नीलम के अंग्रेज जूते / पूजा

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[[पूजा, उम्र 22 साल। पूजा का जन्म 1996 दिल्ली में हुआ। ये अभी बी.ए. सेकंड इयर मे पढ़ती है । दक्षिणपुरी में रहती हैं। अंकुर के मोहल्ला मीडिया लेब पिछले एक साल से जुड़ी है इन्हे लेब सुनने सुनाने माहोल मे मे अपनी रचनाओ को सुनने और दूसरों की रचनाओ सुन कर उस पर संवाद करना पसंद है। इनकी दोस्ती किताबों से जल्दी होती है।]]

नीलम मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। उसका घर हमारे घर के पास ही है इसलिए हम दोनों साथ ही स्कूल जाते थे। वैसे तो वो पढ़ने में ठीक-ठाक ही थी लेकिन टीचर के मन में उसको लेकर जो एक बात हमेशा खटकती रहती थी वो थी उसका रोज़-रोज़ एक ही व्हाइट जूते पहन कर स्कूल आना। हमारे स्कूल में सोमवार से शुक्रवार तक काले जूते पहन कर जाना होता था, लेकिन बीच में बुधवार और शनिवार को व्हाइट ड्रेस के साथ व्हाइट जूते पहन कर जाना होता था।एक दिन हमारी मैडम ने उसे कह ही दिया कि अगर तुम कल ब्लैक जूते पहन कर नहीं आई तो मैं तुम्हें टेस्ट में नहीं बैठने दूंगी।

अपनी अलहढ़ शैतानियों की वजह से नीलम घर पर बार-बार डांट खाती रहती। वो थी तो छोटी सी लेकिन अपने सम्मान की बात हो तो वो किसी से लड़ने से भी नहीं कतराती थी। स्कूल से आकर जब उसने अपनी मम्मी को जूतों के बारे में बताया और बाज़ार चल के नए काले जूते लाने की बात कही तो उसकी मम्मी ने कहा कि, “अभी तो नहीं बेटा बाद में चलना।” इतनी ही बात पर वो भड़क गयी और ये कहती हुई बाहर निकल आई कि “हम तो अपने जूते अपने आप ही ले आएंगे।”

मेरे पास आकर उसने कहा कि, “क्या तू मेरे साथ जूते लेने चलेगी?” मैं मान गयी और वो जाकर अपनी मम्मी से जूते लाने के लिए सौ रुपये लेकर आ। फिर नीलम मुझे अपने साथ बाज़ार ले चली। रास्ते में देखा कि एक जगह पर आलू-पूरी का भंडारा हो रहा था। हम दोनों झट से गए और आलू-पूरी ले कर खाते-खाते बाज़ार पहुंच गए।

वैसे तो हम बाज़ार जूते खरीदने गए थे लेकिन वहां पर शायद ही कोई ऐसी चीज़ थी जिसे पाने के लिए हमारा मन लालायित न हुआ हो। हम जूतों की एक दुकान पर जाते एक टक जूतों को देखते और ये कहते हुए आगे बढ़ जाते कि चल अगली दुकान से देखेंगे। दरअसल हमें दुकानदार से बात करने में झिझक महसूस हो रही थी, क्योंकि इससे पहले हमने अकेले कुछ नहीं खरीदा था ना!

आखिरकार हम एक दुकान पर रुक ही गए और दुकानदार से काले जूते दिखाने के किए कहने लगे। जब नीलम अपनी पैंट की जेब में पैसे ढूंढने लगी तो उसे पैसे नहीं मिले। वो मुझे कहने लगी कि, “यार लगता है पैसे तो भंडारा लेते समय खो गए।” बस उसने इतना ही कहा था कि वो दुकानदार हमारी तरफ ऐसे देखने लगा जैसे हमने वो जूते उससे फ्री में मांग लिए हों। जूते वहीं छोड़ कर हम वहां से चले आए।

