तो रोज़ ही रहती हो, एक दिन यहाँ भी एन्ज्वॉय कर लो।”
“नहीं, रितु, हमारी परिस्थिति सबसे अलग है। माँ परेशान होंगी। हम जा रहे हैं।”
देवयानी को खड़ा होते देख, रोहित पास आ गया।
“क्या बात है, देवयानी ?”
“हमे घर जाना है, रोहित।”
“इतनी जल्दी ?”
“इतनी जल्दी ?”
“हमारे लिए ग्यारह बजे रात का मतलब बहुत देर हो जाना है, रोहित।”
“ओह, समझा। चलो तुम्हें घर तक छोड़ आऊँ।”
हॉल के बाहर आकर रोहित अपनी मोटरबाइक के पास देवयानी को ले गया।
“मोटरबाइक में पहलेकभी बैठी हो ? डर तो नहीं लगेगा ?” रोहित के चेहरे पर कंसर्न था।
“नहीं, पर तुमने तो कहा था लड़कियों को घर तक छोड़ने का इंतजाम है।”
“अरे, इससे अच्छा इंतज़ाम क्या होगा, देवयानी। मिनटों में घर पहुँच जाओगी।”
“हमे मोटरबाइक पर बैठते डर लगता है। हम कभी नहीं बैठे हैं। अगर कोई रिक्शा मिल जाए तो हम चले जाएँगे।”
“व्हाट रबिश। इतनी रात गए अकेले रिक्शे में जाना क्या सेफ़ होगा। वेल। डोंट बिहेव लाइक ए चाइल्ड। कम ऑन। मैं बाइक स्टार्ट करता हूँ। तुम मेरे पीछे बैठ जाना। डर लगे तो मुझे कसकर पकड़ लेना। यकीन रखो गिराऊँगा नहीं।
देवयानी की झिझक देख फिर कहा-
“क्या करूँ, अभी मेरे पास कार तो है नहीं। चलो, जल्दी करो वर्ना और देर हो जाएगी।”
विवश देवयानी को रोहित के पीछे बैठना पड़ा। मोटरबाइक के झटकों से डरकर उसका हाथ रोहित के कंधे को जकड़े हुए था। घर के सामने पहुँच, रोहित ने मोटरबाइक रोक कर, देवयानी को उतार कर कहा-
“डरीं तो नहीं ? हाँ, माँ को बता देना तुम मेरे साथ आई हो। अगर डाँट पड़े तो कोई बात नहीं, पर झूठ बोलना ग़लत होगा।”
“थैंक्स रोहित। मुझे आज तक माँ से कभी झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी न पड़ेगी। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं एक-दूसरे की बात खूब समझते हैं।”
“मुझे तुमसे यही उम्मीद थी, देवयानी। ओ.के.बाय। गुड नाइट।
किक मार, रोहित उड़ गया।
कल्याणी खिड़की से देख रही थी। अंदर पहुँचते ही देवयानी ने कहा-
‘सॉरी, माँ। प्रोग्राम इतना अच्छा था वक्त का पता ही नहीं लगा।
“किसके साथ आई थी, देवयानी ?”
“वो हमारे सीनियर रोहित थे.......”
“देख, देवयानी, आगे से किसी लड़के के साथ मोटरबाइक पर आने की ज़रूरत नहीं है।” गंभीरता से कल्याणी ने कहा।
“ठीक है, माँ।”
दूसरे दिन सुबह देवयानी ने अपने पिछली रात के प्रोग्राम के बारे में बताते हुए उत्साह से माँ से कहा-
“जानती हो, माँ। कल हमें क्या खि़ताब मिला ?”
“मै तो वहाँ थी नहीं, कैसे जानूंगी, देवयानी ?”
