प्रणयिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल / पृष्ठ 2

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जीतू नंदा

‘जीतू नंदा’ में जीतू चरवाहा और नंदा चरवाही है। हिमालय के नंदा देवी शिखर की ढालों पर सुन्दर मखमली घास और देवदार का वन है, उसका वर्णन निम्न पंक्तियों में किया गया हैः-

अभी इनी नीले पर्वतों पर रोशनी नहीं उतरी है। पक्षियों की ध्वनि में आलेाक अभिनंदन कूजित हो रहा है , कुंज कुंजों के बीच बकरियों की आवाज और गाने की ध्वनि आ रही है-

इस वन छाया में मुझे मिलों।

तुम प्रिये, अकेली मुझे मिलेा।

बकरियां - चुगाने का छल रच,

रसमय पर्वत पर मुझे मिलो।

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