पेशी / लफ़्टंट पिगसन की डायरी / बेढब बनारसी
इस बार जब मुकदमा पेश हुआ, मैं भी गया क्योंकि इस बार ऐसी आशा थी और ठीक थी कि सुनवाई होगी। अब तक वह दोनों अच्छे हो गये थे।
मजिस्ट्रेट महोदय की कचहरी में हम सब लोग उपस्थित हुए। सरकार की ओर से कहा गया कि एक सैनिक अफसर ऑसहेड शराब के नशे में मोटर गाड़ी हाँक रहे थे और दो व्यक्तियों को कुचल दिया। ईश्वर की ही कृपा हुई कि वे बच गये। उन दोनों के बयान हुए। उसके पश्चात् तीन और आदमियों की गवाही हुई। पता नहीं यह कहाँ से आ गये।
इन लोगों का कहना था कि दो सैनिक गोरे शराब पीकर मोटर में चले जा रहे थे और इनके ऊपर मोटर चढ़ा दी। हमारे वकील ने एक गवाह से पूछा - 'तुम कैसे जानते हो कि इन्होंने शराब पी थी।' उसने कहा कि इनकी मोटर ही ऐसी चल रही थी।
वकील ने कहा - 'मोटर का क्या रंग था?'
गवाह - (कुछ सोचकर) रात में मोटर का रंग हमें ठीक नहीं दिखायी दिया।
वकील साहब - इतनी तेज बिजली की रोशनी सड़क पर थी, तुम्हें रंग नहीं दिखायी दिया?
गवाह - हुजूर, रात में बहुत-से रंग ऐसे दिखायी देते हैं जो दिन में दूसरे रंग दिखायी देते हैं।
वकील - अच्छा, रात में तुम्हें किस रंग की दिखायी दी?
गवाह - सरकार, मैं तो दूर था। एक बार कुछ नीला-सा दिखायी पड़ा, ऐसा जान पड़ा कि पीलापन लिये हुए लाल-लाल है।
मजिस्ट्रेट - (गवाह से) तुम जानते हो कि तुमने ईश्वर की शपथ खायी है। सच-सच बोलो।
गवाह - सरकार, मैंने कसम न भी खायी होती तो सच ही बोलता। चार पुश्त से मेरे परिवार में लोग गवाह होते चले आये हैं और किसी के सम्बन्ध में यह किसी ने नहीं कहा कि कभी कोई झूठ बोला।
वकील - अच्छा, जब यह घटना हुई तब गाड़ी सड़क की बाईं ओर थी कि दाहिनी?
गवाह - हुजूर, जहाँ तक मुझे याद है गाड़ी बीच में थी।
वकील साहब ने पूछा - तुम वहाँ क्या कर रहे थे?
गवाह - मैं गा रहा था।
वकील - मेरा अभिप्राय यह कि उस स्थान पर तुम क्यों गये।
गवाह - यदि हम सरकार, उस समय न होते तो आज इजलास के सम्मुख सत्य घटना कौन बताता?