हम दोनो घर आते-आते एक अजीब सी दुविधा में थे कि हम अपनी बेवकूफी पर हँसे या पैसे खो जाने की वजह से दुखी हों। घर जाकर जब नीलम ने अपनी माँ को इस बारे में बताया तो उन्होंने तो जैसे पूरा आसमान ही सिर पर उठा लिया। हमें तो बस इस बात की टेंशन खाये जा रही थी कल क्या होगा? कुछ देर बाद जब मैं उसके घर गयी तो देखा वो खुशी के मारे चहक रही थी। उसे देख कर मैं सोचने लगी कि यार मैं तो इसके जूतों की टेंशन के मारे मरी जा रही हूँ और ये यहां मज़े से हँस रही है।

मैं उससे कुछ बोलती इससे पहले ही वो जाकर ले आई अपने नए नवेले काले चमकदार जूते। मैं तो उन जूतों को देख कर दंग हो गयी। फिर वो मुझे अपने जूतों की कहानी बताने लगी। दरअसल हुआ क्या कि जब उसके पापा घर आए तो उसने दो आंसू बहाये और पापा को अपनी टेंशन के बारे में बताया, बस उसके पापा और भाई दोनों बाहर चले गए।

थोड़ी देर बाद जब वो दोनों वापस आए तो उनके हाथ में नए चमचमाते काले जूते थे। उनके चेहरे की मुस्कान देख कर वो समझ गयी कि दाल में कुछ काला है! उसने कहा, “पापा आप मेरे लिए नए काले जूते तो ले आए लेकिन मेरे वो पुराने सफ़ेद जूते कहां रह गए?” तभी वो दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे और कहने लगे कि “ये वही सफ़ेद जूते हैं बस हमने इन्हें काला पॉलिश करवा लिया है!” अभी तक तो मैं उसकी बातें सिरियस होकर सुन रही थी लेकिन पॉलिश वाली बात सुनते ही मैं भी हँसने लगी। तभी हम दोनों आपस में बातें करने लगे कि हमें ये आइडिया पहले क्यों नहीं आया।

हम स्कूल पंहुचे तो मैडम ने भी सबसे पहले नीलम के जूतों को ही देखा और वो भी हँस पड़ी। परीक्षा तो हमने जैसे-तैसे दे ही दी लेकिन जूतों की कहानी सुना-सुनाकर हमने अपने सभी सहेलियों को हँसने पर मजबूर कर दिया।

जब स्कूल में काले जूते पहनने होते और मैडम उसके जूतों की चेकिंग करती तो उन्हें लगता कि जूते काले हैं और बुधवार-शनिवार को उन्हें वे ही जूते देखने पर सफ़ेद लगते और वे नीलम से कुछ नहीं कह पाती। लगता था जैसे वे जूते उसकी जरूरत के हिसाब से ही रंग बदल लेते थे।

नीलम के जूतों कि चमक तब-तक तो ठीक-ठाक ही थी जब तक उनकी किसी से टक्कर नहीं हुई थी लेकिन अब अलग-अलग चीजों से भिड़-भिड़ कर उसके जूतों की पॉलिश हटने लगी थी और अब काले जूतों के पीछे छुपे सफ़ेद जूते जगह-जगह से झाँकने लगे थे। जब भी कोई उसके जूतों को देखता तो बड़े ताज्जुब से उनके बारे में सोचता कि वे जूते काले हैं या सफ़ेद? अरे उन्हें ये कैसे बताएं कि वे जूते काले या सफ़ेद नहीं बल्कि ब्लैक ऐंड व्हाइट जूते थे।

हद तो तब हो गयी जब एक लड़की ने उनका ये कहते हुए मज़ाक उड़ाया कि क्या आपने अपने जूतों पर पाउडर लगाया है? इतना सुनते ही नीलम का तो जैसे पारा ही चढ़ गया और वो उसे जवाब देते हुए कहने लगी कि ये जूते अंग्रेज़ हैं, इन्हें गोरा दिखने के लिए तुम्हारी तरह पाउडर लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। ऐसे कई और किस्से हुए उन जूतों के साथ जो शायद अब याद भी नहीं।