पानी का टैंकर / काजल महतो
कुछ महीनों पहले की बात है। सर्दियों के नवरात्रे चल रहे थे। वातावरण बिल्कुल शांत था। चिडि़यों की चीं-चीं और जगह-जगह से आती मोमबत्ती की खुशबू मन मोह रही थी। सभी नहा-धोकर पूजा-पाठ कर नवरात्रे की शुरूआत कर रहे थे। पता नहीं क्यों पर आज स्कूल जाने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। मन तो सिर्फ़ यही बात दोहरा रहा था कि घर बैठ, पूजा पाठ कर और निकल जा कोई मंदिर घूमने, पर मम्मी ने सुबह ही सख़्त हिदायत दे दी थी कि घर का कोई भी बच्चा व्रत नहीं रखेगा। हर बच्चा स्कूल जाएगा। रही घूमने की बात तो नवरात्रे के नौवें दिन के लिए बचा रहने दो, इसके लिए बाद में सोचा जाएगा।
आखि़र मैं अनमने मन से तैयार होने चल दी। लगभग आधे घंटे बाद, करीब सात बजे मैं पूरी तरह तैयार हो चुकी थी, सिर्फ़ बाल बांधने बाकी थे। कंघी उठाई और चोटी करने लगी। चोटी बनाई ही थी कि अचानक गली में एक औरत के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। देखा तो लाल साड़ी और ब्लाउज में एक औरत, जिसके माथे पर बिंदी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। आंसूओं के कारण काजल और माथे का टीका फैलता जा रहा था। जितना हाथ को वह मुंह पर ‘हाय दैय्या, हाय दैय्या कहते हुए मारती वह और भी ज़्यादा फैल जाता। लोगों ने उसे बिठाया और पानी पिलाकर शांत करने की कोशिश की लेकिन वह औरत लगातार “हाय दैय्या, हाय दैय्या, ये क्या हो गया।” दोहरा रही थी।
एक महिला जो वहां से जा रही थी उसने पूछा, “ऐसा क्या हुआ, जो तुम बार-बार भगवान को दोष दे रही हो! ऐसा क्या कर दिया भगवान ने, ज़रा हमें भी तो बताओ?”
“हाय, टैंकर वाले ने मार दिया। हाय दैय्या टैंकर वाले ने मार दिया उस प्यारी सी बच्ची को! बेचारी छोटी सी बच्ची। सात-आठ साल की थी। मंदिर में दूध चढ़ाकर लौट रही थी। मुझसे कुछ ही दूरी पर थी। उसने सफेद वाली स्कूल की वर्दी पहनी थी। तभी वह टैंकर वाला आ गया। पूरा कुचल दिया उसने उस लड़की को!’ इतना कहते ही वह फिर से सुबकते हुए वही राग अलापने लगी कि ‘हाय दैय्या, ये तूने क्या कर दिया!” लोगों ने पहले तो उसे शांत किया और फिर उससे पूछा कि आखिर यह हादसा कहां पर हुआ है! उसने बताया यहीं जी और एच ब्लाक के बारातघर के पास। यह सुनते ही सब थोड़ी देर पहले हुए उस हादसे को देखने के लिए चल पड़े। बड़ों के पीछे कुछ बच्चे भी थे। कुछ लोगों ने तो अपने बच्चों को डांट-डपट कर वापस घर भेज दिया और कुछ अपने बच्चों को लेकर आगे बढ़े। मैंने भी उत्सुकतावश सोचा कि मुझे भी चलकर देखनी चाहिए।
मेरी नज़र एकदम घड़ी पर पड़ी, सात बज चुके थे। मैं तो इन सबके चक्कर में स्कूल भूल ही गई थी। मैंने जल्दी से चोटी को ऊपर की तरफ़ मोड़कर फूल बनाया और बस्ता उठाते हुए मम्मी को आवाज़ देते हुए कहा, “मम्मी मैं स्कूल जा रही हूं!”
“लंच बॉक्स ले लिया?”
