22 अक्‍टूबर, 1941 / अमृतलाल नागर

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दिवाली हो गई। आज भैया दूज है। अगर मेरी अपनी कोई सगी बहन होती तो आज के‍ दिन मुझे न भूलती। मुझे इस बात को देखकर बड़ी शांति है कि मेरे चि. बेबी (नागरजी के ज्येष्ठ पुत्र कुमुद) और चि. शरत (नागरजी के कनिष्ठ पुत्र शरद) के तिलक काढ़ने वाली उनकी बहन भा. आशा (नागरजी के ज्येष्ठ पुत्री अचला का बाल्यकाल में रखा गया नाम) है। प्रभु, मेरी प्रार्थना की लज्‍जा रक्‍खो! - ये दोनों भाई और उनकी ये बहन अखंड सुख भोगते हुए शतायु प्राप्‍त करें। बहन को उसकी ये भैया दूज मुबारक हो। उसे अपने दोनों भाइयों को इस तरह टीका काढ़ने का अवसर, प्रभु कृपा से, सौ वर्ष तक आए। तथास्‍तु।

चि. रतन (नागरजी के अनुज रतनलाल नागर) घर गया होगा। चि. रतन और चि. मदन (नागरजी के दूसरे अनुज मदनलाल नागर) तथा सौ. साधना (अनुज रतनलाल नागर की धर्मपत्नी) ने माते (नागरजी की माता) के साथ दिवाली मनाई होगी। प्रभु, इन्‍हें शतायु प्रदान करो और अखंड सुख दो। एवमस्‍तु !

आजकल मन चौबीस घंटे घरेलू वातावरण में ही रमा रहता है। नाथ, मुझे अपनी पूरी गृहस्‍थी के साथ रहकर जीवन भर सुख बिताने का अवसर दो। कोल्‍हापुर में अब मन जरा भी नहीं लगता। - मुझे एक-एक सेंकेंड भारी मालूम पड़ रहा है। मेरी मनोदशा इस समय बहुत खराब है।

शारीरिक अवस्‍था भी ठीक नहीं। मैंने इस छोटी-सी अवस्‍था में अपने शरीर पर जितना अधिक अत्‍याचार किया है, वह कम नहीं है। ...मैं यह भी चाहता हूँ कि व्‍यायाम करके अपने शरीर को सुगठित बनाऊँ। मेरी यह बड़ी इच्‍छा है कि स्‍वास्‍थ्‍य भी मेरा बहुत अच्‍छा हो जाए। मेरा नियमित जीवन जिस दिन बन सकेगा-वह दिन बड़ा शुभ होगा। मैं दुनिया में कुछ काम कर सकूँगा। हे प्रभु, जिस दिन अपने साहित्‍य द्वारा मैं अपने देश की सेवा कर सकूँ - मैं अपने को धन्‍य समझूँगा। सचमुच, मेरा उद्देश्‍य यही है कि मैं अपने साहित्‍य द्वारा हिंदी साहित्‍य और अपने देश की सेवा कर सकूँ। बेकारी, झूठी प्रतिष्‍ठा, दलित वर्ग की करुण कहानी, सीधी-सादी भाषा में (झूठी और सस्‍ती भावुकता के चक्‍कर में न पड़कर) पुरअसर तरीके से अपने देशवालों को सुनाता चलूँ-विश्‍व को अपने देश की उस अवस्‍था (दशा) का परिचय दूँ, जिसे हमारे गौरांग प्रभु अपना उल्‍लू सीधा करने की गरज से छिपाते हैं। प्रसिद्धि का हर एक आदमी भूखा होता है; पर मैं यह बात मानने के लिए तैयार हूँ कि मुझमें यह बात कमजोरी तक बन कर आ गई है; लेकिन सिनेमावालों की तरह खुद ही अपनी तारीफ लिखकर और खुद होना मुझे नहीं भाता। मैं तो चाहता हूँ जनता ही में से कोई आकर मेरी कला पर लिखे, मुझसे इंटरव्‍यू ले, मेरे आटोग्राफ माँगे। यह मैं जानता हूँ कि अगर मैं अपना काम करता रहा तो ईश्‍वर मुझे यह सम्‍मान भी कृपापूर्वक प्रदान करेंगे। - सचमुच 'बड़ा' बनने की मेरी सबसे बड़ी महत्‍वाकांक्षा है। प्रभु, मैं निर्बल हूँ, मूर्ख हूँ। अपनी अस्लियत से मैं पूरी तरह परिचित हूँ, मुझे दुनिया वैसे जो कुछ भी समझे। प्रभु यह तुम्‍हारी ही कृपा का फल है कि आज मैं यह 'कुछ' बन सका हूँ - और एक दिन तुम्‍हारी ही कृपा के बल पर मैं बहुत कुछ बन जाऊँगा। मुझे तो मात्र तुम्‍हारा ही सहारा है।

