पहचान / भाग 1 / अनवर सुहैल
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यूनुस एक बार फिर भाग रहा है।
ठीक इसी तरह उसका भार्इ सलीम भी भागा करता था।
लेकिन क्या भागना ही उसकी समस्या का समाधान है?
यूनुस ने अपना सिर झटक दिया।
विचारों के युद्ध से बचने के लिए वह यही तरीका अपनाता।
इस वक्त वह सिंगरौली स्टेशन के प्लेटफार्म पर खड़ा है।
सिंगरौली रेलवे स्टेशन।
अभी रात के ग्यारह बजे हैं।
कटनी-चौपन पैसेंजर रात बारह के बाद ही आएगी।
प्लेटफार्म कब्रिस्तान बना हुआ है। ठंड की चादर ओढ़ कर सोया कब्रिस्तान। धुँधली रोशनी में कुहरे की हिलती चादर। लोग चलते तो यूँ लगता जैसे कब्रों का रखवाला आकर दौरा कर जाता हो। जहाँ ऐसा लगता है कि कब्रों से उठकर आत्माएँ सफेद, काले कपड़े से बदन लपेटे गश्त कर रही हों।
आजकल भीड़ की कोर्इ वजह नहीं है।
कटनी-चोपन पैसेंजर की यही तो पहचान है कि बोगियों और मुसाफिरों की संख्या समान होती है।
यूनुस को भीड़ की परवाह भी नहीं।
सफर में सामान की हिफाजत का भरोसा हो जाए तो वह बैठने की जगह भी न माँगे।
उसके पास सामान भी क्या है? एक एअर-बैग ही तो है।
उसे कहीं भी टिका वह घूम-फिर सकता है।
दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड...
दिखार्इ देने वाला हर आदमी सिकुड़ा-सिमटा हुआ। बदन पर ढेरों कपड़े लादे। फिर भी ठंड से कँपकँपाए।
इधर ठंड कुछ अधिक पड़ती भी है। बघेल-खंड का इलाका है यह! दाँतों को कड़कड़ा देने वाली ठंड के लिए मशहूर सिंगरौली का रेलवे स्टेशन! पहाड़ी इलाका, कोयला खदान और ताप-विद्युत इकाइयों के कारण मानो जान बच जाती है, वरना ऐसी ठंड पड़ती कि अच्छे-खासे लोग टें बोल जाएँ।
स्टेशन-मास्टर के कमरे के बगल में प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी शयनयान के आरक्षित यात्रियों के लिए प्रतीक्षालय है। दरवाजे में लगे काँच पर धुंध छा गर्इ थी, इसलिए यूनुस ने भिड़काए दरवाजे़ को ठेलकर भीतर झाँका।
वहाँ एक अधेड़ आदमी और एक स्त्री बैठे हुए थे। एनटीपीसी या फिर कॉलरी का साहब हो। वैसे भी किसी ऐरे-गैरे के लिए प्रतीक्षालय नहीं खोला जाता।
प्रतीक्षालय के बगल में रनिंग-स्टाफ रूम था। फिर उसके बाद आरपीएफ के जवानों के लिए कमरा था।
उस कमरे के बाहर रात्रि-पाली के कर्मचारियों ने सिगड़ी में आग जला रखी थी। चार आदमी आग ताप रहे थे। उनके बीच थोड़ी सी जगह बची थी, जहाँ एक कुत्ता बदन सेंक रहा था। यूनुस कुत्ते के पास जा कर खड़ा हो गया। सिगड़ी की आँच की सिंकार्इ से उसे कुछ राहत मिली।
रेलवे के कर्मचारी अप-डाउन, एर्इएन, सायरन, डिरेल, सिग्नल आदि शब्दों का उच्चारण कर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे।
मफलर से आँख छोड़ पूरा चेहरा लपेटे एक कर्मचारी बोला - 'भार्इजान, आज शाम तबीयत कुछ डाउन लग रही थी। कड़क चाय बनवाकर पी लेकिन पिकअप न बना। ऐसे सिग्नल मिले कि लगा इस बार पायलट डिरेल हुआ, तो फिर उठाना मुश्किल होगा। तभी दिमाग में सायरन बजा और तुरंत भट्टी पहुँचे। वहाँ फोर-डाउन वाला मिसरवा गार्ड मिल गया। दोनों ने मिलकर मूड बनाया। तब जाकर जान बची।'
यूनुस थोड़ी देर उनकी बात से लुत्फ उठाता रहा, फिर स्टेशन से बाहर निकल आया।
