नौ बच्चों की मां / कृष्णकांत / भाग 3

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<< पिछला पृष्ठ पृष्ठ सारणी अगला पृष्ठ

पर अपना हाथ फिराते हुए कहा- जब तक मैं हूं तब तक यह कतई न करना। मैं तुम्हें इस तरह कायरता से मरने नहीं दूंगा। जब तक चला सकती हो चलाओ, जब न चल पाये तो बताना। मुझ पर भरोसा रखो। ननका खाना तैयार करके चली गयी।

एक दिन ननका बहुत उदास थी। वह जुगनू के बारे में सोचती रही और अचानक लगा कि कलेजा फट पड़ेगा- वह ऐसा निष्ठुर हो गया? मेरा न सही, अपने पैदा किये नौ बच्चों का तो ख्याल किया होता! वह खूब जी भर रोई फिर उठकर चल दी पंडिताइन के पास कि कुछ जी हाल कहेगी उनसे, और अगर मन-मुंह देखा तो थोड़ा सा अनाज मांग लेगी। आज घर में बनाने को एक दाना नहीं है।

वह पंडिताइन के दरवाजे पर पहुंची तो देखा कि घर की दालान से कपड़े ठीक करती-घबराई हुई माया निकल रही है, उसके पीछे रमाशंकर। उसके तो जैसे प्राण ही सूख गये- तो क्या मेरी बच्ची आ गयी इस शैतान के चंगुल में? उसने ननका से पूछा- कहां थीं? वह कांप रही थी। चुपचाप मां को देखती रही, मगर बोली कुछ नहीं। ननका ने फिर पूछा- क्या कर रही थीं दालान में? वह फिर कुछ नहीं बोली। रमाशंकर ने ननका को देखा तो दूसरी ओर चला गया। उसने माया का बाल पकड़ा और घसीटते हुए घर तक लायी और ताबड़तोड़ उसकी पिटाई करने लगी- कुतिया....रामजादी अब यह दिन भी दिखाएगी तू? जबसे इस घर में आयी हूं, तब से वह सुअर की औलाद मेरे पीछे पड़ा था। मुझको छू भी न सका लेकिन तू.... भेडि़ए हैं ये सब। नोच कर खा जाएंगे तुझे....।

ननका ने उसे बिस्तर पर धकेल दिया और दूसरी कोठरी में जा कर खूब फूट-फूट कर रोयी।

इतनी असहाय वह कभी नहीं थी। आज यह पहली बार है जब उसने पंडिताइन के पास जाकर अपनी व्यथा नहीं कही। क्या पंडिताइन यह स्वीकार कर पाएंगी कि उनके लड़के ने ही उसे लूट लिया? क्या जुगनू इस बारे में सुनेगा तो अपनी बच्ची की लुटती अस्मत के बारे व्यथित होगा? वह तो खुद अपनी बीवी बच्चों को छोड़ कर रंगरलियां मना रहा है? ननका अब क्या करे, कहां जाये?

इतने में छोटी लड़की आकर पूछने लगी- अम्मा खाना क्या बनेगा?

वह पंडिताइन के यहां इसीलिए तो जा रही थी। आजघर में खाने को कुछ नहीं है। वह गुस्से में चीखी- कुछ नहीं बनेगा। जहर खा लो और मर जाओ सब के सब...हट जाओ यहां से३ण्बिटिया ने रुआंसी हो कर ननका की ओर देखा और चुपचाप चली गयी। उसे जाते देख ननका को लगा कि उसका कलेजा दो टुकड़े हो जाएगा। क्या अब यह दिन आ गया है कि वह अपने बच्चों को भूख से तड़पता हुआ देखेगी?

नहीं...मैं यह नहीं देख सकती....मैं......।

वह उठी और पीछे के दरवाजे से निकलकर लंगड़ा ताल की ओर चल दी। यह गांव के बाहर बहुत ही गहरा ताल है। बताया जाता है कि उसमे लगभग हर साल एक न एक आदमी किसी बहाने डूब जाता है। दरवाजा खुला तो काका को भनक लग गयी। ननका माया को पकड़कर ला रही थी तो काका ने देखा था। वह सारा माजरा समझ गया था। ननका बेतहाशा चली जा रही थी। वह तालाब के करीब पहुंचकर जरा देर के लिए ठिठकी और मुड़कर पीछे देखा तो काका खड़े थे।

अरे यह क्या? अपनी मर्जी से मौत भी नहीं मिलेगी? उसने हड़बड़ी में तालाब की ओर छलांग लगा दी। लेकिन काका ने झपटकर उसे पकड़ा और बाल हाथ में आ गया। वह ताल के कगार पर ही गिर गयी। झटके से उठकर खड़ी हुई और चिल्लायी- छोड़ दो मुझे....छोड़ दो काका.....छोडो मुझे....काका.......