“हां, मम्मी ले लिया,” कहते हुए घर से निकल पड़ी।
मम्मी गली में हुए शोरगुल से बेख़बर अपना काम निपटाने में लगी हुई थी। मैंने गली से बाहर कदम रखा ही था कि देखा कि जो सड़क सुबह एकदम शांत थी, वहां सुबह कुछ-कुछ दूरी पर फेन वाले, दूधवाले, अगरबत्ती वाले और कुछ लोग दिखाई देते थे, अचानक इस सड़क पर चहल-पहल बढ़ गई थी। जगह-जगह लोग झुंड बनाकर खड़े बातचीत कर रहे थे। सभी के चहरे इस बात को प्रमाणित कर रहे थे वहाँ कोई गप्प या चुहलबाजी नहीं कर रहे हैं बल्कि एक सीरियस मैटर पर बात चल रही है। हो न हो ये लोग उसी घटना की बातें कर रहे थे जिसके बारे में सुबह लाल साड़ी वाली महिला बता रही थी। जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ उछलते-कूदते गए थे वे काफ़ी ज़्यादा डरे हुए थे। कुछ तो बुरी तरह उछल-उछल कर रो रहे थे। ये सब देख मेरी उत्सुकता उस डरावने मंजर को देखने के लिए और और भी ज़्यादा बढ़ गई। पता नहीं क्यों पर मेरे कदम अपने आप ही तेज़ी से बढ़ने लगे।
आखि़र मैं सड़क के मुहाने पर पहुंच ही गई। वहां जाकर देखा तो मुझसे कुछ दूरी पर बारातघर के सामने भीड़ लगी हुई थी। वहीं पास में टैंकर भी खड़ा था जिसकी हालत लोगों ने डंडे मार-मार कर काफी दयनीय बना दी थी। उसके सामने का टूटा हुआ कांच और बाकी हिस्सा देखने से ऐसा लग रहा था जैसे वह अब रो पड़ेगा। निर्जीव होते हुए भी वह बिल्कुल सजीव लग रहा था। मैं देखना चाहती थी कि आखि़र वह लड़की कौन है! मन में कई तरह के सवाल उमड़ रहे थे। मैंने सोचा पहले किसी से समय पूछ लूं, अगर समय होगा तो देख लूंगी नहीं तो सीधे स्कूल चली जाऊंगी। वहां तो हर छोटी से छोटी बात पता चल ही जाती है। वहीं से पता चल जाएगा कि वह लड़की कौन थी।
सामने एक अंकल मोबाइल पर बात कर रहे थे। मैं उनके पास जाकर खड़ी हो गई और बात पूरी होने का इंतज़ार करने लगी कि कब अंकल की बात खत्म हो और कब वो फ़ोन रखे और मैं उनसे समय पूछूं। पर वे तो बात करते ही जा रहे थे। वे बराबर अपने हाथ को इधर-उधर करते हुए बात कर रहे थे तभी मेरी नज़र उनके हाथ पर पड़ी जो नीचे की तरफ़ लटका हुआ था। उन्होंने घड़ी पहनी हुई थी। मैंने समय देखने के लिए गर्दन झुकाई ही थी कि उन्होंने हाथ उठाया और अपने गाल खुजलाने लगे। अब तक मैं अंकल की इन हरकतों से तंग आ चुकी थी। अबकी बार जैसे ही उन्होंने अपना हाथ नीचे किया मैंने उनका हाथ कसकर पकड़ा और समय देखने लगी। वो अंकल, जो अब तक अपनी बातों में मस्त थे एकदम से हड़बड़ाए और दूसरे ही पल मेरी तरफ़ देखने लगे। मैंने समय देखा और उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दी। बदले में वे भी मुस्कुरा दिए। अभी स्कूल लगने में पूरे बीस मिनट बाकी थे।