“माँ, कल हमें कॉलेज की ‘लता मंगेशकर‘ का खि़ताब मिला है। हमने उमराव जान की ग़ज़ल सुनाई थी। हम तो नहीं गाना चाहते थे, पर सबने इतनी रिक्वेस्ट की कि गाना ही पड़ा।”
“कोई बात नहीं, अपनी कला को छिपाना नहीं चाहिए। मुझे खुशी है, तेरी ग़ज़ल सबको पसंद आई।” मुस्करा कर कल्याणी ने देवयानी का उत्साह बढ़ाया।
“तुम बहुत अच्छी हो, माँ। हम तो डर रहे थे, कहीं तुम नाराज़ न हो। हाँ, तुम्हारी गाँव की औरतों वाली प्रोजेक्ट की क्या प्रगति है ?”
“देख, देवयानी, जो बात छिपाने की ज़रूरत पड़े, उसके लिए मैं नाराज़ हो सकती हूँ। तूने कुछ ग़लत नहीं किया। कल गाँव के मुखिया से बात की है, उम्मीद है अब औरतें हमारे कामों में सहयोग देंगी।”
“ये अच्छी बात है, माँ। तुम्हारे लिए मैं बहुत खुश हूँ। तुमने अब जीने के लिए एक मक़सद पा लिया है।”
“मेरी ज़िदगी का सबसे बड़ा मक़सद तो तुझे डॉक्टर बनाना था। वो पूरा हो रहा है। कल्याणी हल्के से मुस्करा दी।
“नहीं माँ, कोई भी इंसान किसी दूसरे के नाम पर अपना मक़सद पूरा नहीं कर सकता। तुम्हारा मक़सद अब उन शोषित स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाना है, जिन्होंने खुशी का उजाला कभी जाना ही नहीं है।”
“आफ़िस से प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाए तब जल्दी ही काम शुरू हो जाएगा।”
“ऑफ़िस वालों का क्या रूख़ है ?‘
“मेरे बॉस को योजना बहुत पसंद आई है। उन्होंने रिकमेंड करके फ़ाइल ऊपर भेज दी है।”
“वाह ! तब तो बात बन गई, समझो।”
“मेरी चिन्ता छोड़, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, याद रख, तुझे अच्छे नम्बरों से पास होना है।”
“घबराओ नहीं, माँ तुम्हारी बेटी हूँ। तुम्हारा नाम रौशन करूँगी।”
“मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है। काश् रोहन और रितु भी तेरी तरह मेहनत से पढ़ते तो आज वो भी किसी प्रोफ़ेशनल लाइन में होते। रोहन तो अभी तक बारहवीं भी पास नहीं कर पाया और रितु मेट्रिक पर ही अटकी है।”
“ओह, माँ! तुम आज भी उन लोगों के बारे में सोचती हो, जिन्होंने हमें कभी अपना माना ही नहीं। हमेशा हमारा अपमान किया। आज भी रागिनी ताई की चेतावनी याद है, जब उन्होंने कहा था रितु के स्कूल में किसी को न बताना कि हम रितु के रिश्तेदार हैं।” देवयानी का मुँह उदास हो आया।
“जाने दे, अगर उन्होंने ग़लती की तो हम भी उन जैसी ग़लती क्यों करें? आज तेरी सफलता से पापा जी ज़रूर खुश होते होंगे।”
“अच्छा माँ, चलती हूँ। कॉलेज के लिए देर हो रही है।”
कॉलेज पहुँचते ही रोहित से सामना हो गया। वो सीनियर डॉक्टर के साथ राउंड ख़त्म करके आया था।
“हलो। कल रात माँ ने डाँटा तो नहीं ?”
“नहीं, पर कहा है, आगे से हम किसी के साथ मोटरबाइक पर न बैठें।”
“उन्हें पता नहीं रोहित किसी ऐरे-गैरे की श्रेणी में नहीं आता। एक साल बाद एक ज़िम्मेदार डॉक्टर बन जाऊँगा।” कालर ऊँचा कर, रोहित ने गर्व से कहा।
“क्या डॉक्टर बन जाने से कुछ ख़ास बन जाते हैं, रोहित ? हम तो चाहते हैं एक आम इंसान की तरह रहते हुए अपना काम करें।”