पहला दृश्य / अंक-4 / संग्राम / प्रेमचंद

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स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश।

इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है।

थानेदार : बेशक !

इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी कर लेनी है।

थानेदार : गांव वाले तो सबलसिंह ही के खिलाफ होंगे।

इंस्पेक्टर : आजकल बड़े-से-बड़े आदमी को जब चाहें गांस लें। कोई कितना ही मुआफिज हो, अफसरों के यहां उसकी कितनी ही रसाई हो, इतना कह दीजिए कि हुजूर, यह तो सुराज का हामी है, बस सारे हुक्काम उसके जानी दुश्मन हो जाते हैं। फिर वह गरी। अपनी कितनी ही सगाई दिया करे, अपनी वफादारी के कितने ही सबूत पेश करता फिरे, कोई उसकी नहीं सुनता। सबलसिंह की इज्जत हुक्काम की नजरों में कम नहीं थी। उनके साथ दावतें खाते थे, घुड़दौड़ में शरीक होते थे, हर एक जलसे में शरीक किए जाते थे, पर मेरे एक फिकरे ने हजरत का सारा रंग फीका कर दिया । साहब ने फौरन हुक्म दिया कि जाकर उसकी तलाशी लो और कोई सबूत दस्तया। हो तो गिरफ्तारी का वारंट ले जाओ !

थानेदार : आपने क्या फिकरा जमाया था। ?

इंस्पेक्टर : अजी कुछ नहीं, महज इतना कहा था। कि आजकल यहां सुराज की बड़ी धूम है। ठाकुर सबलसिंह पंचायतें कायम कर रहे हैं। इतना सुनना था। कि साहब का चेहरा सुर्ख हो गया। बोले: दगाबाज आदमी है। मिलकर वार करना चाहता है, फौरन उसके खिलाफ सबूत पैदा करो। इसके कब्ल मैंने कहा था।, हुजूर, यह बड़ा जिनाकार आदमी है, अपने एक असामी की औरत को निकाल लाया है। इस पर सिर्फ मुस्कराए, तीवरों पर जरा भी मैल नहीं आयी। तब मैंने यह चाल चली। यह लो, गांव के मुखिया आ गए, जरा रोब जमा दूं।

मंगई, हरदास, फत्तू आदि का प्रवेश। सलोनी भी पीछे-पीछे आती है और अलग खड़ी हो जाती है।

इंस्पेक्टर : आइए शेख जी, कहिए खैरियत तो है ?

फत्तू : (मन में) सबलसिंह के नेक और दयावान होने में कोई संदेह नहीं कभी हमारे उसपर सख्ती नहीं की। हमेशा रिआयत ही करते रहे, पर आंख का लगना बुरा होता है। पुलिस वाले न जाने उन्हें किस-किस तरह सताएंगी। कहीं जेहल न भिजवा देंब राजेश्वरी को वह जबरदस्ती थोड़े ही ले गए। वह तो अपने मन से गई। मैंने चेतनदास बाबा को नाहक इस बुरे काम में मदद दी। किसी तरह सबलसिंह को बचाना चाहिए । (प्रकट) सब अल्लाह का करम है।

इंस्पेक्टर : तुम्हारे जमींदार साहब तो खूब रंग लाये। कहां तो वह पारसाई और कहां यह हरकत।

फत्तू : हुजूर, हमको तो कुछ मालूम नहीं।

इंस्पेक्टर : तुम्हारे बचाने से अब वह नहीं बच सकते। अब तो आ गए शेर के पंजे में। अपना बयान दीजिए। यहां गांव में पंचायत किसने कायम की ?

फत्तू : हुजूर, गांव के लोगों ने मिलकर कायम की, जिसमें छोटी-छोटी बातों के पीछे अदालत की ठोकरें न खानी पड़ें।

इंस्पेक्टर : सबलसिंह ने यह कहा कि अदालतों में जाना गुनाह है ?