मैं आराम से वो सब कुछ देख सकती थी जो मैं देखना चाहती थी। मैं भीड़ के पास बिल्कुल पास पहुंच गई पर अब समस्या यह थी कि अंदर कैसे जाऊं। मैं भीड़ के चारों तरफ़ घूम-घूम कर अंदर जाने का रास्ता ढूंढ़ने लगी। आखि़र एक आदमी जिसे उसकी पत्नी बुला रही थी, वह बाहर निकला। उसके निकलते मैं जबरदस्ती अंदर घुसी पर भीड़ बहुत ज़्यादा थी। मैं अंदर तक नहीं जा सकती थी। मैं वहीं खड़ी होकर औरतों की साड़ी के पल्लू को एक तरफ़ करके जितनी जगह बनाई उससे अंदर की तरफ़ झांकने लगी। मुझे सिर्फ़ थोड़ा ही दिखा पर जो दिखा सच में बहुत डरावना था। मैंने देखा उस लड़की का सूट पूरा लाल हो गया। कहीं से भी सफेद नहीं रह गया था। उसे जिस दुपट्टे से ढका था वो कहीं-कहीं से गुलाबी थी वरना ज़्यादातर हिस्सा उसका भी लाल ही था। मुझमें इससे ज़्यादा देखने की हिम्म्त नहीं थी। वहां मेरा दम घुटने लगा इसलिए मैं वहां से जितनी जल्दी हो सके निकलना चाहती थी।
तभी स्कूल की घंट बजी। मैं बाहर निकली और स्कूल की तरफ़ जाने लगी। जब मैं स्कूल पहुंची तो देखा वहां का माहौल बिल्कुल बदला हुआ था। सभी बच्चे डरे-सहमे हुए थे। कुछ तो रोने भी लगे और किसी को चक्कर आने शुरू हो गए थे। प्रार्थना का वक़्त बीता जा रहा था लेकिन स्कूल के प्रिंसीपल सर और कई अध्यापक स्कूल से अनुपस्थित थे। लगभग साढ़े आठ बजे के क़रीब जब वे वापस लौटे तब आनन-फ़ानन में प्रार्थना करवाई गई। प्रार्थना के बाद प्रिंसीपल सर ने हमें बताया कि ‘यहां जी और एच ब्लाक के पास जो बारातघर है उससे थोड़ा आगे एक टैंकर जो एच ब्लाक में पानी लेकर जा रहा था, उस समय वह पानी से पूरा भरा हुआ था। उस टैंकर ने एक लड़की जो हमारे स्कूल की सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसने नवरात्रे के व्रत रखे हुए थे। वह मंदिर से दूध चढ़ाकर वापस लौट रही थी, जिसे टैंकर वाले ने कुचल दिया। उस समय जिन्होंने इस हादसे को देखा उनमें से तो कुछ वहीं बेहोश हो गए और कुछ ने खुद को संभालते हुए टैंकर वाले को पकड़कर मोहल्लेवालों के साथ मिलकर इतना पीटा कि पता नहीं अब वह भी बचेगा या नहीं!’ इसी के साथ प्रिंसीपल बच्चों की लापरवाही पर लंबा भाषण देने लगे। उन्होंने कहा, ‘बच्चों पहली बात तो यह है कि तुम कभी भी सड़क के किनारे-किनारे नहीं चलते हो। मैं जब भी यहां आता हूं मुझे हर तरफ़ सिर्फ़ गाडि़यां ही दिखती हैं लेकिन जैसे ही मैं इस मोहल्ले में पहुंचता हूं तो हर तरफ़ बच्चे जानवरों जैसे घूमते दिखाई देते हैं, बल्कि जानवरों से भी बद्दतर। उनकी पीठ पर बस एक डंडा जमाओ तो वे किनारे या मैदान में जाकर खड़ा हो जाते हैं, वे भी समझ लेते है कि अगला बंदा हमसे क्या कहना चाहता है पर तुम, तुम तो एकदम निकम्मे कि़स्म के हो।’