काका ने उसे ताल की कगार से खींच कर दूर जमीन पर पटक दिया- पागल हो गयी हो? तुम्हारे बाल-बच्चे हैं। क्या होगा उनका?

-जहन्नुम में जायें बाल-बच्चे.....जहन्नुम़ में जाये मरद.... हमें अब किसी की जरूरत नहीं है। हमसे अब और सहा नहीं जाता।

काका ने जोर से से डांटा- मैंनें कहा था न कि जब तक मैं हूं, तुम्हें मरने नहीं दूंगा। दुनिया में ऐसी भी कोई परेशानी नहीं जिसका कोई समाधान न हो। चलो, वापस चलो।

- मैं नहीं जाऊंगी अब।

- चलो३ण् तुम्हें घर चलना होगा।

- मैं सिर्फ एक शर्त पर चल सकती हूं।

- क्या?

- अब मैं उस घर में नहीं जाऊंगी। वहां अपने बच्चों को एक-एक दाना अन्न के लिए तरसते देखने और घुट़-घुट कर मरने के अलावा के कुछ नहीं है। मैं जिसके लिए उस घर में गयी थी, वह मेरा नहीं रहा। अब वहां मेरा कोई सहारा नहीं। मेरी फूल-सी बच्चियों को ये गांव वाले मेरी ही आंखों के सामने नोच-नोच खाएंगे और मैं कुछ कह भी नहीं पाऊंगी, जैसे आज कुछ नहीं कह पायी। आज बड़ी लड़की है कल छोटी का भी यही होगा। अगर मेरा मरद खुद छिछोरा न होता, तो यह सब कभी न होता? मैं कुछ बोलूं तो किसके दम पर बोलूं? मैं उस हरामी का मुंह नोच लेती, लेकिन किसके बल पर करूं? मैं कितनी असहाय हूं?

- तुम असहाय नहीं हो, चलो घर। मैं अभी उसका हिसाब किये देता हूं। मैं इतना कर सकता हूं कि आज से तुम्हारी बच्चियों को छूने की कोई हिम्मत न कर पाये। तुम चलो घर, मैं उसे सबक सिखाता हूं। आज के बाद इस गांव में कोई तुम्हारी ओर आंख उठाकर नहीं देखेगा।

- फिर से जेल जाओगे? नहीं, यह नहीं होगा। अपनी परेशानी की सजा तुम्हें नहीं दे सकती। और फिर इन पाखंडियों के बीच क्या करुंगी जाकर, जो अपनी ही बच्चयों तक का बलात्कार कर सकते हैं? जो अपने नौ बच्चों सहित अपनी पत्नी को छोड़ सकता है किसी के लिए, क्या करूंगी उसके पास जाकर, मैं अब उसका मुंह नहीं देखना चाहती। इन गांव वालों का भी नहीं।

- चलो मेरे साथ। आज के बाद जिसने तुम्हारी ओर बुरी निगाह की, उसे मैं कच्चा ही चबा जाऊंगा। हम पर भरोसा करो३चलो वापस३।

- तुम गांव वालों से लड़ सकते हो, लेकिन मैं तो अपने से हारी हूं। उसका क्या करूं? वह मेरा मरद है, उसके लिए तो नहीं कह सकती कि उसे भी चबा जाओ। वह अपना नहीं रहा, फिर भी अपना है। उसके लिए मौत नहीं मांग सकती, पर त्याग तो सकती हूं।

- तो क्या करोगी?

