पहाड़ पर किश्ती / बावरा बटोही / सुशोभित
सुशोभित
मार्को पोलो जब घूमता-घामता आर्मेनिया पहुंचा तो उसने वहाँ अरग़ैरोन और दारफ़ैज़ शहरों, तातारों की भेड़ों और तराबज़ंद के रास्ते में पड़ने वाली चांदी की खदानों के बारे में बतलाया।
फिर लगे हाथों यह भी दर्ज किया कि अरारात पहाड़ की चोटी पर नूह की किश्ती मौजूद है, लेकिन वो पहाड़ इतना ऊंचा है कि उस पर चढ़कर कौन देखे?
ज़ाहिर है, धरती पर जब सैलाब आया तो नूह की किश्ती को किसी ऐसी जगह पर ही जाना था, जो ज़लज़ले की डूब में ना आवै। तब दुनिया में सबसे ऊंचा पहाड़ अरारात का ही था, लिहाज़ा नूह उसी पर किश्ती ले गए।
मार्को पोलो तो मर-खप गया।
लेकिन सगरमाथा को जीतने वाला आदमी भला अरारात को कैसे बख़्श देता? आख़िरकार पर्वतारोही अरारात के पहाड़ पर चढ़ ही गए, वहाँ नूह की किश्ती तो नहीं मिली, किश्ती के निशान ज़रूर मिले।
ये निशान किश्ती के थे, या किश्ती का तसव्वुर ज़ेहन में लेकर वहाँ पहुंचे जांबाज़ों ने किन्हीं निशानों को ही किश्ती के निशान की तरह देख लिया, ये दूसरा अफ़साना है। लेकिन इतना तो तय है कि अरारात के पहाड़ पर नूह की किश्ती नहीं मिली, जैसे नील आर्मस्ट्रांग को चांद पर चरखा नहीं मिला था।
इसके बावजूद ना वो किश्ती आदमी के तसव्वुर में मरी और ना ही वो चरखा।
जर्मनी का फ़िल्मकार वेर्नर हरज़ोग कोई हज़रत नूह नहीं था, फिर भी उसको जाने क्या सूझी कि साल 1982 में वो एक जहाज़ लेकर पेरू के एक पहाड़ पर चढ़ गया, जहाँ से हरे पानी वाली यूकायाली नदी का मोड़ दरियाफ़्त होता था। इस क़वायद को उसने कैमरा से फ़िल्मा लिया। उस फ़िल्म का नाम है 'फ़िट्ज़काराल्डो।' वो एक देखने वाली चीज़ है, चीन की दीवार की तरह।
लेकिन आज भी आर्मेनिया के येरेवान शहर के किसी भी चौक पर खड़े होकर देखें तो बर्फ़ से लदी चोटियों वाला अरारात का पहाड़ उस पर किसी प्रेतछाया-सा हावी होता मालूम होता है।
इसी से मुतास्सिर होकर रूसी क़िस्सागो वसीली ग्रॉसमैन ने कहा था, हो ना हो, ये पहाड़ धरती से नहीं, आसमान से उगा हुआ है। आसमान से जो पहाड़ उगा है, उसकी चोटी पर रखी किश्ती भी कहीं आसमान में ही तो नहीं? हो ना हो, नूह की किश्ती रात को तारा बनकर टिमटिमाती हो, और हम उसकी शिनाख़्त नहीं कर पाते हों।
अरारात का पहाड़ हमारे भीतर ऐसे ही अजूबे ख़याल जगाता है।
ओसिप मांदेलश्ताम का कहना था कि मैंने अपने भीतर एक छठी इंद्री विकसित कर ली है। इसको मैं अरारात की इंद्री कहूंगा, जो मुझे पहाड़ों की मोहब्बत में गिरफ़्तार कर देती है।
पहाड़ों की चोटियों पर कोई रहता नहीं, और पहाड़ों पर बने शहर माचू पिच्चू की तरह एक ना एक दिन मर ही जाते हैं। सैलाब के ख़त्म होने पर हज़रत नूह भी एक दिन अरारात के पहाड़ से उतरे और दुनिया के कारोबार का नया सिलसिला शुरू हुआ।
तब आप ये भी कह सकते हैं कि अरारात का पहाड़ ख़ुद एक किश्ती की तरह था और किसी किश्ती पर हमेशा के लिए घर कौन बनाता है?