सर ने इतना कहा ही था कि एक लड़की को चक्कर आ गए। आखि़र प्रिंसीपल सर ने भाषण खत्म कर दिया। सर एक एक लाइन को क्लास में भेजने लगे। अचानक बाहर से हल्ले की आवाज़ सुनाई दी। बहुत सारे माता-पिता अपने बच्चों को लेने आए हुए थे, जिन्हें देखकर बच्चों ने रोना शुरू कर दिया। सभी बस यही गुहार लगा रहे थे कि हमें घर जाना है। सर बच्चों के माता-पिता को समझाते हुए बोले कि इस तरह हो-हल्ला मचाने से कुछ नहीं होगा। हमारी बात मानो बच्चों को लेकर मत जाओ पर लोगों की तो यही इच्छा थी कि वे अपने बच्चों को घर ले जाना चाहते हैं। धीरे-धीरे पूरा स्कूल ख़ाली हो गया। स्कूल में सिर्फ़ कुछ बच्चे ही बचे थे। हर क्लास में सिर्फ़ पांच से दस बच्चे ही रह गए थे और जो बच्चे वहां थे वे भी काफी हद तक इस घटना से प्रभावित थे। मेरी समझ में नहीं आया जहां बड़े से बड़े आतंकी हमलों को ये बच्चे मिनटों में भूलकर खेलने निकल जाते थे, वहीं ये आज इस घटना, जो आतंकी हमलों से छोटी है पर इस तरह सिकुड़ कर कैसे बैठे हैं। रह-रह कर मन में यह सवाल आ रहा था और बार-बार मन ख़ुद इसका जवाब भी दे रहा था कि वो तो देश की सीमा पर होते हैं पर यह मोहल्ले में हुई एक बहुत बड़ी घटना है। बच्चों का यह व्यवहार शायद सर को भी समझ में आ गया था। ये सोचकर की पढ़ाये भी तो किसको इन पांच-छह बच्चों को, इसलिए उन्होंने स्कूल की छुट्टी कर दी।
रास्ते में मैंने देखा कि पुलिस उस जर्जर हो चुके टैंकर और लड़की के शव को ले जा चुकी थी। मोहल्ले में इस तरह का आतंक पहले कभी नहीं हुआ था। जहां देखो वहां बच्चों को यही हिदायत दी जा रही थी कि टैंकर पर कोई नहीं चढ़ेगा। कहीं-कहीं तो सर्वजल के कार्ड भी बनाए जा रहे थे ताकि घर के किसी बच्चे को टैंकर पर जाने की जरूरत ही न पड़े पर अभी ये अंत नहीं था, ये तो बस मुसीबत की शुरूआत थी।
किसी तरह वह दिन बीता। अगले दिन बहुत कम बच्चे स्कूल पहुंचे, जिनमें मैं भी शामिल थी। आज की पढ़ाई ठीक-ठाक ही थी। दो तीन पीरियड खाली गए। आज जब मैं दो बजे घर पहुंची तो घर में मुझे सब कुछ सामान्य लगा लेकिन जब मैं खाना खाकर उठी और पानी पीने के लिए वाटरकूलर की टोटी घुमाई तो उसमें पानी खत्म था। मैंने सोचा मम्मी ने पानी नहीं भरा होगा। मैं खाना खाकर बाहर खेलने लगी तो देखा सभी के घर के बाहर पानी के खाली बर्तन पड़े हुए थे। मैंने बगल में खड़ी रिंकी से पूछा, “क्या आज टैंकर नहीं आया?” वह बोली, “नहीं आया और आयेगा भी नहीं!” “क्यों?” “क्यों क्या, कल जिस टैंकर से एक्सीडेंट हुआ था वह एच ब्लाक का ही तो था। प्रधान अंकल बता रहे थे कि अब शायद कुछ हफ़्तो तक एच ब्लाक में टैंकर न आ पाए!” “फिर तो पानी की बड़ी मुसीबत हो जाएगी?” “सबने मज़बूरी के लिए सवर्जल का कार्ड बनवा लिया है, उस पानी को पी लेंगे और खाना, नहाने-धोने के लिए मोटर का पानी इस्तेमाल हो जाएगा।”
तभी गली में हल्ला हो गया कि चौक पर मछली मार्किट का टैंकर आया है। हमारी गली की सभी औरतें और लड़कियां छोटे-बड़े डिब्बे लेकर भागने लगी। मैंने सोचा चलो मैं भी एक डिब्बा भर लेती हूं। वहां जाकर देखा तो उस टैंकर पर बहुत ज़्यादा भीड़ जमा थी। भीड़ देखकर आगे जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। तभी रिंकी बोली, “चल न!” मैंने उसकी तरफ़ देखते ही पूछा, “पानी मिलेगा क्या?”
