प्रणयिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल / पृष्ठ 1
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‘प्रणयिनी ’का परिचय
यह संकलन जिसमें इनके तीन एकांकी संग्रहीत हैं यह छोटी सी 48 पृष्ठों की पुस्तक है।
इस संग्रह में तीन एकांकियों को संग्रहीत किया गया है।
इसके समर्पण में रचनाकार ने लिखा हैः-
‘‘जीवन का है अन्त, प्रेम का अन्त नहीं,
कल्प वृक्ष के लिये , शिशिर हेमन्त नहीं।
इसी कल्प वृक्ष के रूप में चन्द्र कुंवर कुन जीतू नंदा, उर्वशी पुरूरवा, और देवगुरू का अभिशाप, यहां प्रणियिनी में विकसित है।’’
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