पहला नशा पहला ख़ुमार / माया का मालकौंस / सुशोभित
सुशोभित
कोई एक जब स्वेटर की बाँह को कंधे पर रखकर उसके साथ वॉल्ट्ज़ नाच करता है तो कोई और खिड़की से यह देख किसी अदृश्य परछाई के साथ नाचने लगती है।
मानो कह रही हो - 'हम साथ ही नाचेंगे, दो खिड़कियों के बीच चाहे जितना फ़ासला हो । मुझको अपना स्वेटर बना लो ना ! '
देह में जैसे ज्वार आया है, ऐसे किनारे टूट जाते हैं। प्यार से भरी देह आकाश बन जाना चाहती है, इतनी ही व्याप्त ।
नहीं तो बादल कैसे हों भीतर, बारिश कैसे हो ?
और समय ज्यों रुक जाता है । चीजें विलंबित लय में थिग जाती हैं। सबकुछ धीरे धीरे घट रहा हो, जैसे नींद में चलती पनचक्कियाँ !
‘मैंने सुन लिया' और 'मुझे चुन लिया' : इन दो आवारा ख़यालों में क्या इतनी शिद्दत होती है जो किसी एक मन के साथ यह सब कर गुज़रे ?
पहला नशा है, ये पहला ख़ुमार ।
मन मिट्टी के घड़े - सा हो गया है । एक असावधान स्पर्श से यों दरक जाएगा कि जोड़े से ना जोड़े।
देह के भीतर ज्वार से दरके हुए मन तक की ये यात्रा प्यार की यायावरी है ।
मैं अकसर सोचता हूँ कि हम इस धरती पर सुख भोगने आए थे या दंड भुगतने? तब शोक में डूबा ईश्वर मुझसे कहता है - 'दोनों के लिए ! अब जाओ, जाकर प्यार करो !"
प्यार मन को सितार बना देता है । और सितार की आत्मा में जितनी कोमलता होता है, उतने ही टूटते हैं उसके तार ।
शायद, हम प्यार करने के लिए नहीं बने थे।
और अगर हम प्यार करने के लिए बने थे, तो हम किसी और चीज़ के लिए यहाँ नहीं हो सकते थे !