नक़्शानवीसी की मुसीबतें / बावरा बटोही / सुशोभित

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नक़्शानवीसी की मुसीबतें
सुशोभित


बोर्ख़ेस की किताब द मेकर (1961) के म्‍यूज़ियम अनुभाग में नक़्शानवीसी की मुसीबतों पर एक छोटी-सी कहानी छपी थी। शीर्षक था : ऑन एग्ज़ैक्टिट्यूड इन साइंस।

क़िस्सा यों था कि एक सल्‍तनत में नक्‍़शानवीसी की डिटेलिंग (बोर्ख़ेस के शब्दों में एग्ज़ैक्टिट्यूड) का हुनर इतनी बुलंदियों तक पहुंच गया था कि एक सूबे का नक्‍़शा एक शहर जितना बड़ा हो जाया करता था और समूची सल्‍तनत का नक्‍़शा एक सूबे जितना बड़ा। धीरे-धीरे नक्‍़शानवीसों की मंडली को ये नक्‍़शे भी नाकाफ़ी जान पड़ने लगे तो उन्‍होंने तय किया कि अब सल्‍तनत का एक ऐसा नक्‍़शा बनाया जाए, जो समूची सल्‍तनत जितना ही बड़ा हो। एक-एक नुक्‍़ता, एक-एक ज़र्रा, हू-ब-हू वही।

लिहाजा एक अज़ीम नक्‍़शा तामीर किया गया। वह एक नज़ीर कहलाई। बाद इसके, वक्‍़त बदला। नई नस्‍लें, नए निज़ाम आए। अब उन्‍होंने पाया कि यह नक्‍़शा तो पूरी तरह बेकार और ग़ैर-ज़रूरी है, तो उन्‍होंने बेरहमी से उसे समेटकर धूप-पानी की मर्ज़ी के हवाले कर दिया। कहानी कहती है कि पच्छिम के रेगिस्‍तानों में इस नक्‍़शे के पुर्जे आज भी यहाँ-वहाँ बिखरे नज़र आते हैं।

यह क़िस्सा पहले-पहल ब्यूनस आयर्स का इतिहास के मार्च 1946 के संस्‍करण में बी. लिंच डेविस के छद्मनाम से छपा था। वास्‍तव में यह अदोल्‍फ़ो बिऑय कासारेस और ख़ोर्ख़े लुई बोर्ख़ेस की मिली-जुली कारस्‍तानी थी, जबकि द मेकर में प्रकाश‍ित ड्राफ़्ट के फ़ुटनोट में इसका स्रोत सुआरेज़ मिरांदा के वर्ष 1658 में प्रकाशित एक यात्रावृत्‍त को बताया गया था।

वस्तुत:, यह कहानी लुई कैरोल के उपन्‍यास सि‍ल्‍वी एंड ब्रुनो के उस ब्‍योरे से प्रेरित है, जिसमें एक मील के इलाक़े के लिए एक मील बड़े ही किसी नक्‍़शे की कल्‍पना की गई है और पूरे शहर के लिए एक पूरे शहर जितने बड़े नक़्शे की। इस पर किसानों के द्वारा ऐतराज़ किया जाता है कि अगर खेत का नक़्शा खेत जितना ही बड़ा होगा तो फ़सलों को हवा-पानी-धूप कैसे मिलेंगे। नॉवल का एक किरदार मीन हेर्र अपनी आपत्त‍ि जताते हुए कहता है, इससे तो बेहतर है कि हम अपने शहर को ही एक नक्‍़शा समझकर उसका इस्‍तेमाल करें!

साइंस में, नक़्शानवीसी में एग्ज़ैक्टिट्यूड एक हुनर ज़रूर होता है, लेकिन उससे यह उम्मीद हमेशा की जाती है कि वह अपने प्रतिनिध‍ि-चरित्र को नहीं त्यागेगा। अक्‍सर यह होता है कि नक्‍़शे अपने मूल को अपदस्‍थ कर देते हैं और अंतत: मूल अपने नक्‍़शों का एक नक्‍़शा बनकर रह जाता है! नक़्शानवीसी का मक़सद डिटेलिंग ज़रूर है, लेकिन वह एक मिनिएचर डिटेलिंग है, समग्र की पुनर्रचना नहीं है।

कार्टोग्राफ़ी या नक़्शानवीसी के इस प्रसंग में इतालो कल्वीनो की एक छोटी-सी कहानी द इनफ़ाइनाइट लॉन पठनीय है, जिसमें मिस्टर पलोमर नामक चरित्र इस सोच में डूब जाता है कि उसका लॉन कहाँ से शुरू होता है और कहाँ पर ख़त्म होता है और उसके और उसके पड़ोसी के लॉन में मौजूद घास के गुणधर्म को कैसे अलगाया जाए।

कहना ना होगा, नक़्शानवीसी के साथ जुड़ी मुसीबतें और उन मुसीबतों से उपजी दुविधाओं का संताप उन लोगों के लिए कम नहीं है, जिनका नाम विलियम फ़ॉकनर नहीं है, क्योंकि फ़ॉकनर तो अपने नॉवल्स के काल्पनिक क़स्बों के बाक़ायदा नक़्शे बनाया करता था। तिस पर तुर्रा यह कि वैसा करने वाला वो इकलौता अफ़सानानिगार नहीं था!