द्वितीय संस्करण का वक्तव्य / मलिक मुहम्मद जायसी / रामचन्द्र शुक्ल
प्रथम संस्करण में इधर उधर जो कुछ अशुद्धियाँ या भूलें रह गई थीं वे इस संस्करण में जहाँ तक हो सका है, दूर कर दी गई हैं। इसके अतिरिक्त जायसी के 'मत और सिद्धांत' तथा 'रहस्यवाद' के अंतर्गत भी कुछ बातें बढ़ाई गई हैं जिनसे आशा है, सूफी भक्तिमार्ग और भारतीय भक्तिमार्ग का स्वरूपभेद समझने में कुछ अधिक सहायता पहुँचेगी। इधर मेरे प्रिय शिष्य पं. चंद्रबली पांडेय एम. ए. जो हिंदी के सूफी कवियों के संबंध में अनुसंधान कर रहे हैं, जायस गए और मलिक मुहम्मद जायसी की कुछ बातों का पता लगा लाए। उनकी खोज के अनुसार 'जायसी का जीवनवृत्त' भी नए रूप में दिया गया है जिसके लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना मैं आवश्यक समझता हूँ।
इस ग्रंथावली के प्रथम संस्करण में जायसी के दो ग्रंथ - 'पदमावत' और 'अखरावट' - संगृहीत थे। उनका एक ग्रंथ 'आखिरी कलाम' फारसी लिपि में बहुत पुराना छपा हुआ हाल में मिला। यह ग्रंथ भी इस संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। कोई और दूसरी प्रति न मिलने के कारण इसका ठीक ठीक पाठ निश्चित करने में कड़ी कठिनता पड़ी है। एक तो इसकी भाषा 'पदमावत' और 'अखरावट' की अपेक्षा अधिक ठेठ और बोलचाल की अवधी, दूसरे फारसी अक्षरों में लिखी हुई। बड़ी परिश्रम से किसी प्रकार मैंने इसका पाठ ठीक किया है, फिर भी इधर - उधर कुछ भूलें रह जाने की आशंका से मैं मुक्त नहीं हूँ।
जायसी के और दो ग्रंथों की अपेक्षा इसकी रचना बहुत निम्न कोटि की है। इसमें इसलाम की मजहबी किताबों के अनुसार कयामत के दिनों का लंबा-चौड़ा वर्णन है। किस प्रकार जल प्रलय होगा, सूर्य बहुत निकट आ कर पृथ्वी को तपाएगा, सारे जीव - जंतु और फरिश्ते भी अपना जीवन समाप्त करेंगे, ईश्वर न्याय करने बैठेगा और अपने अपराधों के कारण सारे प्राणी थरथर काँपेंगे, इन्हीं सब बातों का ब्योरा इस छोटी सी पुस्तक में है। जायसी ने दिखाया है कि ईसा, मूसा आदि और सब पैगंबरों को तो आप आपकी पड़ी रहेगी, वे अपने अपने आसनों पर रक्षित स्थान में चुपचाप बैठे रहेंगे; पर परम दयालु हजरत मुहम्मद साहब अपने अनुयायियों के उद्धार के लिए उस शरीर को जलानेवाली धूप में इधर उधर व्याकुल घूमते दिखाई देंगे, एक क्षण के लिए भी कहीं छाया में न बैठेंगे। सबसे अधिक ध्यान देने की बात इमाम हसन हुसैन के प्रति जायसी की सहानुभूति है। उन्होंने लिखा है कि जब तक हसन हुसैन को अन्यायपूर्वक मारनेवाले और कष्ट देनेवाले घोर यंत्रणापूर्ण नरक में डाल न दिए जाएँगे, तब तक अल्लाह का कोप शांत न होगा। अंत में मुहम्मद साहब और उनके अनुयायी किस प्रकार स्वर्ग की अप्सराओं से विवाह कर के नाना प्रकार के सुख भोगेंगे, यही दिखा कर पुस्तक समाप्त की गई है।
- रामचंद्र शुक्ल
चैत्र पूर्णिमा
संवत् 1992