अभी दिन की बात है - कंपनी की एक्‍स्‍ट्रानटियों में से एक - लालाबाई मुझसे कहने लगी : "पंडितजी, अगली पिक्‍चर में मुझे काम दो और ऐसा लिखो कि ये कंपनी वाले आदमी नहीं, जम के दूत हैं। दूसरों को अपनी पिक्‍चर में बताते हैं कि गरीबी और अमीरी का भेदभाव दूर करो, मगर खुद ही करते हैं।" लालाबाई ने किस जलन और व्‍यथा के कारण यह बात मुझसे कही होगी, इसका मैं अंदाज लगा सकता हूँ। मुझसे उसका यह कहने का साहस भी सिर्फ इसलिए हुआ कि मैं स्‍टूडियो में विनायकराव (नवयुग चित्रपट के मालिक तथा 'संगम' फिल्म के निर्माता-निर्देशक) से लेकर होटल के एक मामूली 'ब्‍वॉय' तक से एक-सा प्रेम-व्‍यवहार रखता हूँ। सभी मौका पड़ने पर मुझसे अपने दिल की बात कह डालते हैं। मैंने यह चीज यहाँ पहले भी महसूस की। मैं यह नहीं कहता कि यह सिर्फ नवयुग चित्रपट में ही है। यह चीज आमतौर पर देखी जाती है -'चिराग तले अँधेरा' की कहावत पर यकीन हो जाता है। इसके पहले भी एक ऐसा ही किस्‍सा मैंने यहाँ देखा। म्‍यूजिक डिपार्टमेंट में केशोराय नाम का एक बुड्ढा करताल बजाने वाला था। बारह रुपये माहवार उसको मिलते थे। केशोराय बड़ा सीधा आदमी है। कंपनी के खर्चे में कमी करने की गरज से उसके लाख-लाख चिरौरी करने पर भी उसे निकाल दिया गया। एक दिन मैंने म्‍यूजिक डिपार्टमेंट में जाकर उसका अभाव महसूस किया। उसके बारे में पूछा तो सारा किस्‍सा मालूम हुआ। पता लगा, कोई साबुत कपड़ा न होने की वजह से चार रोज से अपनी कोठरी के बाहर नहीं निकली - यह उसकी 15/16 बरस की जवान जहान लड़की के संबंध में मैंने सुना। बेचारे को बुढ़ापे में भीख माँगने की कला का अभ्‍यास करना पड़ रहा है - यह मैंने सुना। उसके दो छोटे बच्‍चे भी अब पाठशाला जाना छोड़ भीख माँगने की कोशिश कर रहे हैं। मुझसे और कुछ सुना न गया। मैं उसके मकान का पता पूछकर उससे मिलने के लिए चला। रानडे (नवयुग चित्रपट में नागरजी के सहकर्मी) रास्‍ते में ही मिल गए। उनके पूछने पर मैंने तमाम किस्‍सा बतलाया। मैं और रानडे उसके घर गए। केशोराय अपने सामने स्‍टूडियो के दो 'देवताओं' (बड़े अफसरों) को देखकर स्‍तब्‍ध रह गया। हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोला : 'आज हमारे यहाँ सत्‍तनरायन हैं - पूजा करूँगा।'

