नई डायरी का नया पृष्‍ठ / अमृतलाल नागर

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स्‍वप्‍न कभी-कभी स्‍फूर्तिदायक होते हैं। पिछले एक वर्ष से डायरी लिखने का शौक लगा। समय-समय पर कागज पर अंकित, एकांत क्षणों में मेरे अच्‍छे और बुरे विचार मुझे अपने जीवन की समालोचना करने का अवसर देते हैं। डायरी निष्‍पाप और निष्‍कलंक है - मेरा अंतःकरण भी निष्‍पाप और निष्‍कलंक है। मैं दोनों को प्‍यार कर सकता हूँ, दोनों का आदर करना जानता हूँ, बहुत-सी बुराइयों के सा‍थ ही मुझमें एक अच्‍छाई है। काश, इन दोनों के आदेशों का पालन भी करने लगूँ !

22 अक्‍टूबर, 1941 ई. अमृतलाल नागर

शालिनी सिनेटोन स्‍टूडियो,

कोल्‍हापुर। (महाराष्‍ट्र)