- जो भी करूंगी, अब इस गांव में नहीं रहूंगी। या तो मरूंगी या कहीं और जाऊंगी।

- इतनी अधीर क्यों होती हो, मैं तुम्हारे साथ हूं।

- मगर यहां नहीं, मैं घर तो क्या, यह गांव भी छोड़ रही हूं। अगर तुम्हें मेरी फिक्र है तो चलो मेरे साथ।

- और बच्चे।

- मैं नहीं जानती। जिसके हैं वो पाले या छोड़ दे गांव वालों को नोच कर खाने के लिए।

- इसमें बच्चों की कोई गलती नहीं है। उन्हें साथ ले लो।

- इतनी बड़ी फौज कहां लेकर जाऊंगी।

- जहां हम रहेंगे, वहीं वे भी रहेंगे।

- फूटी कौड़ी नहीं है पास। नौ-नौ बच्चों को किसका मांस खिलाएंगे? छोड़ो और चलो। मुझे अब किसी का कोई मोह नहीं है।

ननका कहते-कहते वह बुरी तरह फफक पड़ी। काका ने ननका का हाथ पकड़ा और गांव सड़क की ओर चलते हुए कहा- चलो, रहने का कोई ठिकाना बना लेंगे, फिर आकर बच्चों को ले जाएंगे।

ननका ने फटी आंखों से आंखों से काका की ओर देखा और काका से लिपट गयी। काका ने उसे परे हटाते हुए कहा- गांव पास ही है, कोई देखेगा। चलो यहां से।

दोनों सड़क पर पहुंचे तो काका ने कहा- तुम यहां रुको। मैं घर से होकर आता हूं। कुछ पैसे हैं, वह ले आऊं तो कुछ दिन खर्च चल जाएगा।

काका घर आये और अपने पास पड़े हुए रुपये लिये। कुछ सामान बांधकर तैयार किया। माया को बुलाया और उसे सारी बातें बतायीं फिर समझाते हुए बोले- मेरे घर की चाबी ले लो। वहां जितना भी अनाज है, उठा ले जाओ। करीब पंद्रह दिन तक चल जाएगा। भाई बहनों को सम्हालना और घर से बाहर कहीं मत जाना। तुम्हारे एक गलत कदम से तुम्हारी मां मरना चाहती है। बोलो, क्या यह ठीक है?

माया फूट-फूट कर रोने लगी- मां से कह दो हमें माफ कर दें। हमसे गलती हो गयी। मैं अपनी मरजी से नहीं गयी थी। उसने हमसे कहा था कि पंडिताइन बुला रही हैं। हम गये तो मुझे दालान में खींच लिया और जबरदस्ती की।

काका उसे समझाते हुए बोले- जो हुआ उसे भूल जाओ, लेकिन अब कोई भी ऐसा काम तुम्हें नहीं करना है जो तुम्हारी मां को पसंद न हो।

उसने हां में सर हिलाया। काका ने उससे यह आश्वासन लिया कि उनके लौटने तक वह सभी बच्चों को सम्हालेगी और दरवाजा बंद कर उसे चाबी देकर चले गये।

शाम हुई। जुगनू घर लौटा तो सरिता उसके साथ थी। माया खाना पका रही थी। जुगनू ने दबी-सी आवाज में पूछा- तुम्हारी अम्मा कहां हैं?

उसने न में सिर हिलातें हुए कहा- पता नहीं और आंखों में भर आये आंसुओं को चूल्हे के धुएं में छुपा लिया। जुगनू ने घर के अंदर बाहर सभी जगह ननका को ढूंढा, वह कहीं नहीं मिली। अगले दिन भी नहीं। काफी छानबीन हुई और उसके निष्कर्ष निकाला गया कि काका भी नहीं दिख रहे और ननका भी। दोनों कहीं भाग गये। गांव के एक बुजुर्ग ने इसकी पुष्टि की कि वह खेत में घास छील रहे थे तभी ननका को काका के साथ सड़क की ओर जाते देखा था।

गांव भर में हल्ला मच गया- ननका-काका के साथ भाग गयी.... बताओ३नौ बच्चों की मां थी, उसको बुढ़ापे में में ही यह सब करना था? छिः छिः.... हे भगवान! दो के दोनों मरद-मेहरी एक जैसे ठहरे..... अरे जब मरद ही शोहदा ठहरा तो मेहरी भी वैसी ही हो गयी और अब बच्चे....

माया अब घर से नहीं निकलती और हमेशा सोचा करती है कि वह दिन कब आएगा जब काका हम सब को लेने आएंगे। वह रोज ही छुप-छुप कर रोती है और यह बात किसी से नहीं कहती।

एक दिन वह पीछे के दरवाजे पर उदास खड़ी थी तो देखा दूर खेतों की तरफ से काका चले आ रहे थे।

<< पिछला पृष्ठ पृष्ठ सारणी अगला पृष्ठ