पहचान / भाग 10 / अनवर सुहैल
किस्सा कोताह ये कि जुमा की नमाज पढ़कर जब खालू घर आए तो वह अकेले न थे। उनके साथ एक युवक था।
खालू ने उन्हें पहले कमरे में प्लास्टिक की कुर्सी पर बिठाया। फिर पसीना पोंछते हुए अंदर आवाज लगार्इ - 'पीछे वाला कूलर बंद है का?'
खाला अंदर से बड़बड़ार्इ - 'बाहर आग बरसन लाग है त मुआ कूलर केतना ठंडक करी?'
वाकर्इ उस बरस गर्मी बहुत पड़ी थी।
फिर खालू ने यूनुस को आवाज देकर घड़े से दो गिलास ठंडा पानी मँगवाया।
यूनुस पानी लेकर आया। देखा कि आगंतुक एक सुदर्शन युवक है। खालू ने उसे इस तरह घूरते देख डाँटा - 'सलाम करो।'
यूनुस ने सलाम किया।
खालू उस व्यक्ति से बतियाने लगे - 'साढ़ू का बेटा है। यहीं 'एमसीए' में पेलोडर चलाता है। आजकल मुसलमानों का हुनर ही तो सहारा है। नौकरी में तो 'मीम' की कटार्इ तो आप देखते ही हैं।'
यहाँ खालू का 'मीम' से तात्पर्य अरबी के 'मीम' वर्ण से था। मीम माने हिंदी का 'म'। दूसरे शब्दों में मीम माने मुसलमान।
आगंतुक के माथे पर बल पड़ गए - 'गल्त बात है भार्इजान, हकीकतन ऐसा नहीं है। मियाँ लोग 'एजूकेशन' पर कहाँ ध्यान देते हैं। अपने पास घर हो न हो, कपड़े-लत्ते हों न हों, बच्चों की किताब-कापी हो न हो लेकिन थोड़ी कमार्इ आर्इ नहीं कि नवाब बन जाएँगे। गोश्त-पुलाव उड़ाएँगे। बच्चे धड़ाधड़ पैदा किए जाएँगे। अल्ला मियाँ हैं ही रिज्क देने के लिए।'
उन साहब ने जैसे यूनुस के मन की बात की हो।
यही तो सच है। खाली-पीली अपने हिंदू भाइयों को कोसना कहाँ तक उचित है। इंसान को पहले अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए। कहाँ कमी है? ये नहीं कि माइक उठाया और लगे कोसने गैरों को।
तब तक खाला भी कमरे में आ गर्इं।
खालू ने आगंतुक से खाला का परिचय, जमाल साहब के नाम से कराया। बताया उनके नए साहब हैं। नागपुर के रहने वाले।
खाला ने उन्हें सलाम किया।
खाला वहीं तख्त पर बैठ कर जमाल साहब का जायजा लेने लगीं। वह बत्तीस-तैंतीस साल के जवान थे। साँवली रंगत और चेहरे पर मोटी मूँछ। कुछ-कुछ संजय दत्त की तरह की हेयर स्टइल। जमाल साहब से खाला ने आदतन पूछा-पाछी शुरू की। पता चला कि उनके वालिद वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की किसी खदान में कार्मिक प्रबंधक हैं। जमाल साहब की शादी नहीं हुर्इ है, इसीलिए उन्होंने क्वाटर एलॉट नहीं करवाया था। वह आफीसर्स गेस्ट रूम में रहते हैं।
गर्मी के मारे जैसे जान निकली जा रही हो।
खाला अपने आँचल से पंखे का काम लेने लगीं, जिससे उनके पेट का कुछ हिस्सा और छाती दिखने लगी।
जमाल साहब ने जो समझा हो, लेकिन यूनुस को यह सब बहुत बुरा लगा।
खाला जमाल साहब से बेतकल्लुफ हुर्इं और उन्हें खाने का न्योता दिया।
फिर क्या था।
वहीं तख्त पर दस्तरख्वान बिछाया गया।
किचन में सनूबर ने जो सलाद के लिए प्याज काटा था, उसे मेहमान के लिए पेश किया जाने लगा। खालू और जमाल साहब ने साथ-साथ खाना खाया।
बीच में एक बार सालन घटा तो सनूबर को आवाज देकर खालू ने बुलाया था।
सनूबर एक कटोरी सालन पहुँचा आर्इ थी।
सनूबर का सालन पहुँचाना यूनुस को अच्छा नहीं लगा।
खाला ने सनूबर का परिचय जमाल साहब से कराया - 'बड़की बिटिया है। नवमी में पढ़ती है।'
सनूबर ने जमाल साहब को सलाम किया तो खाला ने टोका - 'गधी, खाते समय सलाम नहीं करते न!'
सनूबर झेंप कर भाग गर्इ।