बाहर एक बड़ा सा पार्क है। पार्क के दोनों ओर दो सड़कें निकली हैं। दोनों सड़कें आगे जाकर मेन रोड से मिलती हैं।
पार्क के सामने रोड के किनारे-किनारे, एक लाइन से कर्इ टैक्सियाँ और एक मिनी-बस खड़ी थी। इन टैक्सियों या मिनी बसों के चालक अमूमन उनके मालिक होते हैं।
एक पेड़ का मोटा सा सूखा तना सुलगाए वे आग ताप रहे थे।
एक खलासीनुमा चेला चिलम बना रहा था।
यूनुस वहाँ रुका नहीं।
वह बार्इं ओर की ढाल-दार सड़क पर चल पड़ा। मेन रोड के उस पार तीन-चार होटल हैं।
ये होटल चौबीस घंटे सर्विस देते हैं। उन होटलों में लालटेन जल रही थी।
उसने होटल का जायजा लिया। पहला छोड़ दूसरे होटल में एक महिला भट्टी के पास खड़ी चाय बना रही थी।
यूनुस उसी होटल में घुसा।
सीधे भट्टी के पास पहुँच गया। उसने कंधे पर टँगा एअर-बैग उतार कर एक कुर्सी पर रख दिया। फिर हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए आग तापने लगा।
महिला ने उसे घूरकर देखा।
यूनुस को उसका घूरना अच्छा लगा।
वह तीस-बत्तीस साल की महिला थी। भट्टी की लाल आँच और लालटेन की पीली रोशनी के मिले-जुले प्रभाव में उसका चेहरा भला लग रहा था। जैसे ताँबर्इ-सुनहरी आभा लिए कोर्इ कांस्य-कृति।
महिला ने चाय केतली में ढालते हुए पूछा - 'क्या चाहिए?'
यूनुस ने मजा लेना चाहा - 'यहाँ क्या-क्या मिलता है?'
महिला ने उसे घूरकर देखा, फिर जाने क्या सोचकर हँस दी।
होटल के तीन हिस्से थे। आधे हिस्से में ग्राहक के बैठने की जगह। आधे हिस्से को दो भागों में टाट के पर्दे से अलग किया गया था। सामने का भाग रसोर्इ के रूप में था और बाकी आधा हिस्से में लगता है, उसकी आरामगाह थी।
आरामगाह से किसी वृद्ध के खाँसने की आवाज आर्इ, साथ ही लरजती आवाज में एक प्रश्न - 'पसिन्जर आ गर्इ का?'
महिला ने जवाब दिया - 'अभी नहीं।'
यूनुस को टाइम पास करना था, सो उसने आर्डर दिया - 'कड़क चाय, चीनी-पत्ती तेज रहेगी।'
महिला उसकी मंशा समझ गर्इ।
उसने बर्तन में स्पेशल चाय के लिए दूध डाला और फिर ढेर सारी पत्ती डालकर चाय खूब खौला दी।
चाय उसने दो गिलासों में ढाली।
एक चाय यूनुस को दी और दूसरी स्वयं पीने लगी।
यूनुस ने महसूस किया कि ठंड इतनी ज्यादा है कि चाय गिलास में ज्यादा देर गरम न रह पार्इ।
यूनुस ने चुस्की लेते हुए चाय का आनंद उठाया।
उसे अपने 'डाक्टर-उस्ताद' की बात याद हो आर्इ...
डोजर आपरेटर शमशेर सिंह उर्फ 'डाक्टर-उस्ताद' को ठंड नहीं लगती थी। वह कहा करता कि ठंड का इलाज आग या गर्म कपड़े नहीं बल्कि शराब, शबाब और कबाब है।
यूनुस ने शराब तो कभी छुर्इ नहीं थी, किंतु शबाब या कबाब से उसे परहेज न था।
शबाब के लिए तो वैसे भी सिंगरौली क्षेत्र बदनाम है।
औद्योगिक विकास की आँधी के कारण देश भर के उद्योगपति-व्यवसायी, टेक्नोक्रेट और कुशल-अकुशल श्रमिक-शक्ति सिंगरौली क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं। पहले तो लोग बिना परिवार के यहाँ आते हैं। बिना रिहाइशी इंतजाम के ये लोग हर तरह की जरूरत की वैकल्पिक व्यवस्था के अड्डे तलाश कर लेते हैं। इसीलिए यहाँ ऐसे कर्इ गोपनीय अड्डे हैं जहाँ जिस्म की भूख मिटार्इ जाती है।
ऐसे ही एक अड्डे से प्राप्त अनुभव को यूनुस ने याद किया।
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