फत्तू : हुजूर, उन्होंने ऐसी बात तो नहीं कही, हां पंचायत के फायदे बताये थे।

इंस्पेक्टर : उन्होंने तुम लोगों को बेगार बंद करने की ताकीद नहीं की ? सच बोलना, खुदा तुम्हारे सामने है।

फत्तू : (बगलें झांकते हुए) हुजूर, उन्होंने यह तो नहीं कहा । हां, यह जरूर कहा कि जो चीज दो उसका मुनासिब दाम लो।

इंस्पेक्टर : वह एक ही बात हुई अच्छा, उस गांव में शराब की दुकान थी वह किसने बंद करायी ?

फत्तू : हुजूर, ठीकेदार ने आप ही बंद कर दी, उसकी बिक्री न होती थी।

इंस्पेक्टर : सबलसिंह ने सबसे यह नहीं कहा कि जो उस दुकान पर जाये उसे पंचायत में सजा मिलनी चाहिए ।

फत्तू : (मन में) इसको जरा-जरा-सी बातों की खबर है। (प्रकट) हुजूर, मुझे याद नहीं।

इंस्पेक्टर : शेखजी, तुम कन्नी काट रहे हो, इसका नतीजा अच्छा नहीं है। दारोगा जी ने तुम्हारा जो बयान लिखा है उस पर चुपके से दस्तखत कर दो, वरना जमींदार तो न बचेंगे, तुम अलबत्ता गेहूँ के साथ घुन की तरह पिस जाओगे।

फत्तू : हुजूर का अखतियार है, जो चाहें करें, पर मैं तो वही कहूँगा जो जानता हूँ।

इंस्पेक्टर : तुम्हारा क्या नाम है ?

मंगई : (सामने आकर) मंगई।

इंस्पेक्टर : जो पूछा जाये उसका साफ-साफ जवाब देना । इधर-उधर किया तो तुम जानोगे। पुलिस का मारा पानी नहीं मांगता। यहां गांव में पंचायत किसने कायम की ?

मंगई : (मन में) मैं तो जो यह चाहेंगे वही कहूँगा। पीछे देखी जाएगी। गालियां देने लगें या पिटवाने ही लगें तो इनका क्या बना लूंगा? सबलसिंह तो मुझे बचा न देंगे। (प्रकट) ठाकुर सबलसिंह ने।

इंस्पेक्टर : उन्होंने तुम लोगों से कहा था न कि सरकारी अदालत में जाना पाप है। जो सरकारी अदालत में जाये उसका हुक्का-पानी बंद कर दो।

मंगई : (मन में) यह तो नहीं कहा था। खाली अदालतों के खर्च से बचने के लिए पंचायत खोलने की ताकीद की थी। पर ऐसा कह दूं तो अभी यह जामे से बाहर हो जाए। (प्रकट) हां हुजूर, कहा था, बात सच्ची कहूँगा। जमींदार आकबत में थोड़े ही साथ देंगे।

इंस्पेक्टर : सबलसिंह ने यह नहीं कहा था कि किसी हाकिम को बेगार मत दो ?

मंगई : (मन में) उन्होंने तो इतना ही कहा था कि मुनासिब दाम लेकर दो। (प्रकट) हां हुजूर, कहा था, कहा था।सच्ची बात कहने में क्या डर ?

इंस्पेक्टर : शराब और गांजे की दुकान तोड़वाने की तहरीर उनकी तरफ से हुई थी न ?

मंगई : बराबर हुई थी। जो शराब गांजा पिए उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता था।

इंस्पेक्टर : अच्छा, अपने बयान पर अंगूठे का निशान दो। तुम्हारा क्या नाम है जी ? इधर आओ।

हरदास : (सामने आकर) हरदास।

इंस्पेक्टर : सच्चा बयान देना जैसा मंगई ने दिया है, वरना तुम जानोगे।

हरदास : (मन में) सबलसिंह तो अब बचते नहीं, मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं ? यह जो कुछ कहलाना चाहते हैं मैं उससे चार बात ज्यादा ही कहूँगा। यह हाकिम हैं, खुश होकर मुखिया बना दें तो साल में सौ-दो सौ रूपये अनायास ही हाथ लगते रहैं। (प्रकट) हुजूर, जो कुछ जानता हूँ वह रत्ती-रत्ती कह दूंगा।

इंस्पेक्टर : तुम समझदार आदमी मालूम होते हो, अपना नफा-नुकसान समझते हो, यहां पंचायत के बारे में क्या जानते हो ?

