नागिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल / पृष्ठ 2
’मृृत्यंुजय’
(चन्द्रकुंवर द्वारा कविता के रूप में पत्र लिखा गया था)
सहो अमर कवि! सहो अत्याचार सहो जीवन के,
सहो धरा के कंटक, निष्ठुर वज्र गगन के।
कुपित देवता हैं तुम पर हे कवि! गा गा कर
क्योंकि अमर करते तुम दुख सुख मर्त्य भुवन के,
कुपित दास हैं तुम पर, क्योंकि न तुमने अपना
शीश झुकाया, तुम ने राग मुक्ति का गाया,
छंदों और प्रथाओं के निर्मल बंधन में
थ्कसी भांति भी बंध न सकी ऊंचे शैलों से
गरज गरज आती हुई तुम्हारे निर्मल
और स्वच्छ गीतों की वज्र हास सी काया।
निर्धनता को सहो, तुम्हारी यह निर्धनता
एक मात्र निधि , होगी, कभी देश जीवन की।
अश्रु बहाओ, दिपी तुम्हारे अश्रु कणों में,
एक अमर वह शक्ति न जिस को मंद करेगी,
म्लिन पतन से भरी रात सुनसान, मरण की।
टंजलियां भर भर सहर्ष पीओ जीवन का
तीक्ष्ण हलाहल, और न भली सुधा सात्विकी,
पीने में विष सी लगती हैं, किन्तु पान कर
मृत्युंजय कर देती है मानव जीवन को।
‘निराला का पत्रोत्तर ’
(महाप्राण निराला ने अपनी बिहार यात्रा से लौटने के बाद जो उत्तर भेजा उसे यहां उदृधृत किया जा रहा है)
भूसा मंडी, हाथीखाना, लखनऊ,
दिनांक 30- 03- 42
प्रिय श्री चन्द्रकुंवर जी,
मैं बिहार गया था , अस्वस्थ लौटा। आपके प्रिय पत्र का समय पर उत्तर नहीं जा सका। मेरे लिये चिन्ता न करें । मैं इसी तरह मजे में रहता हूं। आप जल्द स्वस्थ हो जायं यह हमारे स्वास्थ्य का मुख्य कारण होगा। अपने समाचार अवश्य दें।आर्थिक अधिक असुविधा हो तो सूचित करने से संकोच न करें। मेरी दो पुस्तिकाऐं छप रही हैं निकल जाने पर आपके पास भेजूंगा। आप की आकांक्षांये अवश्य पूरी होगीं चित्त शान्ति रखें। मेरे सौकर्य का आप के साथ पूरा सहयोग है। यहां इस समय अन्न की मंहगी बढी है। समय अच्छा है। आकाश साफ रहता है, सर्दी गर्मी दुखदायक नहीं , लिखने पढने के अनुकूल है।कागज कलम वाला व्यवसाय बहुत मन्द हैं लोग एक भयानक परिवर्तन की ओर जैसे त्रास से देख रहे हों।आशा है आपके समाचार जल्द मिलेंगे।
सस्नेह
सूर्यकांत त्रिपाठी‘निराला’