नागिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल / पृष्ठ 3
‘कविता के संबंध में मान्यता ’
( उन्होंने आठ सितम्बर 1942 ई0 को अपने एक मित्र केा पत्र लिखा है जिसका कुछ अंश यहां उदृधृत है)
दिनांक 08- 09- 42
प्रिय श्री ..... जी,
कविता यदि मुझे भुला न दे तो मैं कुछ भी खोया हुआ नहीं मानूंगा और मुझे तनिक भी दुख नहीं होगा। हृदय की उसी एकान्त इच्छा को पूरी तरह से पाने के लिये मैं जानबूझ कर कठिन दुख के रास्ते पर चल रहा हूं। हो सकता है कि अकाल मृत्यु मेरी कामनाओं को कुचल दे, हो सकता है कि जब सिद्धि मुझे मिले तब उसे उपभोग करने की सामर्थ्य मेरे शरीर में न हो, फिर भी मुझे इस बात का संतोष रहेगा कि जीवन के प्रभात काल में जिस देवी के चरणों पर मैने अपना सिर रखा था, उसकी मैने सदा पूजा की, उसको मैने सदा प्यार किया...........किशोरावस्था में तुमने उस मंदिर तक जाने में मदद दी, जहां आंखों में आंसू भर कर वह देवकन्या रहती थी। इस बात को न तो मैं भूला हूं और न ही कभी भूल सकूंगा।
(यह पत्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित मेघ नंदिनी के पृष्ठ 101 से साभार उदृधृत किया गया है)