हरदास : हुजूर, ठाकुर सबलसिंह ने खुलवायी थी। रोज यही कहा करें कि कोई आदमी सरकारी अदालत में न जाये। सरकार के इसटाम क्यों खरीदो। अपने झगड़े आप चुका लो।फिर न तुम्हें पुलिस का डर रहेगा न सरकार का। एक तरह से तुम अदालतों को छोड़ देने से ही सुराज पा जाओगे। यह भी हुक्म दिया था। कि जो आदमी अदालत जाये उसका हुक्का-पानी बंद कर देना चाहिए ।

इंस्पेक्टर : बयान ऐसा होना चाहिए । अच्छा, सबलसिंह ने बेगार के बारे में तुमसे क्या कहा था। ?

हरदास : हुजूर, वह तो खुल्लमखुल्ला कहते थे कि किसी को बेगार मत दो, चाहे बादशाह ही क्यों न हो, अगर कोई जबरदस्ती करे तो अपना और उसका खून एक कर दो।

इंस्पेक्टर : ठीक है। शराब गांजे की दुकान कैसे बंद हुई ?

हरदास : हुजूर, बंद न होती तो क्या करती, कोई वहां खड़ा नहीं होने पाता था।ठाकुर साहब ने हुक्म दे दिया था। कि जिसे वहां खड़े, बैठे, या खरीदते पाओ उसके मुंह में कालिख लगाकर सिर पर सौ जूते लगाओ।

इंस्पेक्टर : बहुत अच्छा। अंगूठे का निशान कर दो। हम तुमसे बहुत खुश हुए।

सलोनी गाती है:

सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का

इंस्पेक्टर : यह पगली क्या गा रही है ? अरी पगली इधर आ।

सलोनी : (सामने आकर) सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का ?

इंस्पेक्टर : दारोगा जी, इसका बयान भी लिख लीजिए।

सलोनी : हां, लिख लो।ठाकुर सबलसिंह मेरी बहू को घर से भगा ले गए और पोते को जेहल भिजवा दिया ।

इंस्पेक्टर : यह फजूल बातें मैं नहीं पूछता। बता यहां उन्होंने पंचायत खोली है न ?

सलोनी : यह फजूल बातें मैं क्या जानूं ? मुझे पंचायत से क्या लेना-देना है। जहां चार आदमी रहते हैं वहां पंचायत रहती ही है। सनातन से चली आती है, कोई नयी बात है ? इन बातों से पुलिस से क्या मतलब ? तुम्हें तो देखना चाहिए, सरकार के राज में भले आदमियों की आबरू रहती है कि लुटती है। सो तो नहीं, पंचायत और बेगार का रोना ले बैठे। बेगार बंद करने को सभी कहते हैं। गांव के लोगों को आप ही अखरता है। सबलसिंह ने कह दिया तो क्या अंधेर हो गया। शराब, ताड़ी, गांजा, भांग पीने को सभी मना करते हैं। पुरान, भागवत, साधु-संत सभी इसको निखिद्व कहते हैं। सबलसिंह ने कहा- ' तो क्या नयी बात कही ? जो तुम्हारा काम है वह करो, ऊटपटांग बातों में क्यों पड़ते हो ?

इंस्पेक्टर : बुढ़िया शैतान की खाला मालूम होती है।

थानेदार : तो इन गवाहों को अब जाने दूं ?

इंस्पेक्टर : जी नहीं, अभी रिहर्सल तो बाकी है। देखो जी, तुमने मेरे रू-ब-रू जो बयान दिया है वही तुम्हें बड़े साहब के इजलास पर देना होगी। ऐसा न हो, कोई कुछ कहे, कोई कुछ, मुकदमा भी बिगड़ जाये और तुम लोग भी गलतबयानी के इल्जाम में धर लिये जाओ। दारोगाजी शुरू कीजिए। तुम लोग सब साथ-साथ वही बातें कहो जो दारोगाजी की जबान से निकलें।