मजिस्ट्रेट ने कहा - तुम ठीक से जो पूछा जाता है, उसका उत्तर दो, नहीं तो तुम्हें सजा हो जायेगी।
गवाह - हुजूर, सभी लोग उधर से उस रात को जा रहे थे। गोरे लोग जा रहे थे; यह बेचारे जो दब गये, वह जा रहे थे, मैं भी जा रहा था। कोई पाप तो मैंने किया नहीं।
वकील - पाप-पुण्य नहीं, क्यों जा रहे थे, क्या काम था, यही इजलास जानना चाहता है।
गवाह - इतने दिनों की बात याद नहीं किन्तु टहल कर लौट रहा था।
हमारे वकील ने कहा कि इस गवाह से हम लोग कुछ निकाल नहीं सकते। दूसरा गवाह भी बयान दे गया, उससे भी हमारे वकील ने जिरह की। उसने भी ऐसी ही ऊटपटाँग बात कही। मुकदमा दूसरे दिन के लिये स्थगित हुआ। तीसरे दिन मेरी गवाह हुई।
मुझसे उधर के वकील ने जिरह करनी आरम्भ की। मुझसे पूछा कि आप क्यों इनके साथ थे। मैंने कहा कि हम लोग क्लब से साथ ही आ रहे थे। उन्होंने फिर पूछा कि इन्होंने प्रतिदिन से अधिक शराब पी ली थी? अब मैं बड़े फेर में पड़ा। मैं सोचने लगा कि सत्य बोलना चाहिये कि नहीं। फिर मैंने सोचा कि मन्दिर में, धार्मिक स्थान में तथा महात्माओं के सम्मुख सत्य ही बोलना चाहिये। किन्तु जहाँ चारों ओर झूठ-झूठ है वहाँ सत्य बोलने से सत्य का अपमान होता है। मैंने कहा कि उस दिन तो उन्होंने प्रतिदिन से कम शराब पी थी। बात यह थी कि इनकी तबीयत कुछ अच्छी नहीं थी। इसीलिये कम शराब पी। यह दोनों आ रहे थे, ये भी शराब पिये हुए थे। बहुत भोंपा बजाने पर भी हटे नहीं।
दूसरे दिन फैसला हुआ, जिसमें यही निश्चय किया गया कि जो लोग दबे थे, वही नशे में थे। सैनिक अफसरों ने बहुत आवाज दी, किन्तु यह लोग हटे नहीं। घटना के बाद ही इन लोगों ने कार पर बैठाकर इन्हें अस्पताल पहुँचाया। इससे इनकी नीयत का पता चलता है।
अंग्रेज अफसर भारतवासियों के शुभचिंतक हैं, ऐसी ही घटनाओं से प्रतीत होता है। मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में हम लोगों को बधाई दी और यह भी लिखा कि यदि और भी ऐसे ही अफसर भारत में आ जायें तो भारतीय राजनीतिक समस्यायें बात की बात में सुलझ जायें। हम लोग छूट गये। दावा करने वालों पर डाँट पड़ी कि ऐसे बेकार मुकदमे लाकर सरकारी समय का विनाश होता है।
सन्ध्या को वकील साहब मिलने आये। उन्हें पचास रुपये हम लोगों ने दिये। उन्होंने अपनी बड़ी प्रशंसा की। बोले - 'मैंने कितने लोगों को फाँसी के तख्ते पर से उतार लिया है।' उन्होंने दस रुपये और माँगे। कहा - 'मजिस्ट्रेट साहब के यहाँ जनाने में जो नाइन आती-जाती है, उसे देना है। क्योंकि मजिस्ट्रेट साहब इजलास करते अवश्य हैं, किन्तु फैसलों का अधिकांश श्रेय उसी नाइन के हाथ में रहता है। यदि साध लिया जाये तो कोई ऐसा मुकदमा नहीं जो हार जायें।' मैंने वकील साहब को रुपये दिलवा दिये और बोला - 'तो आप लोगों का वकालत चलाने का बहुत अच्छा साधन है।'
वकील साहब बोले - 'वकालत ऐसे ही चलती है। जब कोई रिश्वती हाकिम आता है तब हम लोग देख लेते हैं कि इसकी कहाँ-कहाँ रिश्तेदारी है, इसे किन बातों का शौक है। फिर क्या है, चल गयी वकालत। एक हाकिम थे; उनका एक वकील साहब की लड़की से प्रेम हो गया। वकील साहब की वकालत ऐसी चमकी जैसे मंगल तारा चमकता है।
'एक मजिस्ट्रेट साहब को नाच-गाने का शौक था। फिर तो नगर के समाजियों द्वारा आप जैसा चाहिये, फैसला करा लीजिये।'
मैंने वकील साहब को बधाई दी।