दो रंग की दो फटी हुई धोतियों को गाँठों से जोड़कर उसकी लड़की छोटी-सी-समृद्धिहीन-पूजन सामग्री सँजो रही थी। उसके दोनों भाइयों की बुरी हालत भी हमने देखी। केशोराय का पाताल से बातें करता हुआ पेट भी हमने देखा। वह भीख से थोड़े-बहुत पैसे जुटा कर भगवान को प्रसन्‍न करने का प्रबंध करता है। विदुर के घर शाक ग्रहण करने वाले, दीनबंधु हरि क्‍या उसका यह अमूल्‍य-प्रसाद ग्रहण न करेंगे? - नहीं, भगवान में इतना साहस नहीं। भगवान केशोराय और उसके परिवार को सुख दो। मैं सोचने लगा, उसकी लड़की जो देखने-सुनने में ऐसी कुछ बुरी भी नहीं - इस आफत में पड़कर खुद या अपने बाप के द्वारा अपनी जवानी की दुकान खोलकर बैठ जाए। ...बड़े-बड़े लोग-यही परम भावुक श्री विनायक भी तब शायद चिल्‍ला देंगे कि हाय-हाय! केशोराय ने अपनी लड़की को वेश्‍या बनाकर बाजार में बैठा दिया। ...पर आज उसकी मुसीबत का अंदाज लगाने की तरफ कोई ध्‍यान भी नहीं देता। बेकार का पेट्रोल खूब फूँका जाएगा - उसमें कमी कैसे हो? - अपनी कमजोरियों को Black mailer journalists से खरीदने के लिए हजारों रुपया फूँका जाएगा, क्‍योंकि वह Business है, खुद Rs. 1500/- में एक पाई कम करना पसंद नहीं करेंगे। साल-साल, डेढ़-डेढ़ साल से 'एपरंटिसों' को झौओं की तादाद में रखकर उन्‍हें एक पैसा दिए बगैर मजदूरों की तरह उनसे काम लिए जाएँगे। स्‍टॉफ की मीटिंग कर 'भाई-भाई' बनकर मेरी-आपकी सबकी कंपनी कहने का ढोंग रचेंगे, अपने साम्‍यवाद का इस तरह लेक्‍चरी-सबूत देकर यह समझ लेंगे कि हम सचमुच ही अपना सारा फर्ज अदा कर चुके। अखबारों में अपनी पब्लिसिटी भेजेंगे कि मामूली-से-मामूली नौकर भी उनसे भाई की तरह मिलता है। और घरौआ बरत सकता है। और उसके बाद यह हालत ! दुनिया सचमुच दुरंगी है।

खुदा का घर (नागरजी के प्रस्तावित उपन्यास का शीर्षक, जो कि पूरा नहीं हुआ।) अब उठाना चाहता हूँ। उस पर मैंने नोट्स लिखने शुरू कर दिए हैं। बहुत जल्‍द ही पूरा चार्ट बनाकर लिखने का काम शुरू कर दूँगा।

जुन्‍नरकर (नवयुग चित्रपट की फिल्म 'संगम' के सह-निर्देशक) ने मुझसे 'पार्वती' के संवाद और गायन लिखने की बात की है। लेकिन Business side के लिए चिंचलीकर (प्रस्तावित फिल्म के निर्माता) अभी बात नहीं करते। उनसे अभी ही सौदा तय हो जाता तो मेरी इच्‍छा थी, इसी बीच में पार्वती के गायन और संवाद लिखकर और रुपये लेकर घर जाता, परंतु प्रभु की जैसी मर्जी़ होगी वही होगा। उसी का आसरा है।

आज ईद है। मौलाना (नवयुग चित्रपट में नागरजी के एक अन्य सहकर्मी) शहर में नमाज पढ़ने गए थे। बाल-बच्‍चों से दूर इस तरह त्‍योहार का फीकापन मौलाना किस तरह से महसूस कर रहे हैं-यह मैं बड़ी ही अच्‍छी तरह समझ सकता हूँ।