दारोगा : ठाकुर सबलसिंह कहते थे कि सरकारी अदालतों की जड़ खोद डालो, भूलकर भी वहां न जाओ। सरकार का राज अदालतों पर कायम है । अदालत को तर्क कर देने से राज की बुनियाद हिल जाएगी।

सब-के-सब यही बात दुहराते हैं।

दारोगा : अपने मुआमले पंचायतों में तै कर लो।

सब-के-सब : अपने मुआमले पंचायतों में तै कर लो।

दारोगा : उन्होंने हुक्म दिया था। कि किसी अफसर को बेगार मत दो।

सब-के-सब : उन्होंने हुक्म दिया था। कि किसी अफसर को बेगार मत दो।

दारोगा : बेगार न मिलेगी तो कोई दौरा करने न आएगी। तुम लोग जो चाहना, करना। यह सुराज की दूसरी सीढ़ी है।

सब-के-सब : बेगार न मिलेगी तो कोई दौरा करने न आएगी। यह सुराज की दूसरी सीढ़ी है।

दारोगा : यह और कहो, तुम लोग जो जी चाहे करना।

इंस्पेक्टर : यही जुमला तो जान है।

सब-के-सब : तुम लोग जो जी चाहे करना।

दारोगा : उन्होंने हुक्म दिया था। कि जो नशे की चीजें खरीदे उसका हुक्का-पानी बंद कर दो।

सब-के-सब : उन्होंने हुक्म दिया था। कि जो नशे की चीजें खरीदे उसका हुक्का-पानी बंद कर दो।

दारोगा : अगर इतने पर भी न माने तो उसके घर में आग लगा दो।

सब-के-सब : अगर इतने पर भी न माने तो उसके घर में आग लगा दो।

दारोगा : उसके मुंह में कालिख लगाकर सौ जूते लगाओ

सब-के-सब : उसके मुंह में कालिख लगाकर सौ जूते लगाओ

दारोगा : जो आदमी विलायती कपड़े खरीदे उसे गधे पर सवार कराके गांव-भर में घुमाओ।

सब-के-सब : जो आदमी विलायती कपड़े खरीदे उसे गधे पर सवार कराके गांव-भर में घुमाओ।

दारोगा : जो पंचायत का हुक्म न माने उसे उल्टे लटकाकर पचास बेंत लगाओ

सब-के-सब : जो पंचायत का हुक्म न माने उसे उल्टे लटकाकर पचास बेंत लगाओ।

दारोगा : (इंस्पेक्टर से) इतना तो काफी होगा।

इंस्पेक्टर : इतना उन्हें जहन्नुम भेजने के लिए काफी है। तुम लोग देखो, खबरदार, इसमें एक हर्फ का भी उलटफेर न हो, अच्छा अब चलना चाहिए । (कानिसटिब्लों से) देखो, बकरे हों तो दो पकड़ लो।

सिपाही : बहुत अच्छा हुजूर, दो नहीं चार।

दारोगा : एक पांच सेर घी भी लेते चलो।

सिपाही : अभी लीजिए, सरकार!

दारोगा और इंस्पेक्टर का प्रस्थान। सलोनी गाती है।

सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का।

अब तो मैं पहनूं अतलस का लहंगा

और चबाऊँ पान।

द्वारे बैठ नजारा मारूं।

सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का।

फत्तू : काकी, गाती ही रहेगी ?

सलोनी : जा तुझसे नहीं बोलती। तू भी डर गया।

फत्तू : काकी, इन सभी से कौन लड़ता ? इजलास पर जाकर जो सच्ची बात है, वह कह दूंगा।

मंगई : पुलिस के सामने जमींदार कोई चीज नहीं ।

हरदास : पुलिस के सामने सरकार कोई चीज नहीं ।

सलोनी : सच्चाई के सामने जमींदार-सरकार कोई चीज नहीं ।

मंगई : सच बोलने में निबाह नहीं है।

हरदास : सच्चे की गर्दन सभी जगह मारी जाती है।

सलोनी : अपना धर्म तो नहीं बिगड़ता। तुम कायर हो, तुम्हारा मुंह देखना पाप है। मेरे सामने से हट जाओ।

प्रस्थान।