“क्यों नहीं मिलेगा? और अगर नहीं भी मिला तो क्या हरज है, सबकी तरह हम भी वापस लौट आयेंगे!”
हम आगे बढे। वहां पहुंचकर मैंने डिब्बा रिंकी के डिब्बों के साथ रखा। वहां पाइप पकड़े एक गुस्सैल कि़स्म की महिला खड़ी थी। वह पाइप को बार-बार इस तरह घूमा रही थी जैसे किसी के सिर पर ही दे मारेगी। पाइप जिस-जिस तरफ़ जा रहा था हम अपने बर्तन उसी तरफ़ सरकाते जा रहे थे। आखि़र हमारा पानी भर गया। हमारे सामने समस्या यह थी कि इन भारी भरकम डिब्बों को घर कैसे ले जाएं! हम दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। मन तो कर रहा था कि वहीं फूट-फूट कर रो पड़ें। अपनी इस जर्जर दशा पर मुझे अब याद आया कि इस समय हमारी शक्लें बिल्कुल वैसी ही लग रही थीं जैसी पिछली सुबह उस टैंकर की। आखि़र हमने तय किया कि हम एक-एक करके डिब्बे कुछ दूरी पर रखेंगे फिर वापस आकर डिब्बे ले जाएंगे।
मेरा पास एक वाटरकूलर था और उसकी तीन बड़ी-बड़ी बाल्टियां। सभी डिब्बे घर तक लाने में हमें लगभग आधा घंटा लगा। आखि़र हम घर पहुंचते तभी पता चला कि कल वाली लड़की का शव पोस्टमार्टम होकर आ गया है। मैंने फटाफट अपने गीले कपड़े बदले और रिंकी को लेकर उसी लड़की के घर की तरफ़ चल पड़ी जो कल हुए सड़क हादसे की भेंट चढ़ गई थी। आज भी वहां कल जितनी ही भीड़ थी। मैं एक घर जिसका ज़ीना बाहर की तरफ़ था, वहां चढ़कर उस लड़की को देखने के लिए चढ़ गई। पर फिर भी बदकिस्मती से मैं उस लड़की का चेहरा नहीं देख पाई। शाम होने को थी, मैं और रिंकी घर वापस लौट आए।
मैं बाहर बैठकर सोचने लगी अब क्या होगा! अगर टैंकर नहीं आया तो आज की तरह हमें रोज़ दूर-दूर जाकर पानी लाना पड़ेगा और सच में ऐसा ही हुआ। एच ब्लाक का टैंकर आना बंद हो गया था। हम लोग दूर-दूर पानी भरने जाते। कितनी अर्जियां लिखी गई तब जाकर दो पखवाड़े बाद एच ब्लाक में टैंकर आया। एक हफ्ते इतनी भीड़ रही कि कई लोगों को तो पानी बिल्कुल नहीं मिला। मुझे भी तीन-तीन दिन तक पानी नहीं मिला। आज भी दिल उस घटना को याद करता है तो सिहर उठता है। उस एक्सीडेंट वाली सड़क पर अब दो बड़े-बड़े ब्रेक बने हुए हैं। पता नहीं पर अब उस रास्ते पर जाने से डर सा लगता है।